Bharat Ratna: केंद्र की मोदी सरकार ने एक बार फिर से भारत रत्न की घोषणा की है। इस बार तीन हस्तियों को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। इनमें किसानों के मसीहा और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी नरसिम्हा राव और प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का नाम शामिल है। चौधरी चरण को भारत रत्न के ऐलान के बाद उनके बेटे और आरएलडी चीफ जयंत चौधरी की प्रतिक्रिया सामने आई है। जयंत ने एक्स पर लिखा, ‘दिल जीत लिया’।

इससे पहले, सरकार ने वरिष्ठ भाजपा राजनेता लालकृष्ण आडवाणी और समाजवादी प्रतीक और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की थी।

चौधरी चरण सिंह को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्या कहा?

पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘हमारी सरकार का यह सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है। यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है। उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृहमंत्री और यहां तक कि एक विधायक के रूप में भी, उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की। वे आपातकाल के विरोध में भी डटकर खड़े रहे। हमारे किसान भाई-बहनों के लिए उनका समर्पण भाव और इमरजेंसी के दौरान लोकतंत्र के लिए उनकी प्रतिबद्धता पूरे देश को प्रेरित करने वाली है।’

पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव को लेकर पीएम मोदी ने क्या कहा?

यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में, नरसिम्हा राव ने विभिन्न क्षमताओं में भारत की बड़े पैमाने पर सेवा की। उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और कई वर्षों तक संसद और विधानसभा सदस्य के रूप में किए गए कार्यों के लिए समान रूप से याद किया जाता है। उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखने में सहायक था।

प्रधानमंत्री के रूप में नरसिम्हा राव गारू का कार्यकाल महत्वपूर्ण उपायों द्वारा चिह्नित किया गया था, जिसने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया, जिससे आर्थिक विकास के एक नए युग को बढ़ावा मिला। इसके अलावा, भारत की विदेश नीति, भाषा और शिक्षा क्षेत्रों में उनका योगदान एक ऐसे नेता के रूप में उनकी बहुमुखी विरासत को रेखांकित करता है, जिन्होंने न केवल महत्वपूर्ण परिवर्तनों के माध्यम से भारत को आगे बढ़ाया बल्कि इसकी सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को भी समृद्ध किया।

‘स्वामीनाथन ने कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई’

डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न मिलने की घोषणा पर पीएम मोदी ने एक्स पर लिखा, ‘यह बेहद खुशी की बात है कि भारत सरकार हमारे देश में कृषि और किसानों के कल्याण में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी को भारत रत्न से सम्मानित कर रही है। पीएम ने आगे लिखा कि स्वामीनाथन को चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की कृषि व्यवस्था को आधुनिक बनाने की दिशा में काफी कोशिश की। हम एक अन्वेषक और संरक्षक के रूप में और कई छात्रों के बीच सीखने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने वाले उनके अमूल्य काम को भी पहचानते हैं। डॉ. स्वामीनाथन के दूरदर्शी नेतृत्व ने न केवल भारतीय कृषि को बदल दिया है, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि भी सुनिश्चित की है। वह ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मैं करीब से जानता था और मैं हमेशा उनकी अंतर्दृष्टि और इनपुट को महत्व देता था।

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह

किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का 29 मई 1987 को निधन हुआ था। वह देश के पांचवें पीएम थे और उत्तर प्रदेश के बागपत से चार बार सांसद रहे थे। हालांकि, चौधरी साहब पहले ऐसे पीएम थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में संसद का मुंह तक नहीं देखा था।

साल 1991 में नरसिम्हा राव ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। इसके बाद उन्होंने कई बड़े फैसले लिए, लेकिन कहा जाता है कि उनके निधन के बाद शव को कांग्रेस मुख्यालय में भी दाखिल होने नहीं दिया गया था। विनय सीतापति ने अपनी किताब ‘द हाफ लायन’ में नरसिम्हा राव के निधन के बाद किस्से का विस्तार से जिक्र किया है। 23 दिसंबर 2004 को नरसिम्हा राव ने 11 बजे AIIMS में आखिरी सांस ली। तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकर को सुझाव दिया कि अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए। नरसिम्हा राव का शव उनके निवास स्थान 9 मोती लाल नेहरू मार्ग पर लाया गया। यहां कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने भी परिवार से शव हैदराबाद ले जाने के लिए कहा।

विनय सीतापति लिखते हैं कि ‘राव का शव करीब आधे घंटे तक कांग्रेस पार्टी के दफ्तर के बाहर एयर फोर्स की गाड़ी पर रखा रहा। परिजन अंदर जाने का इंतजार करते रहे। जब गेट नहीं खुला तो थक हारकर एयरपोर्ट की तरफ रवाना हो गए। हालांकि उस वक्त सोनिया गांधी भी पार्टी दफ्तर के अंदर ही मौजूद थीं।

‘देश के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर नरसिम्हा राव’

वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू अपनी किताब ‘1991 हाउ पीवी नरसिम्हा राव मेड हिस्ट्री’ में लिखते हैं कि नरसिम्हा राव इस देश के पहले एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे। बारू लिखते हैं कि साल 1947 के बाद अगर भारत के इतिहास में कोई साल महत्वपूर्ण है तो वो यही साल है जब नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने थे। संजय बारू ने एक इंटरव्यू में अपनी किताब के बारे में बताया था कि राव ने इसी साल अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज कर लिया था, क्योंकि भारत में कई फैसले होने बाकि थे और उन्हें राव ने पूरा कर अपनी अलग जगह बनाई, लेकिन इस बीच ही वह कांग्रेस से दूर भी होते गए।

कौन हैं एम एस स्वामीनाथन?

प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और पूर्व राज्यसभा सांसद मनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन का 28 सितंबर, 2023 को 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति के जनक भी कहा जाता है। एमएस स्वामीनाथन ने अपने करियर की शुरुआत एक प्रशासक के रूप में करने वाले थे। उनका बतौर आईपीएस चयन हो गया था, लेकिन उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी, क्योंकि उनकी रुचि खेती में थी। जल्द ही इस क्षेत्र में रिसर्च करने के लिए चले गए। उन्होंने भारत और विदेश दोनों जगहों पर इस क्षेत्र से संबंधित कई संस्थानों में काम किया।

साल 1981 से 1985 के बीच एमएस स्वामीनाथन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन काउंसिल के स्वतंत्र अध्यक्ष रहे। 1984 से 1990 के बीच इंटरनेशनल यूनियन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्स के प्रेसिडेंट रहे। 1989-96 तक वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (इंडिया) के प्रेसिडेंट रहे। इसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) के डायरेक्टर जनरल भी रहे।

स्वामीनाथन ने बताया था, “यह साल 1942 का समय था। गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था। 1942-43 में बंगाल का अकाल पड़ा था। हममें से कई लोग, जो उस समय छात्र थे और बहुत आदर्शवादी थे, खुद से पूछते थे कि हम स्वतंत्र भारत के लिए क्या कर सकते हैं? मैंने बंगाल के अकाल के कारण कृषि का अध्ययन करने का निर्णय लिया। मैंने अपना क्षेत्र बदल लिया और मेडिकल कॉलेज जाने के बजाय कोयंबटूर के कृषि कॉलेज में चला गया।”