देश में स्मार्टफोन का बढ़ता इस्तेमाल और तेज गति इंटरनेट तक व्यापक पहुंच के कारण यहां आभासी खेलों का क्षेत्र वैश्विक परिदृश्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना रहा है। भारत वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े आभासी खेल बाजारों में शामिल है। इस मामले में यहां वर्ष 2023 में 56 करोड़ 80 लाख उपयोगकर्ता आधार मौजूद थे। देश में यह क्षेत्र वित्त वर्ष 2020-23 में 28 फीसद चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा है। यह उल्लेखनीय वृद्धि न केवल बड़ी मात्रा में विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित कर रही है, बल्कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के पर्याप्त अवसर भी उत्पन्न कर रही है। यह उद्योग वर्तमान में दो लाख से अधिक भारतीयों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है और इससे अगले कुछ वर्षों में दो लाख नए उच्च कौशल रोजगार के अवसर उपलब्ध होने की उम्मीद है। यह बाजार मनोरंजन उद्योग का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है, जिसमें पंद्रह करोड़ पचास लाख से अधिक लोग आभासी खेलों ‘पोकर’ और ‘रम्मी’ जैसे खेल भी खेलते हैं, जो महंगे हैं।

जानकारों के अनुसार, वर्ष 2025 के अंत तक भारत में आभासी खेलों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या 60 करोड़ से अधिक हो जाने की संभावना है। यानी चीन के बाद भारत सबसे बड़ा आभासी खेल बाजार कहलाएगा। आभासी खेलों के शौकीनों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ इस उद्योग में निवेशकों की रुचि भी बढ़ रही है, इस कारण यह क्षेत्र निरंतर व्यापक होता जा रहा है। इन सबके बीच आभासी खेलों के क्षेत्र में कई चुनौतियां और खतरे भी हैं।

शहर से गांवों तक फैला है ऑनलाइन खेलों का जंजाल

इंटरनेट सुविधा के विस्तार ने आभासी खेलों की पहुंच को केवल शहरी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रखते हुए इसे छोटे कस्बों और गांवों तक विस्तारित कर दिया है। सरकार की भारतनेट जैसी पहल का लक्ष्य ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में उच्च गति इंटरनेट पहुंचाना है। 5जी नेटवर्क के आगमन से इंटरनेट की गति तेजी से बढ़ी है, जो आभासी खेलों के निर्बाध संचालन के लिए जरूरी है। मोबाइल इंटरनेट की घटती दरों ने आभासी खेलों को अधिक सुलभ और सस्ता बना दिया है। ‘काउंटरपाइंट शोध’ के अनुसार, देश में लगभग 68 करोड़ स्मार्टफोन मौजूद हैं, जिनमें से 80 फीसद से अधिक 4जी और 5जी स्मार्टफोन हैं।

ग्रामीण एवं शहरी असमानताओं के बीच का अंतर, लिंग आधारित भेदभाव जैसी चुनौतियां प्रभावी

कोरोना काल में पूर्णबंदी के दौरान आभासी मनोरंजन और सामाजिक संपर्क के रूप में आनलाइन खेलों का चलन बढ़ा था, जिसे अब महज मनोरंजन के बजाय एक करिअर विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। सरकार ने आभासी खेलों के लिए एक नियामक ढांचा प्रदान किया है, जो हानिकारक सामग्री और लत संबंधी चिंताओं को दूर करने का प्रयास है। इस क्षेत्र में सौ फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने के सरकार के निर्णय से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से वित्तपोषण प्राप्त करने के रास्ते खुल गए हैं। इसके अलावा, सरकार ने हाल ही में ‘कंटेंट क्रिएटर्स अवार्ड 2024’ में आभासी खेल खेलने वालों को भी मान्यता दे दी है, जिससे इस क्षेत्र के समग्र विस्तार को बढ़ावा मिला है।

इस सब के बीच आभासी खेलों के क्षेत्र में चुनौतियां और खतरे भी कम नहीं हैं, जिनमें वित्तीय जोखिम, गोपनीयता की चिंताएं, लत लगना, साइबर सुरक्षा खतरे और नियामक अस्पष्टता शामिल हैं। आनलाइन खेलों की लत बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए एक गंभीर समस्या है, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। इसमें पैसे का दुरुपयोग और जुआ शामिल हो सकता है, जिससे वित्तीय नुकसान और कर्ज के जाल में फंसने की आशंका बनी रहती है। आभासी खेल और आभासी माध्यम से जुए में अंतर की एक महीन दीवार है। अगर किसी आनलाइन गतिविधि के लिए कौशल की आवश्यकता नहीं है, तो इसे खेल के बजाय जुआ ही माना जाएगा।

