भरोसे का प्रतीक’ कही जाने वाली भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) में सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान कर चुकी है। यह हिस्सेदारी किसी हालत में एलआइसी की कुल कीमत का 10 फीसद से ज्यादा नहीं होगी, लेकिन सरकार के इस फैसले का विरोध होने लगा है। एलआइसी के कर्मचारी संगठनों ने इसे देश के खिलाफ करार देते हुए चार फरवरी को एक दिन के लिए देशव्यापी हड़ताल का ऐलान किया है। विशेषज्ञों की राय में एलआइसी की हिस्सेदारी बेचने की कवायद (आइपीओ) दशक का सबसे बड़ा आइपीओ साबित हो सकता है और उसके बाद एलआइसी पूंजी के आधार पर देश की सबसे बड़ी कंपनी तक बन सकती है, जिसका बाजार मूल्यांकन आठ से 10 लाख करोड़ रुपए तक हो सकता है। समर्थन-विरोध से इतर सवाल यही है कि आखिर ऐसी क्या नौबत आ गई कि सरकार अपने भरोसे के प्रतीक को ही बेचने चली है।
अगाध परिसंपत्तियां और हिस्सेदारी: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2.1 लाख करोड़ रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है, जो कि अब तक का सबसे ज्यादा है। इनमें से एलआइसी और आइडीबीआइ से 90 हजार करोड़ रुपए हासिल करने की योजना है। भारत के बीमा बाजार में इस कंपनी का 70 फीसद से ज्यादा पर कब्जा है। कुल जीवन बीमा में से 76.28 फीसद और प्रथम वर्ष के 71 फीसद बीमा एलआइसी के पास हैं। 2019 में इसकी कुल परिसंपत्तियां 31 लाख करोड़ रुपए की आंकी गई थीं।
साल 2019 के वित्तीय वर्ष में एलआइसी को 3.37 खरब रुपए की कमाई ग्राहकों से मिलने वाले प्रीमियम से हुई, जबकि 2.2 खरब रुपए निवेश से रिटर्न के रूप में मिले। 2019 के वित्तीय वर्ष में इक्विटी इनवेस्टमेंट के तौर पर एलआइसी का निवेश 28.32 खरब रुपए, जबकि 1.17 खरब रुपए कर्ज के तौर पर और 34,849 करोड़ रुपए मुद्रा बाजार में है। एलआइसी में सरकार की हिस्सेदारी 100 फीसद है। अपने वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में एलआइसी का आइपीओ आएगा।
क्या कहता है एलआइसी अधिनियम: 1956 में भारत में जीवन बीमा के कारोबार के राष्ट्रीयकरण के तहत एलआइसी अधिनियम तैयार किया गया था। सरकार को एलआइसी का आइपीओ लाने से पहले एलआइसी अधिनियम में संशोधन करना होगा। भले ही देश के बीमा उद्योग पर इंश्योरेंस रेगुलेटरी डेवलेपमेंट अथॉरिटी (आइआरडीए) निगरानी करती है, लेकिन एलआइसी के कामकाज के लिए संसद ने अलग से कानून बना रखा है।
एलआइसी अधिनियम की धारा 37 कहती है कि एलआइसी बीमा की राशि और बोनस को लेकर अपने बीमाधारकों से जो भी वादा करती है, उसके पीछे केंद्र सरकार की गारंटी होती है। प्राइवेट सेक्टर की बीमा कंपनियों को ये सुविधा हासिल नहीं है। विनिवेश के लिए इस गारंटी को बदलने की जरूरत होगी।
एनपीए का बढ़ता बोझ: अब तक जो एलआइसी कंपनियों के शेयर खरीद रही थी, अब सरकार उसी की हिस्सेदारी बेचेगी। दरअसल, बीमार कंपनियों में पैसा लगाने और सकारात्मक नतीजे नहीं आने के कारण बीते पांच साल में एलआइसी की हालत लगातार खस्ता हुई है। बीते पांच साल में कंपनी की गैर निष्पादित परिसंपत्तियां (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स, यानी एनपीए) दोगुने स्तर तक पहुंच गए।
कंपनी की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2019 तक एनपीए का आंकड़ा निवेश के अनुपात में 6.15 फीसद हो गया। 2014-15 में एनपीए 3.30 फीसद के स्तर पर था। पांच साल में एलआइसी का एनपीए 100 फीसद बढ़ा है। 31 मार्च 2019 को कंपनी के सकल एनपीए 24 हजार 777 करोड़ रुपए थे, जबकि कंपनी पर कुल देनदारी यानी कर्ज चार लाख करोड़ रुपए से अधिक का था। एलआइसी की कुल परिसंपत्तियां 36 लाख करोड़ रुपए की हैं।
कैसे आई बदहाली: एलआइसी ने जिन कंपनियों में उसने निवेश किया था उनकी माली हालत बेहद खराब हो गई है और कई कंपनियां तो दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई हैं। इनमें दीवान हाउसिंग रिलायंस कैपिटल, इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस, पीरामल कैपिटल और यस बैंक शामिल हैं। दीवान हाउसिंग में एलआईसी का हिस्सा 6500 करोड़ से अधिक का है।
रिलायंस कैपिटल में चार हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश है। एबीजी शिपयार्ड, एमटेक आॅटो और जेपी ग्रुप में भी एलआइसी ने काफी निवेश किया है। आइडीबीआइ की 51 फीसद हिस्सेदारी के लिए एलआइसी को करीब 10,000 से 13,000 करोड़ रुपए तक का निवेश करना पड़ा। वर्ष 2015 में आॅयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (ओएनजीसी) के आइपीओ के समय एलआइसी ने 1.4 अरब डॉलर की रकम लगाई थी।
क्या कहते हैं जानकार:
‘सरकार को एलआइसी के आइपीओ से 70,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की उम्मीद है। सरकार सभी पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा करेगी। एलआइसी की आइपीओ लिस्टिंग से पारदर्शिता आएगी और लोगों की भागीदारी बढ़ेगी। ‘ – राजीव कुमार, केंद्रीय वित्त सचिव
‘एलआइसी में सरकारी हिस्सेदारी में किसी भी तरह की छेड़छाड़ से बीमाधारकों का इस संस्थान पर से भरोसा हिला देगा। सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी कंपनियों के लिए जब भी पैसे की जरूरत पड़ती है, एलआइसी हमेशा से आखिरी सहारा रहा है। ‘ – राजेश निम्बालकर, महासचिव, ऑल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस इंप्लाइज फेडरेशन