सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस केस में नई व्यवस्था दी है। कोर्ट ने कहा है कि सेक्शन 143 ए के प्रावधान केवल नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (एनआई) एक्ट के 2018 संशोधन के बाद दर्ज मामलों में लागू होंगे। कोर्ट एनआई एक्ट के सेक्शन 143 ए के तहत चेक बाउंस के लंबित मामलों पर कहा है कि शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत करने के बाद आरोपी चेक की रकम का 20 फीसदी अंतरिम मुआवजा देगा।
कोर्ट ने कहा कि यह व्यवस्था 2018 में एनआई एक्ट में संशोधन के बाद से लागू है। कोर्ट ने कहा कि मुआवजे की रकम चेक की कुल रकम के मुकाबले 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति विनीत सरन की खंडपीठ ने जी.जे. राजा बनाम तेजराज सुराणा केस में दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें आरोपी (जी.जे राजा) को शिकायतकर्ता (तेजरात सुराणा) को 20 प्रतिशत अंतरिम मुआवजा देने का आदेश जारी किया था। यह मामला 2018 से पहले का था। दिसंबर 2018 में चेन्नई कोर्ट ने राजा को कहा था कि वह संधोधित एनआई एक्ट के सेक्शन 143 ए के तहत शिकायतकर्ता को चेक अमाउंट की कुल राशि का 20 प्रतिशत रकम का भुगतान करे। इसके बाद उन्होंने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इस आदेश पर रोक तो लगा दी लेकिन अंतरिम मुआवजे की राशि को 20 प्रतिशत से 15 प्रतिशत कर दिया।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में डिजीटल लेन-देन को बढ़ावा देने और उन लोगों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है जो जानबूझकर चेक बाउंस करवाते हैं। देश भर के विभिन्न कोर्ट में चेक बाउंस के लगभग बीस लाख केस दर्ज हैं। इनमें से कई मामले तो पांच साल से भी ज्यादा पुराने हैं।