हेलीकॉप्टर कंपनी पवन हंस की बिक्री पर केंद्र सरकार ने रोक लगाने का फैसला लिया है। दरअसल पवन हंस के लिए सबसे बड़ी बोली स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने लगाई थी। लेकिन इस कंपनी के बैकग्राउंड पर सवाल उठने के चलते केंद्र सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। इससे पहले अप्रैल महीने में सरकार ने पवन हंस की बिक्री पर मुहर लगाई थी।
बता दें कि पवन हंस कंपनी में सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी थी, जिसे स्टार 9 मोबिलिटी ग्रुप ने सबसे बड़ी बोली लगाकर खरीदा था। जानकारी के मुताबिक सरकार और स्टार9 के बीद यह डील 211.14 करोड़ रुपये में हुई थी। लेकिन अब कंपनी के बैकग्राउंड पर सवाल उठने के चलते केंद्र सरकार ने इसे बेचने के फैसले पर रोक लगा दी है।
गौरतलब है कि इससे पहले भी सरकार के स्वामित्व वाली इस फर्म को बेचने के तीन असफल प्रयास हो चुके हैं। समाचार पोर्टल मनीकंट्रोल के हवाले से निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) के सचिव तुहिन कांता पांडे ने कहा था, “हम कानूनी रूप से इसकी जांच कर रहे हैं। हमने सफल बोली लगाने वाले को लेटर ऑफ अवार्ड जारी नहीं किया है।”
दिशा निर्देशों के अनुसार अगर बोली लगाने वाली कंपनी या उसके निदेशक किसी न्यायालय द्वारा किसी मामले में दोषी हों या नियामक प्राधिकरण द्वारा अभियोग या प्रतिकूल आदेश का सामना कर रहे हैं, तो इस तरह की बोली के लिए उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। वहीं कांग्रेस ने भी इस डील को लेकर सवाल खड़े किये थे।
सौदे को लेकर कांग्रेस ने आरोप लगाया कि जिस कंपनी ने पवन हंस के लिए बोली लगाई है वो 6 महीने ही पुरानी है। कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने दावा किया था कि ये कंसोर्शियम केवल 6 महीने पहले 29 अक्टूबर 2021 को गठित हुआ था। वहीं पवन हंस की बात करें तो इसे 15 अक्टूबर 1985 को रजिस्टर किया गया था।
सरकार और उसकी ही एक कंपनी ONGC ने पवन हंस को एक साथ मिलकर शुरू किया था। शुरुआती दौर में इसमें 78 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी सरकार के पास थी। लेकिन कुछ साल पहले ही सरकार ने अपनी हिस्सेदारी 78 से घटाकर 51 प्रतिशत कर ली थी। जिसके बाद इसमें ONGC की हिस्सेदारी बढ़कर 49% पर पहुंच गई।