Chandrayaan-3 Launch: चंद्रयान-3 मिशन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर इसे लॉन्च किया जाएगा। चंद्रयान-3 मिशन पर सिर्फ भारत ही नहीं पूरे विश्व की नजर है। लॉन्च के बाद इसका सफर कैसा होगा? कितने दिनों में यह चांद की सतह पर लैंड करेगा, मिशन से क्या फायदा होगा? इससे पहले चांद पर और कौन से मिशन भेजे गए और उनका क्या हुआ? ऐसे कई सवाल लोगों के मन में हैं। अपनी इस रिपोर्ट में ऐसे हर सवाल का जवाब समझते हैं।
क्या है चंद्रयान-3 मिशन?
चंद्रयान-3 मिशन के जरिए इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की कोशिश करेगा। इस मिशन के जरिए चांद की सतह पर मौजूद रसायनों और भौगोलिक जानकारी इकट्ठा की जाएगी। इस मिशन के जरिए पृथ्वी की उत्पत्ति का भी पता लगाया जाएगा। चंद्रयान-3 में लगे रोवर के जरिए कई जानकारियां जमा की जाएंगी।
चंद्रयान-2 से कैसे है अलग
2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 मिशन के तहत चांद पर उतरने की कोशिश की थी लेकिन तकनीकी खामियों के कारण लैंडर आखिरी वक्त पर क्रैश हो गया था। चंद्रयान-2 अपने साथ एक लैंडर, एक रोवर और एक ऑर्बिटर लेकर गया था। वही चंद्रयान-3 एक लैंडर, एक रोवर और प्रोपल्शन मॉडल से लैश किया गया है। चंद्रयान-2 में लैंडिंग स्पॉट 500 मीटर गुना 500 मीटर की छोटी जगह के बदले चंद्रयान-3 में इसे बढ़ाकर 4.3 किमी गुना 2.5 किमी की बड़ी जगह को टारगेट किया गया है। इसके कारण अब लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अधिक जगह मिलेगी। इस बार ईंधन की क्षमता भी बढ़ाई गई है अगर लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग के लिए जगह ढूंढ़ने में मुश्किल हुई तो वैकल्पिक लैंडिंग स्पॉट पर आसानी से ले जाया जा सके।

कितने दिन तक काम करेगा चंद्रयान-3?
इसरो वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है की लैंडर और रोवर एक लूनर डे तक काम करेगा। एक लूनर डे पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है। वही प्रोपल्शन मॉडल की बात करें तो वह तीन से छह महीने तक आराम से चल सकता है।
चंद्रयान-3 को कौनसा रॉकेट लेकर जाएगा?
चंद्रयान-3 को एलवीएम-3 रॉकेट लॉन्चर लेकर जाएगा। इस रॉकेट लॉन्चर को बाहुबली रॉकेट लॉन्चर भी कहा जाता है। इसने अभी तक अपने सभी मिशन को सफलता पूर्वक पूर्ण किया है। चंद्रयान-2 को भी इसी रॉकेट से लॉन्च किया गया था।

कितना है पेलोड?
चंद्रयान-3 में कुल 6 पेलोड्स लगे हुए है। पेलोड्स मतलब ऐसे यंत्र जो चन्द्रमा पर जांच कर सके। लैंडर में रंभा एलपी, चास्ते और आईएलएसए लगा हुआ है। वहीं रोवर में एपीएक्सएस और एलआईबीएस पेलोड लगे हुए है।
कब उतरेंगे चांद की सतह पर?
यह पूरा मिशन 45 से 50 दिन का होगा। इसरो प्रमुख ने बताया है कि अगर मिशन प्लान के तहत चला तो 23-24 अगस्त को लैंडर और रोवर को चांद की सतह पर उतारने की कोशिश की जाएगी। अगर किसी कारण लैंडिंग में दिक्कत हुई तो सितम्बर महीने में फिर से लैंड कराने की कोशिश की जाएगी।

अब तक कितने देश कर चुके है लैंडिंग?
अगर इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंड कर पाता है तो भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन जायेगा। इससे पहले कई देशों ने कोशिश की थी लेकिन अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हो पाई है। कुल 38 बार लैंडिंग की कोशिश की गई थी लेकिन सिर्फ चार देशों को चांद की समतल सतह पर उतरने में सफलता प्राप्त हुई है। चांद पर लैंडिंग की सफलता दर 52 फीसदी ही है।
चंद्रयान-2 मिशन का क्या हुआ?
2019 चंद्रयान-2 मिशन को इसरो ने आंशिक रूप से सफल बताया था। लैंडिंग के दौरान इसमें तकनीकी खराबी आ गई जिसके कारण इसकी क्रैश लैंडिंग हुई। इस बार इसरो ने चंद्रयान-3 में काफी बदलाव किए हैं।