कैप्टन अंशुमान सिंह 19 जुलाई 2023 को सियाचिन में शहीद हो गए थे। 5 जुलाई को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। कीर्ति चक्र को उनकी पत्नी स्मृति और मां मंजू सिंह ने ग्रहण किया। इसके बाद परिवार में विवाद शुरू हो गया है। अंशुमान सिंह की शहादत के ठीक 5 महीने पहले ही उनकी शादी हुई थी। यानी उनकी पत्नी 5 महीने बाद ही विधवा हो गई।
अंशुमान सिंह के माता-पिता का दर्द आया सामने
अब अंशुमान सिंह के माता-पिता का दर्द सामने आया है। अंशुमान सिंह के माता-पिता ने कहा है कि वह कीर्ति चक्र को छूने को तरस गए और उनकी पत्नी उसे साथ लेकर चली गई। अंशुमान के माता पिता के अनुसार पत्नी कीर्ति चक्र और अन्य यादों को साथ लेकर अपने घर गुरदासपुर चली गईं। इसके अलावा उन्होंने दस्तावेजों में दर्ज अपना स्थाई पता भी बदलवा लिया और गुरदासपुर करवा लिया।
शहीद अंशुमान सिंह के पिता रवि प्रताप सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उनके बेटे को अदम्य साहस के लिए कीर्ति चक्र मिला। इसको हासिल करने के लिए अंशुमान की मां भी साथ गई थी। राष्ट्रपति ने मेरे बेटे की शहादत पर कीर्ति चक्र तो दिया लेकिन मैं उसे एक बार भी छू नहीं पाया।
क्या होता है NOK नियम?
अब इस पूरे मामले में नेक्स्ट ऑफ किन (NOK) नियम चर्चा में है। इसी में कैप्टन अंशुमान सिंह के पिता ने बदलाव की मांग की है। NOK का अर्थ जवान के जीवनसाथी, करीबी परिजन, परिवार के सदस्य या कानूनी अभिभावक होते हैं। जब भी कोई शख्स सेना में भर्ती होता है तो उसके माता-पिता या अभिभावकों को NOK के रूप में नॉमिनेट किया जाता है। वहीं जब व्यक्ति की शादी होती है तब जवान इसमें बदलाव कर सकता है।
यदि किसी आर्मी ऑफिसर या जवान को ड्यूटी के दौरान कुछ होता है तो मुआवजे की राशि से लेकर सभी सुविधाएं NOK को दी जाती है। अगर सैनिक शादीशुदा होता है तो उसकी पत्नी को धनराशि दी जाती है और अगर नहीं होता है तो उसके मां-बाप को दी जाती है। अब अंशुमान सिंह के पिता इन्हीं नियमों में बदलाव चाहते हैं, ताकि शहीद की विधवा के अलावा मां-बाप को भी कुछ हिस्सा मिले