Chandrayaan-3 Update: चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग पर भारत ही नहीं पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं। 23 अगस्त को शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। सोमवार को इसरो ने चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे कैमरे से चांद के सतह की तस्वीरें शेयर की हैं। बता दें कि इसरो का यह तीसरा लूनर मिशन है। इसरो इससे पहले चंद्रयान और चंद्रयान-2 को चन्द्रमा के कक्षा में सफल रूप से भेज चुका है। 2019 में कुछ तकनीकी खामी के कारण चंद्रयान-2 मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में असफल रहा था। क्या आप जानते है कि साल 2008 में इसरो ने चंद्रयान-1 से लूनर मिशन की शुरुआत की थी जिसे इसरो ने जानबूझकर नष्ट कर दिया था।
इसरो ने 2008 में जानबूझकर नष्ट किया था चंद्रयान-1
इंडिया टुडे के रिपोर्ट के मुताबिक साल 2008 में इसरो ने जानबूझकर चन्द्रमा पर एक अंतरिक्ष यान को नष्ट कर दिया था। इसरो ने अपना पहला लूनर मिशन 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किया था। इसके साथ ही इसरो ने दुनिया को यह बता दिया था कि भारत भी पृथ्वी के बाहर किसी अन्य खगोलीय पिंड पर मिशन भेजने में सक्षम है। तब तक केवल चार देश ही चन्द्रमा पर मिशन भेजने में कामयाब रहे थे। उन चार देशों में अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान शामिल था। भारत पांचवें स्थान पर था। इसरो ने भले ही अपने यान को जानबूझकर नष्ट कर दिया लेकिन चंद्रयान चन्द्रमा की सतह पर पानी खोजने में सफल रहा था।
चिप की मदद से चंद्रयान को किया गया नष्ट
अंतरिक्ष यान के अंदर 32 किलोग्राम का एक छिपा हुआ था, जिसका उद्देश्य यान को दुर्घटनाग्रस्त करना था। इसरो ने इसे मून इम्पैक्ट प्रोब कहा था। 17 नवंबर 2008 की रात को लगभग 8 बजकर 6 मिनट पर इसरो के वैज्ञानिकों ने स्पेसक्राफ्ट को नष्ट करने का फैसला लिया था। कुछ ही घंटों बाद शांत पड़े स्पेस में एक बड़ा धमाका सुनाई दिया। चन्द्रमा की सतह से करीब 100 किमी ऊपर मून इम्पैक्ट प्रोब ने अपना काम कर दिया था।
2019 में चंद्रयान-2 हो गया था क्रैश
इसरो ने 2019 में चंद्रयान-2 के साथ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश की थी। हालांकि इसकी सॉफ्ट लैंडिंग से पहले ही चंद्रयान में कुछ तकनीकी खराबी आ गई। इसकी वजह से विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर सका। इसरो प्रमुख ने बताया कि चार साल पहले चंद्रयान-2 मिशन के दौरान ये 3 बड़ी गलतियां हुई थी जिसके कारण विक्रम लैंडर सही से चांद की सतह पर उतर नहीं पाया। उन सभी खामियों को इस बार सुधारा गया है। इनमें पहली सबसे बड़ी चुनौती थी कि विक्रम लैंडर की स्पीड कम करने के लिए जो पांच इंजन लगाए गए थे, उन्होंने जरुरत से अधिक थ्रस्ट पैदा किया जिसके कारण जब लैंडर स्थिर नहीं हो सका। इसकी कारण वह चांद की तरह की तस्वीरें भी नहीं ले सका। अधिक थ्रस्ट होने की वजह से क्राफ्ट तेजी से मुड़ने लगा और अपने निर्धारित रास्ता से भटक गया। इसी कारण उसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया जा सका और विक्रम लैंडर चांद की सतह से टकरा कर टूट गया।
एस. सोमनाथ ने चंद्रयान-2 के दौरान होने वाली तीसरी गलती का जिक्र करते हुए बताया कि विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरने के लिए अनुकूल जगह की खोज कर रहा था। लैंडिंग के लिए अनुकूल जगह नहीं मिली जबकि लैंडर चांद के सतह के बहुत करीब आ गया था। चंद्रयान-2 में लैंडिंग स्पॉट 500 x 500 मीटर के क्षेत्रफल तक ही सीमित था और उसे खोजने के लिए लैंडर अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा था तभी अधिक स्पीड होने के कारण उसकी चांद की सतह पर क्रैश लैंडिंग हो गई और उसका संपर्क इसरो से टूट गया।