नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी सर्जे हरोशे ने शुक्रवार को कहा कि समस्याएं, हादसे और अप्रत्याशित घटनाएं अनुसंधान को धार देने का काम करती हैं तथा भारत को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ऐतिहासिक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के दौरान आई खामी के बाद आगे की ओर देखना चाहिए।
साल 2012 में भौतिकी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले 75 वर्षीय हरोशे ”नोबेल प्राइज सीरीज इंडिया 2019” के लिए भारत में हैं और यह देश में इस तरह की तीसरी श्रृंखला है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने कहा कि ‘चंद्रयान-2’ मिशन एक बड़ी वैज्ञानिक परियोजना है और इस तरह की परियोजनाओं में आम तौर पर सरकार का काफी योगदान होता है।
बता दें कि नासा का लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) आज लैंडिंग साइट से गुजरेगा। यह चांद की सतह से करीब 335 किलोमीटर की दूरी पर होगा। नासा के ऑर्बिटर द्वारा विक्रम लैंडर की तस्वीर ली जाएगी, जिससे वैज्ञानिकों को विक्रम लैंडर के बारे में सही जानकारी मिल सकेगी।
विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर पाने में नाकाम रहा था। नासा का ऑर्बिटर विक्रम लैंडर की तस्वीरें भी भेजेगा, लेकिन आशंका ये है कि चांद पर कम होती रोशनी के चलते तस्वीरों के साफ होने पर संदेह जताया जा रहा है।
Highlights
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ‘गगनयान’ परियोजना के लिए मानव केंद्रित प्रणालियां विकसित करने के लिहाज से सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। रक्षा मंत्रालय ने एक विज्ञप्ति में बताया कि डीआरडीओ द्वारा इसरो को मुहैया कराई जाने वाली कुछ महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में अंतरिक्ष में भोजन संबंधी तकनीक, अंतरिक्ष जाने वाले दल की सेहत पर निगरानी, सर्वाइवल किट, विकिरण मापन और संरक्षण, पैराशूट आदि शामिल हैं।
मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र (एचएसएफसी) के निदेशक डॉ एस उन्नीकृष्णन नैयर की अध्यक्षता में इसरो के वैज्ञानिकों के एक दल ने यहां डीआरडीओ की विभिन्न प्रयोगशालाओं के साथ करार किये जिनके तहत मानव अंतरिक्ष मिशन से जुड़ी तकनीक तथा मानव केंद्रित प्रणालियां मुहैया कराई जाएंगी।
बहरहाल, LRO द्वारा भेजी जाने तस्वीरों से इसरो को विक्रम लैंडर की मौजूदा स्थिति के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है। गौरतलब है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरे विक्रम लैंडर से संपर्क करने के लिए अब इसरो के पास महज 5 दिन का वक्त ही बचा हुआ है।
चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण GSLV MK-III M1 से हुआ था।
चंद्रयान-2 मिशन के तहत ऑर्बिटर की लाइफ एक साल की है, जबकि विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की मिशन लाइफ एक चंद्र दिवस के बराबर है। यानी कि 14 दिन।
चंद्रयान-1 की तरह इस मिशन में भी 'सॉफ्ट लैंडिंग' प्रस्तावित थी। विक्रम लैंडर को चांद की सतह पर इसी तरीके से उतरना था, पर उसकी 'हार्ड लैंडिंग' और लैंडिंग से ऐन पहले उसका इसरो से संपर्क टूट गया था। चंद्रयान-1 का वजह 1380 किलो था, जबकि चंद्रयान-2 3850 किलोग्राम का था।
चंद्रयान-2 मूलतः चंद्रयान-1 का फॉलो-ऑन मिशन है। और सरल तरीके से समझें से यह उसकी दूसरी कड़ी या चरण है। चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं। चंद्रयान-2 से चांद के अनसुलझे रहस्य खुलने की उम्मीदें हैं।
दरअसल, इस लैंडर के अंदर बंद प्रज्ञान रोवर की जीवन अवधि एक चंद्र दिवस यानी 14 दिन ही है। 7 सितंबर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश के दौरान विक्रम से संपर्क टूट गया था। अब इसरो ही नहीं, अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा भी विक्रम से किसी तरह संपर्क करने की कोशिश में लगा हुआ है।
इसरो का चंद्रयान-2 मिशन भले ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में नाकाम रहा हो, लेकिन इससे पहले इसरो चंद्रयान-1 मिशन को सफलतापूर्वक साल 2008 में अंजाम दे चुका है।
ब्रैड पिट ने सोमवार को अन्तरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर तैनात वैज्ञानिकों से बात की। इस दौरान ब्रैड पिट ने ISS के वैज्ञानिकों से चंद्रयान-2 के बारे में सवाल करते हुए पूछा कि क्या उन्होंने भारतीय चंद्र मिशन की फेल लैंडिंग देखी? इस पर ISS के वैज्ञानिकों ने इंकार कर दिया।
यदि ‘विक्रम’लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकलता और एक चंद्र दिवस यानी कि पृथ्वी के 14 दिन जितनी अवधि तक चंद्र सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता। हालांकि सॉफ्ट लैंडिंग ना होने के चलते इसरो की यह योजना सफल नहीं रही।
इसरो ने भी लैंडर के लोकेशन का पता लगा लिया है, लेकिन अभी तक संपर्क कायम करने में कामयाबी नहीं मिल पाई है। इसरो ने विक्रम की कोई तस्वीर भी जारी नहीं की है। हालांकि, स्पेस एजेंसी ने कहा था कि चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल तस्वीर खींची है। इसरो चीफ के सिवन भी कह चुके हैं कि एजेंसी लैंडर से आखिरी वक्त तक संपर्क की कोशिश करती रहेगी।
