पहले कौन की होड़
वहीं, प्रधानमंत्री के संबोधन का समय नजदीक आ रहा था लेकिन प्रदेश के नेता जमकर मंच संभाल कर खड़े थे। जब प्रधानमंत्री के संबोधन में कम समय बचा तो गृह मंत्री भी चुटकी लेते नजर आए और बोले प्रधानमंत्री से पहले उन्हें भी बोलना है। तब कहीं जाकर प्रदेश के नेता जी ने जल्दबाजी में अपनी बात खत्म की।
जवाब नहीं है
विपक्ष में रहकर सत्ता पक्ष की घेराबंदी सबसे आसान है क्योंकि इस हालात में हमलों का जवाब नहीं मिलता। लेकिन इस बार विपक्ष को ही सियासी घमासान में फंसना पड़ा। हाल ही में जल बोर्ड मुख्यालय में इस ठंड में भाजपा ने मटका फोड़ प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन पर पहले ही सवाल उठ रहे थे। इस पर पार्टी पर हुई पुलिस प्राथमिकी ने पार्टी की रणनीति को ही पलट कर रख दिया। हालत ये है कि अब भाजपा पर सत्ता पक्ष का जबाव देते नहीं बन रहा और मुद्दा बदलने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
फोटो पर चर्चा
सत्ता से नजदीकी बताकर सरकारी विभागों के महत्त्वपूर्ण पदों पर तैनाती पाने का सिलसिला काफी पुराना है। लेकिन मौजूदा केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कार्यकाल में भी ऐसा दिखाने वाले अधिकारियों की संख्या कम जरूर हुई है लेकिन रुकी नहीं है। इसी कड़ी में नोएडा प्राधिकरण में तैनात एक पीसीएस स्तर के अधिकारी की वॉट्सऐप आइडी पर लगी फोटो इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। इस फोटो में इस अधिकारी को भाजपा में नंबर दो माने जाने वाले नेता के कान में कुछ कहते हुए दिख रहे हैं।
हालांकि अधिकारी के वॉट्सएप पर यह फोटो क्यों लगा रखी है, इसको लेकर भी लोगों की अलग- अलग राय है। अलबत्ता प्राधिकरण के खासे अहम विभाग की कमान संभाल रहे अधिकारी की यहां तैनाती कहीं इस फोटो में दिखाई गई नजदीकी की वजह से तो नहीं है? इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म जरूर है।
टूटी आस
आखिरकार लंबे इंतजार के बाद पार्टी ने निगम चुनाव और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति को ध्यान में रखते हुए पर्यवेक्षकों के नामों का ऐलान कर ही दिया। फिर क्या होना था। वही हुआ, जो अक्सर होता है। जहां कुछ पार्टी कार्यकर्ता अपने नामों को देखकर खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। वहीं, कुछ ऐसे भी थे, जो आस लगाए बैठे थे कि पर्यवेक्षक के बहाने ही पार्टी में एक जिम्मेदारी तो मिलेगी, लेकिन उन्हें बड़ी ही मायूसी हाथ लगी।
पर्यवेक्षक काफी हद तक उम्मीदवारों के नामों के चयन में अहम भूमिका निभाते हैं। इस कारण नेता जी आस लगाए बैठे थे कि टिकट नहीं तो कम से कम पार्टी ऐसा पद तो जरूर देगी। पर नामों के ऐलान के बाद उनकी यह आस टूट गई। अब नेता जी इस फिराक में हैं कि अपनी सक्रियता पार्टी पदाधिकारियों को दिखा कर किसी जानकार को टिकट दिलवाने में सफलता पा लें। अब यह तो चुनाव की घोषणा के बाद ही तय हो पाएगा कि नेता जी को इसमें भी सफलता मिलती है कि आस पर आस लगाए बैठे रहते हैं।
जरा संभल के
दिल्ली पुलिस साल बीतते-बीतते अपनी उपलब्धि तो गिना रही है लेकिन बहुत सोच समझ कर। हालांकि बीते साल इस तरह उपलब्धि गिनाते गिनाते जामियानगर में दंगे शुरू हो गए थे। यही कारण है कि कोरोना के बाद की स्थिति पर काबू पाने के बाद इस साल पुलिस बहुत संभल कर उपलब्धियां गिना रही है। बेदिल की एक आला पुलिस अधिकारी से बात हो रही थी।
जब उनसे पूछा गया कि सर, अब तो साल बीत चुका है, नए साल की कुछ योजनाओें के बारे में बताएं, तो तुरंत उनका जवाब था कि अभी नहीं, बीते साल इसी समय नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ धरना प्रदर्शन हुआ और फिर उत्तर-पूर्वी जिले में दंगे में कई परिवार सूना हो गया। इस बार भी किसानों का प्रदर्शन कहां तक ले जाएगा कहना मुश्किल है लिहाजा जरा संभल के कुछ बताना पड़ेगा।
फिर रुकी बात
बातचीत भी और शर्त भी। जी हां, किसान आंदोलन में शरीक कई किसान नेताओं पर यह बात सटीक बैठ रही है। सरकार ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है कि वो कृषि कानूनों को वापस नहीं लेने जा रही, लेकिन किसानों की जायज मांगों पर वह विचार करने को तैयार है।
बशर्ते वो जिद न पालें। इसके बाद 29 दिसंबर को बातचीत की जानी तय हो गई, लेकिन इस बाबत जो वक्तव्य किसान नेताओं ने जारी किए उसमें उनकी ओर से बातचीत को तैयार होने के साथ-साथ कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग वाली उनकी पुरानी शर्त भी शामिल है। अब बात फिर वहीं आकर रुकती नजर आ रही है, जहां पहले रूकी थी।
चर्चा गर्म है कि नतीजा फिर वही होना है जो इस दौर के पहले वाले दौर की बातचीत में निकला था। किसी ने ठीक ही कहा कि वो झुकने को तैयार नहीं और ये हटने को तैयार नहीं। अब ऊंट किस करवट बैठेगा, देखना होगा। आखिर होगा क्या? इस पर लोगों को शायद भ्रम हो लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों को नही। तभी तो वे दावा कर रहे हैं कि प्रदर्शन लंबा चलेगा।
-बेदिल

