संसदीय मामलों की कैबिनेट कमेटी (सीसीपीए) ने 29 नवंबर से 23 दिसंबर तक शीतकालीन सत्र आयोजित करने की सिफारिश की है। कोरोना महामारी के प्रभाव को देखते हुए ये सत्र भी कोविड-19 की गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए आयोजित किया जाएगा।

बता दें कि बीते साल कोरोना की वजह से संसद का शीतकालीन सत्र नहीं हुआ था। ऐसे में जब इस बार इसे आयोजित होना है, तो सांसदों को कोरोना गाइडलाइंस का कड़ाई से पालन करना होगा।

बता दें कि अगले साल देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे में संसद का ये सत्र काफी अहम है। चुनाव को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार इस सत्र में कई विधेयक पेश कर सकती है।

इस बीच एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का एक बयान भी सामने आया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि हम संसद के शीतकालीन सत्र में चीन के साथ सीमा पर स्थिति पर बहस की मांग करते हैं।

उन्होंने कहा कि हम यह मांग भी करते हैं कि सांसदों के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को सभी विवादित सीमावर्ती इलाकों में ले जाया जाए। यह हमें अपनी संप्रभुता को फिर से स्थापित करने की अनुमति देगा।

शीतकालीन सत्र क्या होता है?

भारत में मुख्य रूप से 3 संसद सत्र होते है, जिनका नाम बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र है। शीतकालीन सत्र का आयोजन ठंड के मौसम में होता है और इसकी शुरुआत नवंबर में होती है और ये दिसंबर तक खत्म हो जाता है। इसे तीनों सत्रों में सबसे छोटा सत्र भी कहते हैं।

जो विधेयक किसी वजह से मानसून सत्र में पास नहीं हो पाते या किसी वजह से बच जाते हैं, उन्हें शीतकालीन सत्र में पास कराने की कोशिश की जाती है।

संसद के किसी भी सत्र को बुलाने की शक्ति सरकार के पास होती है और इसका निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति लेती है। देश में सबसे लंबा बजट सत्र होता है और ये जनवरी में शुरू होता है और अप्रैल-मई तक चलता है। इसके बाद मानसून सत्र जुलाई से अगस्त के बीच चलता है।