जुआ या संयोग पर निर्भर करता है ऑनलाइन खेल

खेल गतिविधियां कौशल पर आधारित होती हैं, जबकि जुआ मौके या संयोग पर निर्भर होता है। कानूनी दृष्टि से दोनों के बीच कोई स्पष्ट अंतर परिभाषित नहीं है। सरकार ने इन खेलों में शामिल जोखिम के दृष्टिगत इनके विज्ञापन के साथ लत लगने और वित्तीय जोखिम के शामिल होने के संबंध में चेतावनी भी शामिल करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन इनके विज्ञापन में ये चेतावनी इतनी जल्दी से बोली जाती है कि आम व्यक्ति को समझ में नहीं आती। पहले वित्तीय कंपनियों की कुछ योजनाओं में लोगों के निवेश के लिए विज्ञापन में इसी तरह बोला जाता था, लेकिन बाद में सेबी के इस संबंध में निर्देशों के बाद स्पष्ट चेतावनी दी जाने लगी। इसी तरह के निर्देश आभासी खेलों के लिए भी दिए जाने की आवश्यकता है।

छोटी नदियां बड़ी नदियों को करती हैं समृद्ध, उपेक्षा की वजह से तोड़ रही हैं दम

आभासी खेलों के मंच पर व्यक्तिगत जानकारी, जैसे कि नाम, पता और वित्तीय विवरण की चोरी या अन्य दुरुपयोग की संभावना भी बनी रहती है। इन खेलों को विनियमित करने के लिए स्पष्ट नियमों का अभाव है, जिससे अवैध गतिविधियों और धनशोधन का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, आभासी खेल व्यक्ति को वास्तविक दुनिया से अलग कर सकते हैं, जिससे सामाजिक अलगाव और अकेलेपन की भावना पैदा हो सकती है। इस मंच पर अनुचित सामग्री जैसे हिंसा, अश्लीलता और नशीली दवाओं का प्रदर्शन बच्चों और युवाओं के लिए हानिकारक हो सकता है। इन मंचों पर साइबर ठगी आम समस्या है, जो व्यक्तियों को आर्थिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से आहत कर सकती है। इस तरह के खेलों के आभासी मंच अक्सर दूसरे देशों में पंजीकृत होते हैं, जिससे सीमा पार नियामक में समन्वय और तालमेल मुश्किल हो जाता है।

इन खेलों को लेकर विनियामक अस्पष्टता और खंडित नीतियां कई परेशानियां उत्पन्न करती हैं। कई राज्यों में आभासी खेलों को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग कानून और नियम हैं, जिससे नीति परिदृश्य स्पष्ट नहीं रहता। सरकार ने आभासी खेलों एवं वैध सट्टे के कुल अंकित मूल्य पर 28 फीसद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू कर रखा है। इस कारण कई छोटी आभासी खेल कंपनियां अपना कारोबार बंद करने के लिए विवश हो सकती हैं। भारत में आभासी खेल उद्योग को बढ़ावा देने और उसको जुए से अलग करने की दृष्टि से यह जरूरी है कि इस क्षेत्र में नियामक स्पष्टता हो और जुए जैसे लगने वाले खेलों पर प्रतिबंध लगाया जाए।

भारतीय संस्कृति और पौराणिक कथाओं पर आधारित खेल विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस तरह के आभासी खेलों के विकास और नवउद्यम को समर्थन देने के लिए ‘क्राउड-फंडिंग’, उद्यम पूंजी निवेश और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण गतिविधियों को भी प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। भारत में आभासी खेल क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्तमान में करीब 40 फीसद है। इस क्षेत्र को महिलाओं की रुचि के अनुरूप विकसित कर इस भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है। मगर, सबसे पहले इन खेलों के संचालन के लिए जोखिमों को ध्यान में रखते हुए स्पष्ट नीति बनाने और साइबर सुरक्षा के खतरे से निपटने के उपाय करना जरूरी है।