योगेश कुमार गोयल
बरसात शुरू होते ही देश के विभिन्न हिस्सों से वज्रपात की घटनाएं सामने आने लगती हैं। इस साल इससे लोगों की मौत के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। एक ही दिन में ओड़ीशा के विभिन्न स्थानों पर वज्रपात से नौ लोगों की मौत हो गई। बिहार में भी रोहतास, अरवल, सारण, औरंगाबाद, पूर्वी चंपारण, बांका और वैशाली जिलों में चौबीस घंटे के भीतर बिजली गिरने से अठारह से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर में भी बिजली गिरने से हुए हादसे में आठ लोग मारे गए थे।
इस मानसून में केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में अब तक करीब सौ लोगों की मौत
उत्तर प्रदेश के ही फतेहपुर जिले में बिजली गिरने से छह लोगों की मौत हुई थी। इस मानसून में केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में अब तक करीब सौ लोगों की मौत बिजली गिरने से हो चुकी है। कहीं खेत में हल चलाते किसान पर बिजली गिर जाती है, तो कहीं राहगीर या स्कूल जाते बच्चे वज्रपात का शिकार हो जाते हैं। देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओड़ीशा सहित कुल बारह ऐसे राज्यों की पहचान की गई है, जहां हर साल सर्वाधिक बिजली गिरती है।
वैश्विक ताप का खतरा बढ़ता रहा, तो बिजली गिरने की घटनाएं 50% तक बढ़ जाएंगी
वज्रपात वैसे तो दुनिया की सबसे ज्यादा घटने वाली प्राकृतिक घटना मानी जाती है, लेकिन वर्ष-दर-वर्ष इसकी तीव्रता जिस तरह बढ़ रही है, वह गंभीर चिंता का कारण है। इसे पर्यावरण असंतुलन से जोड़कर देखा जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक ताप का खतरा अगर इसी प्रकार बढ़ता रहा, तो आज के मुकाबले इस सदी के अंत तक बिजली गिरने की घटनाएं पचास फीसद तक बढ़ जाएंगी। बिजली गिरने की दुनिया भर में प्रतिवर्ष ढाई करोड़ से भी ज्यादा घटनाएं होती हैं।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक शोध के अनुसार चूंकि भविष्य में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में गिरावट आने की कोई संभावना नहीं है, इसलिए आने वाले समय में बिजली गिरने की घटनाएं और बढ़ेंगी। अमेरिका की ‘साइंस’ पत्रिका में एक रपट के हवाले से बताया गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन के कारण धरती के तापमान में एक डिग्री की भी वृद्धि होती है, तो बिजली गिरने की घटनाएं करीब बारह फीसद बढ़ जाएंगी।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिवर्ष करीब तीन हजार लोगों की जान वज्रपात से जा रही है। केवल उत्तर प्रदेश में 2022 में करीब 370 लोगों की मौत बिजली गिरने से हुई थी। भारतीय मौसम विभाग (आइएमडी) के साथ काम करने वाली संस्था ‘क्लाइमेट रेजिलिएंट आब्जर्विंग सिस्टम्स प्रोमोशन काउंसिल’ (सीआरओपीसी) की ‘पहली वार्षिक बिजली रपट’ के अनुसार एक अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के बीच बिजली गिरने की वजह से भारत में 1,771 लोगों की मौत हुई थी।
हालांकि 2019 में ऐसे हादसों में मौतों से जुड़ी एक अन्य रपट के मुताबिक कुल 2,876 लोगों की मौत हुई। सीआरओपीसी की ‘दूसरी वार्षिक बिजली रपट’ में बताया गया था कि 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक बिजली गिरने से 1,619 लोगों की मौत हुई। रपट में बताया गया था कि 2020-21 में बिजली गिरने की घटनाओं में करीब 34 फीसद की वृद्धि हुई थी। 2019-20 में जहां कुल एक करोड़ अड़तीस लाख बार बिजली गिरी थी, वहीं 2020-21 में एक करोड़ पचासी लाख बार से ज्यादा दर्ज की गई।
राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रपट के मुताबिक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों में से सर्वाधिक 35.3 फीसद मौतें बिजली गिरने के कारण होती हैं। 1967 से 2012 के बीच देश में ऐसी मौतों में से 39 फीसद की वजह वज्रपात थी। एनसीआरबी के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष दो हजार से भी ज्यादा लोग बिजली गिरने से मरते हैं। दस्तावेजों के अनुसार 2000 से 2014 के बीच देश भर में बिजली गिरने से 32,743 लोगों की मौत हुई। पिछले एक दशक में ही देशभर में 25 हजार से ज्यादा लोग वज्रपात की चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं।
एनसीआरबी के मुताबिक देश में हर साल औसतन 2,182 लोग वज्रपात के शिकार होते हैं। बिजली गिरने से होने वाली मौत में करीब 71 फीसद वृक्षों के नीचे खड़े होने, जबकि बाकी 29 फीसद मौत खुले मैदानों या खुले स्थानों पर खड़े रहने से होती हैं। जागरूकता बढ़ाकर इनमें से करीब 80 फीसद मौत को रोका जा सकता है।
वैसे बिजली गिरने के बाद भी कई लोग किसी तरह बच जाते हैं, लेकिन उनमें से बहुतों में कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो जाती हैं। ऐसे कुछ लोगों में बिजली की बहुत तेज गर्जना के कारण कानों के पर्दे फट जाना, ऊतकों का ध्वस्त होना, तंत्रिका तंत्र पर दुष्प्रभाव, शरीर के किसी विशेष अंग या पूरे शरीर में लकवा मार जाना, कुछ मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा होना जैसी परेशानियां हो जाती हैं।
दुनिया भर में बड़े स्तर पर वनों के कटाव, जलस्रोतों के सिकुड़ने, वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने और वायुमंडल में एअरोसोल बढ़ने से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार हाल के वर्षों में वज्रपात की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं और आने वाले वर्षों में बिजली गिरने की तीव्रता में और बढ़ोतरी हो सकती है। दरअसल, पर्यावरण असंतुलन के कारण विगत कुछ वर्षों में धरती के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्मी के मौसम के तुरंत बाद बढ़ी हुई गर्मी के कारण ही मानसून की वर्षा में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा होती हैं।
धरती जितनी गर्म होगी, उससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ेगा और इससे उतनी ही ज्यादा बिजली धरती पर गिरेगी। तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण वृक्षों की अंधाधुंध कटाई भी इसका महत्त्वपूर्ण कारण है। दरअसल, वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती जब वृक्षों से आच्छादित थी, तब आकाशीय बिजली अधिकतर वृक्षों और नम जमीन पर ही गिरती थी, लेकिन वृक्षों की संख्या बहुत कम रह जाने से बिजली गिरने और इससे होने वाले हादसों की संख्या काफी बढ़ी है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि हाल के वर्षों में खेतों के आसपास ताड़ के वृक्षों की कमी ऐसी घटनाओं में लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ने की प्रमुख वजह है। दरअसल, ताड़ के वृक्ष बहुत ऊंचे होने के कारण बिजली के प्रहार को अपने ऊपर झेल लेते हैं।
प्रश्न है कि आखिर भारत में बिजली गिरने के कारण मौत का आंकड़ा इतना ज्यादा क्यों है? वज्रपात को लेकर पश्चिमी देशों में चेतावनी का मजबूत तंत्र बना हुआ है, जहां समय रहते इस संबंध में चेतावनी जारी कर दी जाती और हादसों को टाल दिया जाता है, लेकिन हमारे यहां वज्रपात के पूर्वानुमान और चेतावनी देने की सुचारु व्यवस्था अब तक विकसित नहीं हो सकी है। हमारे यहां अन्य देशों के मुकाबले मानसून के दौरान बहुत सारे लोगों को कृषि कार्यों के लिए घरों से बाहर खुले खेतों में काम करना पड़ता है, जिससे खराब मौसम में उनके वज्रपात की चपेट में आने का खतरा अधिक रहता है। हालांकि बिजली कहीं भी गिर सकती है और ऐसी घटनाओं को रोकाना संभव नहीं है, लेकिन अन्य देशों की भांति पूर्व सूचनाओं की सटीक प्रणाली विकसित करके जान-माल के बहुत बड़े नुकसान को कम अवश्य किया जा सकता है।