केंद्र सरकार ने सेम सेक्स मैरिज या समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने का विरोध किया है। रविवार (16 अप्रैल, 2023) को सरकार की ओर से अर्जी दाखिल की गई थी, जिसमें समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं की विचारणीयता पर सवाल उठाए गए हैं। सरकार ने तर्क दिया कि हिंदू और मुस्लिम धर्म में भी सेम सेक्स मैरिज अमान्य है।

सरकार ने अपनी दलील में कहा कि सामाजिक-कानूनी रिश्ते जैसे विवाह सभी धर्मों में भारतीय सामाजिक संदर्भ में गहराई से निहित हैं और वास्तव में हिंदू कानून की सभी शाखाओं में इसे पवित्र माना जाता है। केंद्र ने कहा कि यहां तक कि इस्लाम, जिसमें शादी एक अनुबंध है, उसमें भी एक वैध विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच होता है।

केंद्र सरकार ने अपनी अर्जी में अनुरोध किया कि पहले इस बात पर सुनवाई होनी चाहिए कि ये याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं भी या नहीं। सरकार ने कहा कि जो लेग समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराने की मांग कर रहे हैं, वे अर्बन एलीट हैं और यह आम लोगों की राय नहीं है। केंद्र सरकार ने इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। केंद्र सरकार ने कहा कि समलैंगिक विवाह को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया गया है। केंद्र का कहना है कि कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है और उसी के आधार पर अधिकार भी दिए गए हैं। सरकार का कहना है कि ऐसे में समलैंगिक शादी में विवाद पर पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा। केंद्र ने कहा कि शादी पर फैसला सिर्फ संसद ले सकती है, सुप्रीम कोर्ट नहीं।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी. के. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करेगी। इस पीठ में न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला भी शामिल हैं। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को 13 मार्च को पांच न्यायाधीशों की इस संविधान पीठ के पास भेज दिया था और कहा था कि यह मुद्दा बुनियादी महत्व का है। इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं। दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने के उनके अधिकार के क्रियान्वयन और विशेष विवाह कानून के तहत उनके विवाह के पंजीकरण के लिए संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिन पर न्यायालय ने पिछले साल 25 नवंबर को केंद्र से अपना जवाब देने को कहा था।