आजादी के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है जब जनगणना पर संकट मंडरा रहा है। नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध प्रदर्शन के बीच जनगणना के लिए जुटाए जा रहे आंकड़ों पर भी असर पड़ता नजर आ रहा है। 2021 की जनगणना NRC और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के साथ-साथ एक परेशानी का सबब बन सकती है।
ऐसा पहले नहीं होता था लेकिन अब लोग नागरिकता गंवाने के डर से सवालों के जवाब नहीं दे रहे हैं। यही नहीं लोग सर्व करने वालों के साथ मारपीट भी कर रहे हैं। सीएए और एनआरसी विवादित है लेकिन जनगणना के साथ ऐसा नहीं है बावजूद इसके लोग इन चीजों में फर्क नहीं कर पा रहे हैं।
मसलन, आंध्र प्रदेश में नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के लोगों के साथ मारपीट की गई थी। लोगों को सवालों को लेकर लगा था कि यह एनआरसी से जुड़ा सर्वे है। बंगाल में भी लोगों को कुछ ऐसी समस्या का सामना करना पड़ा था। इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के मुताबिक आजादी के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि जनगणना करने में समस्या आ रही है और इसके कारण जनगणना पर बैन भी लग सकता है।
महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर के बीच एक या सभी को लागू करने से इनकार कर दिया है। लोगों की आशंकाओं को स्वीकार करने के लिए भाजपा ने कुछ सवालों (जैसे माता-पिता के जन्मस्थान) को हटा दिया है। केंद्र सरकार का कहना है कि पूरेे भारत के लिए NRC अभी तक तय नहीं की गई है। इससे पहले असम में एनआरसी लागू किया गया था।
दस्तावेज दिखाने में 1.9 मिलियन लोग असफल रहे थे। जिनमें से 1.2 मिलियन हिंदू थे, 0.6 मिलियन मुस्लिम थे और 0.1 मिलियन आदिवासी थे। इससे पता चलता है कि इसके जरिए अवैध लोगों की पुष्टि नहीं हुई बस कागजात दिखाने में असफल लोग ही सामने आ पाए और इस कानून का मुख्य उद्देश्य ही पूरा नहीं हो सका।
