यूनेस्को ने असम के चराइदेव मोईदाम को विश्व धरोहर घोषित किया है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इसकी जानकारी दी है। मोईदाम पूर्वोत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है। इसका इतिहास 700 साल पुराना बताया जाता है। यहां पर चीन से आईं ताई-अहोम जनजातियों के राजाओं के कब्र स्थल बने हैं। कहा जाता है कि इन प्राचीन दफन टीलों का निर्माण 13वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान अहोम राजाओं द्वारा किया गया था।

क्या है चराईदेव मोईदाम?

असम के चराईदेव जिले में ये शाही कब्र स्थल स्थित है। यह भारत के महत्वपूर्ण मध्यकालीन आहोम राजवंश के शाही परिजनों के लिए बना कब्रगाह टीला है। इसे असम का पिरामिड भी कहा जाता है। खास बात यह है कि शाही मैदाम केवल असम राज्य में चराईदेव में पाए जाते हैं। ये चीन से आईं ताई-अहोम जनजातियों के राजाओं के कब्र स्थल हैं। इन जनजातियों के राजाओं ने 12वीं से 18वीं ईस्वी के बीच उत्तर-पूर्व भारत में ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न हिस्सों में अपनी राजधानी स्थापित की थी।

केंद्र ने 2014 में भेजा था प्रस्ताव

मोईदाव को विश्व धरोहर घोषित कराने का प्रस्ताव भारत सरकार ने 15 अप्रैल 2014 को यूनेस्को के पास भेजा था। मैदाम 2014 में ही यूनेस्को विश्व धरोहर की अस्थाई सूची में शामिल हो गया था। जनवरी 2023 में इसका भारत की तरफ से आधिकारिक नामांकन किया गया। यूनेस्को की ओर से जांच के लिए एक तकनीकी टीम भी भारत आई थी। इसके बाद भारत सरकार के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी गई। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत भर में 52 स्थलों में से अहोम समुदाय के मोईदाम को विरासत स्थल के रूप में नामांकित करने के लिए चुना है। यहां 90 से अधिक टीलों का घर है। ये टीले सिर्फ दफन स्थल ही नहीं हैं, बल्कि यह असम एक विशेष सांस्कृतिक और एतिहासिक विरासत की धरोहर भी है।