Bhima Koregaon-Elgar Parishad Case: एल्गार परिषद-माओवादी लिंक केस में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू की जमानत याचिका को बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस नितिन जामदार और एनआर बोरकर की बेंच ने की। बता दें कि जुलाई 2020 में हनी बाबू को इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। अभी वह मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।
गौरतलब है कि इस साल की शुरुआत में हनी बाबू की जमानत याचिका को एनआईए की एक विशेष अदालत ने खारिज कर दिया था। जिसके बाद बाबू ने विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ इस साल जून में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया है।
इससे पहले अदालत ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले 29 अगस्त को हनी बाबू की याचिका पर सुनवाई पूरी की थी। वहीं विशेष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पहली नजर में इस बात के सबूत हैं कि हनी बाबू प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन की गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल था।
हनी बाबू को एनआईए ने 2020 में आपराधिक साजिश और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया था। बता दें कि हनी बाबू ने अधिवक्ता युग मोहित चौधरी और पायोशी रॉय के माध्यम से बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। हनी बाबू ने अपनी याचिका में कहा कि उनके खिलाफ ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि उनका इरादा भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करना था।
मेरे खिलाफ यूएपीए के तहत आरोप लगाने के लिए कोई सबूत नहीं:
हनी बाबू ने कहा कि मेरे ऊपर यूएपीए के तहत आरोप लगाने के लिए कोई सबूत नहीं है। वहीं हनी बाबू की जमानत याचिका का विरोध करते हुए एनआईए की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि बाबू नक्सलवाद को बढ़ावा देना और उसका विस्तार करना चाहते थे और उनका लक्ष्य जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकना और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ना था।
