इस्लामिक संस्था जमीयत उलेमा ए हिंद ने फैसला किया है कि वह जकात की रकम से आतंक के आरोपी मुसलमानों का केस लड़ेगी। जकात की रकम हर मुस्लिम को सालाना तौर पर अपनी इंकम का 2.5 फीसदी हिस्सा देना होता है। जमीयत उलेमा ए हिंद आतंक के आरोप में बंद मुस्लिम युवाओं के केस लड़ती भी रही है। अब इस संस्थान ने मुस्लिमों से अपील की है कि वे जकात आतंक के आरोप में बंद मुस्लिमों के केस लड़ने के लिए दें। जकात इस्लामिक धर्म का पांचवां मुख्य कर्तव्य है, जो कि रमजान के दौरान इकट्ठा और बांटा जाता है।

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जमीयत उलेमा ए हिंद की लीगल सेल के हेड गुलजार आजमी ने बताया, ‘कुरान और हदीस में जकात के इस्तेमाल के आठ तरीके बताए हैं। एक तरीका कि कैद में बंद लोगों की मदद करना भी है। आज के वक्त गरीब मुस्लिम आतंक के मामलों में जेल में बंद हैं। हम ऐसे लोगों के लिए लड़ने के लिए मुस्लिमों से मदद मांग रहे हैं। हम पहले जकात फंड की मेडिकल और एजुकेशन के लिए खर्ज करते थे।’

पिछले साल संस्था ने दो करोड़ रुपए 410 मुस्लिमों का केस लड़ने में खर्च किए थे, ये सभी 52 आतंक के मामलों के आरोप में जेल में बंद थे। इनमें से 108 लोगों के खिलाफ आरोप हटा लिए गए थे।

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मुस्लिम प्रोफेशनल फंड द्वारा किए गए एक विश्लेषण के मुताबिक अगर भारत के 17.8 करोड़ मुस्लिमों में से 10 फीदसी भी जकात देते हैं तो वह योगदान 7500 करोड़ रुपए हो जाएगा।

एक मुस्लिम जो कि 75 ग्राम सोना रखता है और उस पर किसी तरह का कोई कर्ज नहीं है तो उसे अपने कुल आय, सेविंग और पॉपर्टी का 2.5 फीसदी जकात के रूप में देना होता है।