केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) में के शीर्ष अधिकारियों के बीच कलह में गुजरात के दो अधिकारियों की प्रमुख भूमिका रही। केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद, सीबीआई में गुजरात कैडर के कई अधिकारियों को नियुक्त किया गया, जिनमें आगे चलकर मतभेद हो गया। सत्ता में आने के करीब 11 महीने बाद, अप्रैल 2015 में केंद्र ने गुजरात से ताल्लुक रखने वाले दो अधिकारियों को सीबीआई में वरिष्ठ पदों पर नियुक्त किया। 1984 बैच (असम-मेघालय) के आईपीएस वाई.सी. मोदी को एडिशनल डायरेक्टर बनाया गया और उन्होंने 1 जुलाई को चार्ज लिया। वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उस विशेष जांच दल का हिस्सा थे जिसने 2002 गुजरात दंगों की जांच की और नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी।
गुजरात कैडर, 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी अरुण कुमार शर्मा ने अप्रैल, 2015 में ज्वाइंट डायरेक्टर का पद संभाला। शर्मा के ऊपर इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले से जुड़ी एक विवादित बैठक में शामिल होने के आरोप हैं। इसे अलावा एक स्टिंग में भी उनका नाम आया था जिसमें दावा किया गया कि गुजरात पुलिस एक महिला आर्किटेक्ट की जासूसी कर रही है।
एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने द टेलीग्राफ से कहा, ”दोनों अधिकारियों के एजंसी में आने के कुछ समय बाद ही, ताकत की लड़ाई शुरू हो गई। तत्कालीन सीबीआई प्रमुख अनिल सिन्हा ने कुछ समय तक चुप रहना ठीक समझा।” बाद में सिन्हा ने अपने विश्वासपात्र आर.एस. भाटी को संयुक्त निदेशक(नीति) बनाया, इससे शर्मा और मोदी (वाईसी) खुश नहीं थे।
2016 की शुरुआत में, गुजरात कैडर के आईपीएस राकेश अस्थाना को सीबीआई में एडिशनल डायरेक्टर बनाया गया। अस्थाना उस दल के प्रमुख थे जिसने गोधरा ट्रेन अग्निकांड की जांच की। वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने द टेलीग्राफ से कहा, ”तब तक, सिन्हा के सहयोगियों और पीएमओ के करीबियों के बीच की जंग तेज हो चुकी थी। जांच एजंसी (CBI) दो धड़ों में बंट गई।”
सिन्हा के रिटायरमेंट के तीन दिन पहले, दिसंबर 2016 में केंद्र ने तत्कालीन विशेष निदेशक आरके दत्ता का ट्रांसफर गृह मंत्रालय में कर दिया। दत्ता अपनी वरिष्ठता के हिसाब से अगले सीबीआई प्रमुख माने जा रहे थे। उसी रात सरकार ने अस्थाना को अंतरिम सीबीआई निदेशक बना दिया। आईपीएस अधिकारियों ने इसका विरोध शुरू किया। विवाद खत्म करने को केंद्र ने तत्कालीन दिल्ली पुलिस कमिश्नर, आलोक वर्मा को फरवरी, 2017 में सीबीआई का निदेशक नियुक्त किया।
अधिकारी ने कहा, ”अस्थाना और वाईसी मोदी ने वर्मा को बॉस मानने से इनकार कर दिया। अस्थाना पीएमओ से मिल रहे समर्थन के बल पर वर्मा को बाईपास करते रहे। सीबीआई के कई अधिकारियों ने भी अस्थाना को सत्ता पक्ष से नजदीकी देख समर्थन दिया। अस्थाना का बढ़ता कद शर्मा को नागवार गुजरा, दोनों के बीच जल्द अनबन हो गई। मतभेद भांप कर वर्मा ने शर्मा को ज्वाइंट डायरेक्टर (पॉलिसी) बना दिया।”