चंद्र मिशन के तहत ‘चंद्रयान-2’ ने गत 22 जुलाई को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी थी। यान ने पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षा सहित सभी चरणों को सफलतापूर्वक पूरा किया। हालांकि, गत सात सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के प्रयास के अंतिम क्षणों में लैंडर ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। उसके बाद से ही इसरो के वैज्ञानिक लैंडर से संपर्क करने की कोशिशों में जुटे हैं।
पूर्व इसरो प्रमुख ने कहा, ‘‘हम शानदार परिणाम मिलने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि हम अपने माइक्रोवेव ड्युअल फ्रीक्वेंसी सेंसरों का इस्तेमाल कर स्थायी रूप से अंधकार में छाए रहने वाले (चांद के) क्षेत्रों का मानचित्रीकरण करने में सफल होंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा हमारे पास अत्यंत उच्च गुणवत्ता वाले कैमरे तथा दीर्घ स्पेक्ट्रल रेंज है।’’
पूर्व इसरो चीफ ने कहा कि पूर्व में नासा जेपीएल से 'चंद्रयान-1' द्वारा ले जाए गए दो उपकरणों की तुलना में इस बार के उपकरण तीन माइक्रोन से लेकर पांच माइक्रोन तक की स्पेक्ट्रम रेंज तथा रडारों, दोनों के मामलों में 'शानदार प्रदर्शन' करने की क्षमता से लैस हैं।
उन्होंने कहा, "एक सिंथेटिक अपर्चर रडार की जगह (इस बार) हमारे पास दो फ्रीक्वेंसी रडार हैं। इस तरह इसमें अनेक नयी क्षमताएं हैं। वास्तव में यह बेहतर परिणाम हासिल करने में हमारी मदद करेगा।"
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख ए एस किरण कुमार का कहना है कि लैंडर ‘विक्रम’ और इसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ से संपर्क टूट जाने के बावजूद ‘चंद्रयान-2’ का ऑर्बिटर ‘‘बेहतर परिणाम’’ देने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि लैंडिंग को छोड़कर अन्य सभी गतिविध योजनाबद्ध तरीके से हुई हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस बार का ऑर्बिटर महत्वपूर्ण उपकरणों से लैस है जो एक दशक पहले भेजे गए ‘चंद्रयान-1’ की तुलना में अधिक शानदार परिणाम देगा।
इसरो के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि चंद्र सतह पर ‘विक्रम’ की ‘हार्ड लैंडिंग ने इससे पुन: संपर्क को कठिन बना दिया है क्योंकि हो सकता है कि यह ऐसी दिशा में न हो जिससे उसे सिग्नल मिल सकें। उन्होंने चंद्र सतह पर लगे झटके से लैंडर को नुकसान पहुंचने की भी आशंका जतायी।
विक्रम से संपर्क करने को लेकर इसरो के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘उत्तरोत्तर, आप कल्पना कर सकते हैं कि हर गुजरते घंटे के साथ काम मुश्किल होता जा रहा है। बैटरी में उपलब्ध ऊर्जा खत्म हो रही होगी और इसके ऊर्जा हासिल करने तथा परिचालन के लिए कुछ नहीं बचेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक गुजरते मिनट के साथ स्थिति केवल जटिल होती जा रही है...‘विक्रम’ से सपंर्क स्थापित होने की संभावना कम होती जा रही है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या संपर्क स्थापित होने की थोड़ी-बहुत संभावना है, अधिकारी ने कहा कि यह काफी दूर की बात है।
बता दें कि विक्रम लैंडर से संपर्क कर और रोवर प्रज्ञान को बाहर निकालने में अब सिर्फ 4-5 दिन का ही वक्त बचा है। दरअसल रोवर प्रज्ञान लूनर डे में ही काम कर सकता है और चांद पर यह 14 दिन का होता है। जिस दिन विक्रम लैंडर को चांद पर उतरना था, उस दिन लूनर डे की शुरुआत थी, जो कि 20-21 सितंबर तक चलेगा। ऐसे में इसरो के वैज्ञानिकों के पास विक्रम लैंडर से संपर्क स्थापित कर रोवर प्रज्ञान का इस्तेमाल करने में अब कुछ ही दिन का वक्त बचा है।
इसरो ने कहा था कि वह 14 दिन तक लैंडर से संपर्क साधने की कोशिश करता रहेगा।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों की तमाम कोशिशों के बावजूद लैंडर से अब तक संपर्क स्थापित नहीं हो पाया है। हालांकि, ‘चंद्रयान-2’ के आर्बिटर ने ‘हार्ड लैंडिंग’ के कारण टेढ़े हुए लैंडर का पता लगा लिया था और इसकी ‘थर्मल इमेज’ भेजी थी। भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिक लैंडर से संपर्क साधने की हर रोज कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रत्येक गुजरते दिन के साथ संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं।
‘चंद्रयान-2’ के लैंडर ‘विक्रम’ से पुन: संपर्क करने और इसके भीतर बंद रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकालकर चांद की सतह पर चलाने की संभावनाएं हर गुजरते दिन के साथ क्षीण होती जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि गत सात सितंबर को ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की प्रक्रिया के दौरान अंतिम क्षणों में ‘विक्रम’ का जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। यदि यह ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में सफल रहता तो इसके भीतर से रोवर बाहर निकलता और चांद की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देता। लैंडर को चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए डिजाइन किया गया था। इसके भीतर बंद रोवर का जीवनकाल एक चंद्र दिवस यानी कि धरती के 14 दिन के बराबर है।
नासा का लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) चांद की सतह पर पड़े विक्रम लैंडर की एक्सक्लूसिव तस्वीरें इसरो को मुहैया कराएगा।