मोदी सरकार ने निजीकरण के अगले पड़ाव में 4 बैंको का चुनाव कर लिया है। इन बैंकों में बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ़ इंडिया, इन्डियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया शामिल हैं। इनमें से दो बैंको का निजीकरण अगले वित्तीय वर्ष में किया जाएगा। बैंको के निजीकरण होने से यहाँ काम कर रहे कई लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ सकती है। साथ ही सरकार आने वाले समय में बड़े बैंको का भी प्राइवेटाइजेशन कर सकती है।
समाचार एजेंसी रायटर्स के अनुसार सरकारी सूत्रों ने बताया कि चुने गए 4 बैंकों में दो बैंकों का निजीकरण 2021-22 में हो सकता है। हालाँकि सरकार ने अभी सार्वजनिक तौर पर इन बैंको के नाम की घोषणा नहीं की है। असल में सरकार निजीकरण के जरिए अपने आय का स्रोत बढ़ाना चाहती है। इसलिए सरकार बड़े स्तर पर निजीकरण करने का प्लान कर रही है।
इन बैंको के निजीकरण होने से बड़े स्तर पर कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है। वर्तमान में करीब सवा लाख से ज्यादा लोग इन बैंको पर अपनी रोजी रोटी के लिए निर्भर हैं। इनमें से अकेले 50000 कर्मचारी बैंक ऑफ़ इंडिया में काम करते हैं। वहीँ करीब 33000 कर्मचारी सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया में, 26000 इंडियन ओवरसीज बैंक में और बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र में 13000 कर्मचारी काम करते हैं।
मोदी सरकार ने इस वर्ष पेश किए गए वित्तीय बजट में दो बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया था। वही बैंकों के निजीकरण का जिक्र पिछले साल के बजट में भी किया गया था। सरकारी सूत्रों के मुताबिक चुने गए बैंकों के निजीकरण की प्रक्रिया आने वाले 5 से 6 महीनों में शुरू हो सकती है।
सरकार पहले ही करीब 10 बैंकों का विलय 4 बैंकों में कर चुकी है। सरकार ने बैंकों के विलय करने के पीछे नुकसान को कम करने का तर्क दिया था। वर्तमान में देश में करीब 12 पब्लिक सेक्टर के बैंक हैं। निजीकरण के लिए चुने गए दो बैंकों में सरकार की करीब 90 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी है।