रूस में काम कर रहे कई फर्जी इमीग्रेशन एजेंट अफसरों की मदद से दक्षिण एशियाई देशों के युवकों को तमाम तरह के लालच देकर सेना में जबरन शामिल करने के लिए दबाव बना रहे हैं। जो युवक ऐसा नहीं करते हैं, उन्हें फर्जी केस में जेलों में डाला जा रहा है। इन युवकों को बिना खाना-पानी के बुरी तरह पिटाई भी की जा रही है। वहां से किसी तरह बच कर आए हरियाणा के दो चचेरे भाइयों ने मीडिया को बताया कि इमीग्रेशन एजेंटों के कैंपों में भारत समेत विभिन्न देशों के करीब दो सौ लोग हैं। इनमें से ज्यादातर दक्षिण एशिया के लोग हैं। ये एजेंट रूस और बेलारूस की सीमा पर जंगलों में अपने कैंप लगाए हैं। दोनों भाइयों ने दावा किया कि फिर ये एजेंट उन्हें रूसी सेना में शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं।

जर्मनी में नौकरी देने के बहाने धोखे से ले गये थे दलाल

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक मुकेश (21) और सनी (24) नाम के दो चचेरे भाइयों ने कहा कि उन्हें धोखे से जर्मनी के बजाय बैंकॉक भेज दिया गया, जहां उन्हें एक होटल में नौकरी देने का वादा किया गया था। फिर बैंकॉक से उन्हें बेलारूस ले जाया गया और वहां से वे सीमावर्ती जंगलों के माध्यम से रूस में प्रवेश कर गए। वहां कैंप स्थापित किए गए थे। रूस में ये तथाकथित इमीग्रेशन एजेंट पहले इन दक्षिण एशियाई पुरुषों को रूसी वर्क परमिट, रूसी दुल्हन और यहां तक कि सेना में शामिल होने पर रूसी पासपोर्ट की पेशकश करके लुभाने की कोशिश करते हैं।

बर्फ पर लिटाकर बंदूकों और चाकू से पीटते थे

बाद में ये उन्हें यूक्रेन के खिलाफ लड़ने को कहते हैं। दोनों भाइयों ने अपने पूरे शरीर पर बुरी तरह पिटाई के निशान दिखाते हुए दावा किया कि उन्हें इन कैंपों में 15 दिनों तक भूखा, प्यासा रखा गया और शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया गया। युवकों ने बताया, “वे लोग हमें गर्म लकड़ी और माचिस की तीलियों से जलाये, बर्फ पर लिटाये, बंदूकें और चाकू से पीटे।”

एजेंटों ने धमकी दी कि यूक्रेन के खिलाफ सेना में शामिल नही होने पर वैध यात्रा परमिट के बिना रूस में प्रवेश करने के आरोप में रूस के जेल में डाल दिया जाएगा। वहां से 10 साल नहीं छूट पाओगे।

मॉस्को के एक वकील ने उन्हें जेल से बाहर निकलने और घर लौटने में मदद की। उन्होंने बताया कि रूसी वकील ने अपने काम के लिए 6 लाख रुपये लिए थे। वकील ने उन्हें बताया कि उनके देश में पेरोल पर इमीग्रेशन एजेंट हैं। मॉस्को के वकील ने बताया कि जब ये एजेंट दूसरे देशों के युवाओं को यूक्रेन से लड़ने के लिए रूसी सेना में शामिल कराते हैं तो बदले में इन एजेंटों को 2 लाख रुपये तक मिलते हैं। मुकेश और सनी को जर्मनी भेजने के असफल प्रयासों पर उनके परिवारों ने क्रमशः 35 लाख रुपये और 25 लाख रुपये खर्च किए।