सिख किसानों को उनकी जमीन से वन विभाग की बेदखली के मामले ने तूल पकड़ लिया है। दिल्ली के सिख नेताओं ने प्रधानमंत्री से इस बाबत तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। सिखों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के समय 60 साल से ज्यादा समय से बसे किसानों को हटाने का फरमान अन्याय है। उन्होंने दावा किया कि जमीनों पर खड़ी फसलों को हटाने के नोटिस जारी किए गए हैं।
दरअसल, उत्तर प्रदेश के बिजनौर और लखीमपुर खीरी में सिख किसानों को उनकी जमीनों से वन विभाग उन्हें हटा रहा है। कई जगह से उन्हें बेदखल किया जा चुका है। दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने बताया कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद आकर बसने वाले सिखों की ओर से अपने खून-पसीने से उपजाऊ बनाई गई जमीन पर वन विभाग की ओर से कब्जा करने की कोशिशें हो रही हैं।
इसे लेकर कई पीड़ित सिख किसान दिल्ली में हैं और वे दिल्ली मे मौजूद सिख नेताओं के जरिए प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क में जुटे हैं। जानकारी के मुतािबक, सिख पंथक पार्टी जागो ने मामले पर प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क साधा है। जागो प्रमुख मंजीत सिंह जीके ने बताया कि फिलहाल जो मामले उठे हैं वे उत्तर प्रदेश से जुड़े हैं।
पहला मामला जनपद बिजनौर की तहसील नगीना के ग्राम चंपतपुर का है। जहां 1950-1955 में आकर यहां आबाद हुए कुछ सिख परिवारों को उस समय की सरकारों ने खाली पड़ी बेआबाद जमीन उन्हें दी थी। सिख किसानों को खेती के लिए मौखिक तौर पर बसाया दिया गया। सिख किसानों ने बंजर जमीन को उपजाऊ तथा आबाद किया। इस समय उक्त किसानों की तीसरी-चौथी पीढ़ी इन जमीनों पर खेती कर रही हैं। जिसके लिए बाकायदा उक्त जमीनों पर खेती के लिए नलकूपों पर किसानों ने बिजली कनेक्शन लिए हुए हैं। सिख किसान पक्के मकान बनाकर अपने परिवार सहित यहां रहें हैं। अब इन्हें यहां से हटाया जा रहा है।
जीके ने बताया कि दूसरा मामला जनपद लखीमपुर खीरी की तहसील निघासन के ग्राम रन नगर के 250-300 सिख परिवारों का है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद आकर बसने वाले 250-300 सिख परिवारों को विक्रम शाह ने यहां बसाया। विक्रम शाह से जमीनें खरीद उन्होंने खेती शुरू की। उस समय जमीन की रजिस्ट्री नहीं होती थी। इसलिए जमीन विक्रम शाह के नाम पर ही बनी रही। लेकिन जब 1966 में इस संबंधी बंदोबस्त शुरू हुआ तो सरकारी अमले ने उक्त जमीन सीलिंग में घोषित कर दी और अपने रिकॉर्ड में इसे वन भूमि के तौर पर दर्ज कर लिया।
1980 में हुई चकबंदी में इन सिख परिवारों को 1960 से काबिज मानते हुए इनके खाते बांध दिए और इसकी खतौनी आज भी इनके पास हैं। इन्हीं खतौनियों की वजह से 1980 में चीनी मिलों में यह शेयर होल्डर भी बनें और नलकूपों पर बिजली के कनेक्शन भी लिए। सरकार ने भी बिजली,पानी की टंकी, पक्की सड़कें और विकास के कई कार्य करवाए। जीके ने बताया कि तीसरा मामला जनपद पीलीभीत का है। सन 1964 में गुरुद्वरा नानक साहब में नानक सागर बांध के निर्माण के लिए सरकार की ओर से जमीन अधिग्रहण की गई थी। उस समय 168 सिख परिवारों की करीब 3000 एकड़ जमीन भी इस बांध के लिए अधिग्रहित हो गई थी।

