शिक्षा मंत्रालय ने फरवरी 2017 में आईआईएम रोहतक के निदेशक के रूप में धीरज शर्मा की नियुक्ति को आधिकारिक रूप से मंजूरी दे दी। दो साल बाद, जब उनकी नियुक्ति को इस आधार पर कानूनी रूप से चुनौती दी गई थी कि वह इस पद को धारण करने के लिए अयोग्य थे, तो मंत्रालय ने कहा कि उनकी नियुक्ति में उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था।

अब एक साल से अधिक समय के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया कि धीरज शर्मा ने मंत्रालय को अपनी स्नातक की डिग्री प्रदान नहीं की। इसके बाद मंत्रालय ने अदालत में कहा है कि धीरज शर्मा नौकरी के लिए अयोग्य हैं और अपनी शैक्षिक योग्यता को छिपाने और गलत बयानी करने के लिए प्रशासनिक, दीवानी और आपराधिक कानूनी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी है।

इस पद के लिए प्रथम श्रेणी में स्नातक की डिग्री शर्त थी, लेकिन सरकार ने धीरज शर्मा को दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) से स्नातक स्तर पर द्वितीय श्रेणी के बावजूद मंजूरी दे दी। धीरज शर्मा ने अपना पहला पांच साल का कार्यकाल पिछले साल फरवरी में पूरा किया और आईआईएम अधिनियम (IIM Act) के तहत 28 फरवरी 2022 को संस्थान के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (BoG) द्वारा दिया गया अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं।

हाल ही में कोर्ट फाइलिंग के अनुसार सरकार ने प्रस्तुत किया है कि धीरज शर्मा के अनैतिक और कपटपूर्ण कदाचार ने उन्हें IIM निदेशक के पद को संभालने के लिए पूरी तरह से अयोग्य बना दिया है। सरकार ने मंत्रालय के कारण बताओ नोटिस को चुनौती देने वाली धीरज शर्मा की याचिका के जवाब में पिछले हफ्ते पंजाब और हरियाणा की अदालत में हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामे में उनसे यह बताने के लिए कहा गया था कि उन्हें अपने पद का दुरुपयोग करने, अपनी स्नातक की डिग्री को छिपाने और उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए।

धीरज शर्मा ने पिछले साल उच्च न्यायालय में इस आधार पर नोटिस को खारिज करने के लिए याचिका दायर की थी कि सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है क्योंकि संस्थान का बोर्ड ऑफ गवर्नर्स नियुक्ति प्राधिकारी है।

हालाँकि मंत्रालय ने प्रस्तुत किया है कि धीरज शर्मा ने न केवल सरकार से बल्कि अदालत से भी अपनी अयोग्यता को छुपाया। ऐसा आरोप है कि उन्होंने निदेशक के पद पर अपनी नियुक्ति को चुनौती देने वाले एक अलग मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपने जवाब में झूठ बोलना जारी रखा।