बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महिला को 25 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दे दी है। ये अनुमति महिला के उस दलील के बाद दी गई है, जिसमें उसने कहा कि वो तथा उसके पूर्व साथी के बीच जो हुआ आपसी सहमति से हुआ, लेकिन बाद में उसके साथी ने साथ देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह अपनी पसंद के अस्पताल में यह प्रक्रिया करवा सकती है।
अदालत ने कहा, “महिला अपनी परिस्थितियों के कारण और अपने पूर्व साथी द्वारा किसी भी तरह से सहायता या समर्थन देने से इनकार करने के कारण असमंजस में है, जबकि वह वर्तमान स्थिति को लाने में सक्रिय भागीदार है”, और याचिकाकर्ता “सामाजिक कलंक के बारे में स्वाभाविक रूप से डर है तथा उसे अपने माता-पिता का सामना करना पड़ रहा है, जो इन परिस्थितियों में सहायक नहीं हो सकते हैं”।
गर्भ निरोधक दवा का नहीं हुआ असर
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति नीला के. गोखले की खंडपीठ ने गर्भावस्था जारी रखने की इच्छा नहीं रखने वाली महिला की याचिका पर 19 जून को आदेश पारित किया। पीठ ने उसके पूर्व साथी को यह भी निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता महिला को कानूनी खर्चों के अतिरिक्त उसके चिकित्सा खर्च के लिए एक लाख रुपये दे तथा यदि वह चाहे तो उसके साथ अस्पताल जाए तथा प्रक्रिया के दौरान उसके साथ रहे।
याचिकाकर्ता महिला ने दलील दी थी कि वह अपने साथी के साथ सहमति से रिश्ते में थी और गर्भ निरोधक दवा के काम नहीं करने की वजह से गर्भधारण हुआ। उसने यह भी दलील दी थी कि वह अब उक्त रिश्ते में नहीं है।
13 जून को हाईकोर्ट ने सरकारी जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को याचिकाकर्ता की जांच करने का निर्देश दिया था। जांच के दौरान मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करने वाले विशेषज्ञ ने पाया कि याचिकाकर्ता शराब पीने और धूम्रपान का सेवन करती रही है। साथ ही साथ वह आर्थिक समस्या और अंतर-व्यक्तिगत संघर्षों की वजह से उदासी और तनाव में रहती है। बोर्ड ने सर्वसम्मति से उसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत प्रक्रिया से गुजरने के लिए उपयुक्त पाया।
महिला का अजन्मे बच्चे से नहीं है कोई भावनात्मक लगाव
याचिकाकर्ता ने अदालत को यह भी बताया कि उसने कुछ महीने पहले अपनी नौकरी छोड़ दी थी और वर्तमान में नई नौकरी की तलाश करने के बजाय उसे गर्भपात कराने के लिए डॉक्टरों से परामर्श लेने के लिए इधर-उधर भागना पड़ रहा है। महिला ने अपने वकील निकिता राजे के माध्यम से अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की और तर्क दिया कि इस अजन्मे बच्चे को लिए उसके पास न तो पैसा है जिससे उसका जीवन आगे बढ़े तथा कोई भावनात्मक लगाव भी नहीं है। राजे ने कहा कि इसे जारी रखने से उसकी स्थिति की पीड़ा के कारण उसके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, “याचिकाकर्ता की शारीरिक स्थिति ठीक नहीं रही है और उसके माता-पिता या परिवार को गर्भावस्था के बारे में पता नहीं था। याचिकाकर्ता के अनुसार, अगर उसके माता-पिता को इसके बारे में पता चलता है, तो वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसी स्थिति में वह खुद को संभालने के लिए पूरी तरह से मझधार में रह जाएगी।”