उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पिछले महीने सीएए के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हिंसा हुई थी। इस मामले में पुलिस ने दंगा और हत्या के प्रयास का आरोप लगाते हुए 107 लोगों को गिरफ्तार किया था। लेकिन अब पुलिस को उनके खिलाफ सबूत पेश करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। अब तक पुलिस और कोर्ट ने सबूत की कमी या आरोप हटा दिए गए जाने की वजह से 19 लोगों को रिहा कर दिया है।

पांच आरोपियों के मामले में पुलिस ने खुद सीआरपीसी की धारा 169 के तहत जमानत दी है। ऐसा ‘सबूत के अभाव’ में किया जाता है। 10 अन्य आरोपियों को सत्र न्यायालय ने जमानत दे दी क्योंकि पुलिस सिर्फ यह साबित कर पायी कि वे निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने वालों में शामिल थे। पुलिस इन आरोपियों के खिलाफ दंगा में शामिल होने या फिर हत्या के प्रयास में शामिल होने का सबूत पेश नहीं कर पायी।

ये बातें सत्र न्यायाधीश संजय कुमार पचौरी द्वारा पारित जमानत के एक आदेश में उल्लिखित हैं। इसमें जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के एक होटल मैनेजमेंट छात्र शालीहीन को रिहा करने का आदेश दिया गया है। शालीहीन के पिता मोहम्मद फारूक को भी अभियुक्त बनाया गया था, जिनको पुलिन ने सीआरपीसी की धारा 169 के तहत पहले ही रिहा कर दिया गया था। मंगलवार को अदालत ने चार और आरोपियों उम्मेद, शौकीन, सलमान और इसरार की जमानत देते हुए रिहा करने का आदेश दिया।

शालीहीन की रिहाई का आदेश देते हुए न्यायाधीश पचौरी ने कहा, “आरोपी के वकील ने तर्क दिया है कि एफआईआर के अनुसार जबाद अली, मोहम्मद अली, अब्बास राजा, मिलहाल और मोहम्मद फारूक के मामले में पुलिस ने सक्षम अधिकारी के समक्ष धारा 169 सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट दर्ज की है। उन्हें पहले 21 दिसंबर, 2019 को न्यायिक हिरासत में लिया गया था।”

न्यायाधीश ने आगे कहा, “इसके अलावा रोज मेहंदी, रहबर अली, हुसैन अली, महमूद हसन, कुमैल अब्बास, शकील, आदिल, शमीम अब्बास, अदनान और सैयद कंबर अब्बास के खिलाफ भी पुलिस सिर्फ यह साबित कर सकी कि उन्होंने सीआरपीसी की धारा 144 का उल्लंघन किया है। इन सभी 15 अरोपियों को पुलिस ने रिहा करने का आदेश दिया है।” रिकॉर्ड से पता चलता है कि न्यायाधीश द्वारा जिन 15 लोगों को रिहा करने का आदेश दिया गया है, सभी एक स्थानीय मदरसे के छात्र हैं। 10 अन्य आरोपियों के मामले में पुलिस ने पुलिस ने धारा 188 से जुड़े निषेधात्मक आदेशों के उल्लंघन के अलावा अन्य सभी आरोप हटा दिए हैं।

कोर्ट ने कहा, “बचाव पक्ष के वकील ने यह भी तर्क दिया है कि घटना के सीसीटीवी फुटेज आरोपी की पहचान का पता लगाने के लिए नहीं दिए गए। पुलिस ने घटना के 24 घंटे बाद हथियारों को जब्त किया। पुलिस ने 3000 अज्ञात व्यक्तियों का नाम लिया है, जिनकी अभी भी पहचान नहीं हुई है। मैंने दोनों पक्षों को सुना है। इसके बाद आरोपियों को जमानत दी गई है।”

रिहाई के ये आदेश जिले में विरोध प्रदर्शन के एक दिन बाद 21 दिसंबर को पुलिस द्वारा दर्ज किए गए एफआईआर के विपरीत हैं। एफआईआर में पुलिस ने आईपीसी की 17 धाराओं के तहत 107 व्यक्तियों की पहचान की और 3,000 अन्य अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी।

एफआईआर में दावा किया गया था, “मदीना चौक पर मौजूद आरोपी शख्स ने दंगा में मदद की। सभी को अपनी दुकानें बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने सार्वजनिक संपत्ति को भी नष्ट कर दिया और आगजनी की। पुलिस अधिकारी भी घायल हो गए और उन्हें मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया। आरोपी भी मौके पर तैनात पुलिस को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किए गए पथराव में शामिल था।”

शालीहीन के पिता मोहम्मद फारूक को पुलिस द्वारा धारा 169 सीआरपीसी के तहत रिहा कर दिया गया था। पुलिस ने पाया कि विरोध प्रदर्शन के दौरान वे अपने कार्यालय ‘जिला रोजगार परिसर’ में मौजूद थे। अदालल ने जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए रिपोर्ट के आधार पर कहा, “आरोपी (शालीन) पिता को सरकारी कार्यालय में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक मौजूद पाया गया। जिसके आधार पर पुलिस ने उन्हें 169 सीआरपीसी के तहत रिहा कर दिया।”