सीबीआई के पूर्व चीफ आलोक वर्मा को मोदी सरकार के खिलाफ अदालत जाने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। आलोक वर्मा भले ही रिटायर्ड हो गए हों लेकिन उन्हें अभी तक रिटायरमेंट के बाद जीपीएफ समेत अन्य बेसिक रिटायरमेंट बेनिफिट पूरा नहीं मिला है।
इसके लिए आलोक वर्मा पिछले कई महीनों से एक जगह से दूसरी जगह चक्कर काट रहे हैं। आलोक वर्मा 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे हैं। वर्मा ने सरकार की तरफ से सीबीआई प्रमुख के पद से खुद को हटाए जाने के फैसले को अदालत में चुनौती दी थी। इसके बाद सरकार ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए उनकी पिछली सर्विस के लाभ से वंचित कर रखा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्रीय गृहमंत्रालय के पत्र के अनुसार सरकार ने आलोक वर्मा के अनधिकृत रूप से छुट्टी पर जाने को सरकारी सेवा के नियमों के तहत गंभीर उल्लंघन माना है। इस वजह से आलोक वर्मा का जीपीएफ समेत अन्य लाभों को रोक दिया है।
गृह मंत्रालय के पत्र के अनुसार कहा गया है कि मंत्रालय की तरफ से आलोक वर्मा के 11 जनवरी से 31 जनवरी तक की अवधि में अनुपस्थित रहने के मुद्दे को देखा जा रहा है और इस संबंध में फैसला लिया जाएगा। अन्य शब्दों में कहें तो आलोक वर्मा की इस छुट्टी को सरकार सर्विस ब्रेक के रूप में देख रही है। इस वजह से ही उन्हें रिटायरमेंट के बाद के लाभों से अभी वंचित रखा गया है।
मालूम हो कि आलोक वर्मा और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना का मामला एक समय काफी सुर्खियों में था। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इस मामले में दोनों पक्षों की तरफ से एक दूसरे के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी। खबर आई कि वर्मा ने अपने पद का दुरुपयोग कर अपने अधीनस्थ अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ कथित रूप से झूठी एफआईआर दर्ज कराई।
इस पर अस्थाना ने भी वर्मा पर भ्रष्टाचार से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों को कमजोर करने का आरोप लगाया। मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से खबर दी गई है कि वर्मा ने 27 जुलाई को एक पत्र लिखकर सरकार ने अपनी जीपीएफ की राशि जारी करने का आग्रह किया है।