भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के सहायक रह चुके विश्वंभर श्रीवास्तव ने शुक्रवार को दावा किया कि सितंबर 2013 में भाजपा के संसदीय बोर्ड की जिस बैठक में नरेंद्र मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया, उस बैठक में शामिल होने के लिए आडवाणी तैयार थे लेकिन लोगों ने उन्हें उनके घर पर ही रोक दिया था। ‘आडवाणी के साथ 32 साल’ नाम की अपनी किताब के विमोचन के मौके पर श्रीवास्तव ने यह दावा किया । यह किताब देश के पूर्व उप-प्रधानमंत्री आडवाणी के साथ श्रीवास्तव के तीन दशक पुराने संबंधों का संस्मरण है। इस किताब के विमोचन समारोह में भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ :आरएसएस: के पूर्व विचारक के एन गोविंदाचार्य भी शामिल थे। बहरहाल, आडवाणी के दफ्तर ने कल जोर देकर कहा था कि इस किताब के लिए उनकी सहमति नहीं दी गई है और उनकी इच्छा के खिलाफ इसे प्रकाशित किया गया है।
आडवाणी के सचिव दीपक चोपड़ा की ओर से दिए गए और पार्टी की ओर से जारी किए गए बयान में कहा गया, ‘‘यह कहना उचित होगा कि इस किताब के लिए लाल कृष्ण आडवाणी की सहमति नहीं ली गई है और उनकी इच्छा के खिलाफ इसे प्रकाशित किया गया है ।’’ श्रीवास्तव ने दावा किया कि उन्होंने आडवाणी को किताब की पहली पांडुलिपि दिखाई थी और उनके सुझाव पर किताब में कुछ चीजें संपादित भी की थी।
प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की उम्मीदवारी की संभावित घोषणा पर आडवाणी की प्रतिक्रया के बारे में पूछे गए एक सवाल पर श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘मैं आपको यह बता सकता हूं कि आडवाणी जी भाजपा कार्यालय में बैठक में शामिल होने के लिए तैयार थे और कार में बैठ भी चुके थे, लेकिन उनके घर में कुछ लोगों ने उन्हें रोक दिया ।’’
मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में रहे आडवाणी ने संसदीय बोर्ड की उस बैठक में शिरकत नहीं की थी ।
किताब में दावा किया गया है कि आडवाणी ने पार्टी के कुछ नेताओं के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था कि उनके बेटे जयंत को गुजरात के गांधीनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहिए । आडवाणी पिछले कई सालों से लोकसभा में गांधीनगर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘आडवाणी जी ने कहा था कि वह भाई-भतीजेवाद के सख्त खिलाफ हैं ।’’ इस मौके पर स्वामी ने कहा, ‘‘कोई इस किताब पर आपत्ति नहीं कर सकता । यह आडवाणी जी की एक खूबसूरत छवि पेश करती है । आडवाणी जी ने खुद तो कुछ नहीं कहा है । उनके कुछ सहायकों ने भले ही कुछ कहा होगा ।’’ आडवाणी की तारीफ करते हुए स्वामी ने कहा कि वह प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन जब वक्त आया तो उन्होंने इस शीर्ष पद के लिए पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का ऐलान कर दिया ।