करगिल में 1999 को हुए युद्ध में जब भारत और आतंकी की वेष में आए पाकिस्तान के सैनिक आपस में उलझे हुए थे, उस तनावपूर्ण दौर में भी तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के साथ संपर्क में बने हुए थे। यह खुलासा हुआ है पूर्व पीएम वाजपेयी पर लिखी एक किताब- “द इयर्स दैट चेंज्ड इंडिया ‘वाजपेयी’ में।” इस किताब के लेखक अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में उनके निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा हैं।
किताब में कहा गया है कि वाजपेयी का हमेशा यह नजरिया था कि पाकिस्तानी सेना के जनरल परवेज मुशर्रफ ने जानबूझकर करगिल में हुए युद्ध में देश की सरकार को भी शामिल कर लिया था। इसी के चलते वाजपेयी ने तत्कालीन पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ से करगिल युद्ध के बीच ही फोन पर कम से चार से पांच बार बातचीत की। किताब में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच संघर्ष खत्म करने के लिए तब वाजपेयी ने आरके मिश्रा को प्रतिनिधि चुना था। हालांकि, पाकिस्तानी पीएम और मिश्रा के बीच हुई एक वाकये के बाद वाजपेयी ने खुद शरीफ से बातचीत की थी।
किताब में बताया गया है कि करगिल युद्ध के दौरान नवाज शरीफ की स्थिति खुद तनावपूर्ण थी। उन्होंने एक मौके पर आरके मिश्रा से कहा था कि उन्हें किसी भी तरह की बातचीत के लिए गार्डन में वॉक करनी चाहिए, यानी वे खुद के घर की निगरानी की आशंका जताई थी। इसके बाद मिश्रा ने इसकी जानकारी पीएम वाजपेयी को दी थी। वाजपेयी यह समझ चुके थे कि नवाज शरीफ मौजूदा हालात में कैदी हैं। इसके बाद उन्होंने 15 दिनों के अंदर ही शरीफ से चार से पांच बार बात की।
किताब में कहा गया है कि एलओसी से पाकिस्तानी सेना के वापस जाने की एक बड़ी वजह दो टेलिफोन रिकॉर्डिंग थीं, जो R&AW के तत्कालीन प्रमुख अरविंद दवे ने प्रधानमंत्री वाजपेयी को सौंपी थीं। इनमें पाकिस्तान के तब के आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ और उनके चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज की बातचीत थी। इन रिकॉर्डिंग से साफ था कि पूरी घटना में पाकिस्तानी सेना शामिल थी और मुजाहिद्दीन की भूमिका काफी कम थी। बताया गया है कि यह टेप राजनयिक रूट के जरिए पाकिस्तान में नवाज शरीफ के पास पहुंचे थे।
