महाराष्ट्र की राजनीति में विवाद की चर्चाओं का दौर लगातार जारी है। पहले चर्चा शिवसेना के बंटवारे की थी और अब शिवसेना (शिंदे गुट) और भाजपा के बीच खटपट की हैं। दरअसल राजनीतिक गलियारों में सुगबुगाहट है कि वरिष्ठ नेता विनय सहस्रबुद्धे को पार्टी के ठाणे क्षेत्र प्रभारी के रूप में नियुक्त करने के भाजपा के फैसले ने शिवसेना (शिंदे खेमे) को थोड़ा परेशान कर दिया है। अब समझना यह है कि आखिर इसकी वजह क्या हो सकती है?
क्यों खफा नजर आ रहा है शिंदे खेमा
भाजपा ने विनय सहस्रबुद्धे को ठाणे क्षेत्र प्रभारी बनाया है। यह क्षेत्र महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ है। यह लोकसभा सीट 1996 से शिवसेना के पास है, जब पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे ने भाजपा नेता प्रमोद महाजन के साथ चर्चा के दौरान इस बात पर जोर दिया था कि यह सीट उनकी पार्टी को सौंपी जाए। 2009 में एनसीपी ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, इस चुनाव को छोड़कर सभी लोकसभा चुनावों में शिवसेना ने यह सीट जीती है।
विनय सहस्रबुद्धे के प्राभरी बनाए जाने से शिंदे को क्या डर है?
विनय सहस्रबुद्धे की एंट्री से शिंदे सेना को यह संकेत मिल गया है कि बीजेपी अब इस सीट को वापस चाहती है, 2009 में सीट जीतने वाले राकांपा नेता संजीव नाइक अब भाजपा के साथ हैं और वर्तमान सांसद राजन विचारे सेना के उद्धव ठाकरे गुट के साथ हैं। इसके अलावा पास के कल्याण निर्वाचन क्षेत्र पर मुख्यमंत्री के बेटे श्रीकांत शिंदे का कब्जा है। भाजपा नेताओं का तर्क है कि इसलिए पार्टी को उस सीट को फिर से हासिल करना होगा जो 1990 के दशक के मध्य तक उसका गढ़ थी।
NCP गेम में आने से बदल रहे समीकरण
भाजपा, शिवसेना के अलावा ठाणे में एनसीपी भी नजर आ रही है। चूंकि एनसीपी अब भाजपा के साथ शामिल है और 2009 में एक बार इस सीट पर कब्जा भी जमा चुकी है तो ज़ाहिर सी बात है कि यह शिंदे खेमे के लिए एक खराब समीकरण हो सकता है। भाजपा बिना शिवसेना (शिंदे गुट) की परवाह किए बिना एनसीपी का साथ लेकर खुद को मजबूत स्थिति में खड़ा कर सकती है।