Chandrayaan-3:भारत का तीसरा लूनर मिशन चंद्रयान-3 सफल हो गया है। इसरो ने चंद्रयान-3 को काफी कम लगत में बनाया है। चंद्रयान को बनाने में करीब 615 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इसरो ने चंद्रयान-3 के लॉन्च व्हीकल यानी रॉकेट को बनाने में 365 करोड़ रुपये का खर्च आया है। इसके अलावा लैंडर और रोवर को बनाने में 250 करोड़ रुपये का खर्च आया है। वहीं रूस के Luna-25 मिशन की बात करें तो इसे बनाने में 1,600 करोड़ रुपये का खर्च आया। रूस का लूना-25 मिशन चन्द्रमा की सतह पर लैंड करने से पहले ही क्रैश हो गया।

अगर नासा के मून मिशन आर्टेमिस मून प्रोग्राम की बात करें तो इसे बनाने में कुल लागत करीब 93 बिलियन डॉलर बताई जा रही है। नासा के मून मिशन का खर्च करीब 7,69,226 करोड़ रुपये है, जो चंद्रयान-3 की लागत की तुलना में 1,250 गुना ज्यादा है।

वैज्ञानिकों को कितना मिलता है वेतन

इसरो वैज्ञानिकों की सैलरी की बात करें तो उन्हें बाकी देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों के मुकाबले काफी कम वेतन मिलता है। इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने कहा “इसरो में वैज्ञानिकों, टेक्नीशियन और अन्य कर्मियों को जो वेतन भत्ते मिलते हैं वे दूसरे देशों के वैज्ञानिकों और टेक्नीशियन को मिलने वाली सैलरी का पांचवां हिस्सा है। लेकिन इसका एक लाभ यह भी है कि वैज्ञानिक मिशन मून के लिए किफायती तरीके तलाश सके।”

पूर्व प्रमुख ने कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों में कोई भी करोड़पति नहीं है और वह बेहद सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं। नायर ने कहा “हकीकत यह है कि वैज्ञानिक धन की परवाह किये बिना अपना काम करते है। उनमें अपने मिशन को लेकर जुनून और प्रतिबद्धता होती है। इस तरह हम ऊंचा मुकाम हासिल करने में सक्षम होते है।”

इसरो के पूर्व प्रमुख ने आगे बताया “हम एक-एक कदम से कुछ न कुछ सीखते हैं। जैसे हमने अतीत से सीखा है, हम अगले मिशन में उसका इस्तेमाल करते हैं।” उन्होंने कहा कि भारत अपने अंतरिक्ष अभियानों के लिए घरेलू तकनीक का उपयोग करता है और इससे उन्हें लागत को काफी कम करने में मदद मिलती है। भारत के अंतरिक्ष मिशन की लागत अन्य देशों के अंतरिक्ष अभियानों की तुलना में 50 से 60 प्रतिशत तक कम होती है। नायर ने कहा कि हमने अच्छी शुरुआत की है और बड़ी उपलब्धि हासिल की। बता दें कि इसरो के अनुसार चंद्रयान-3 की कुल लागत केवल 615 करोड़ रुपये है जो की बॉलीवुड फिल्म आदिपुरुष से भी कम है।

इनपुट-एजेंसी