22 साल के बाद भी दिल्ली भाजपा के पास एक मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं था। पार्टी ने अपनी रणनीति के तहत अंदरखाने घमासान को खत्म करने के लिए यह फैसला लिया था। यह फैसला मतदाताओं को रास नहीं आया। चुनावी वार-पलटवार में मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, यह आम आदमी पार्टी का बड़ा सवाल था। प्रचार में आप बतौर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जनता के सामने रखने में कामयाब रही और उनके नाम पर ही दिल्ली में वोट मांगा।
भाजपा की यह रणनीति भी पार्टी पर एक बार फिर से भरी पड़ी है। पार्टी के अंदुरूनी घमासान की वजह से बार- बार मनोज तिवारी, डॉ हर्षवर्धन व विजय गोयल समेत अन्य नेताओं को लेकर इस कुर्सी की दौड़ चल रही थी। इसका फायदा आप ने भरपूर उठाया। इसके लिए बकायदा आप ने एक बड़ा पोस्टर भी जारी किया और भाजपा के लिए मुसीबत बढ़ा दी। इसके जवाब में भाजपा को भी इस पोस्टर जारी करना पड़ा। यह मुद्दा आप ने शांत नहीं होने दिया। इस मामले को तूल देते हुए छोटी-छोटी जनसभाओं में जाकर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने खुद ही प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की कोशिश की और उनको ही जनता के सामने रख भी दिया गया। इस वाद-विवाद में केजरीवाल माहौल बनाने में सफल हुई।
मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पार्टी के र्शीष नेतृत्व ने भी चुनावी अभियान के दौरान जनता के बीच असमंजस पैदा करने की कोशिश की। आप ने मुख्यमंत्री के चेहरे को जनता के सामने आकर लोगो के बीच में बहस की चुनौती दी है। इसके बाद भाजपा की सभाओं में देखने में आया कि पार्टी के र्शीष नेतृत्व ने पहले सांसद प्रवेश साहिब वर्मा, फिर गौतम गंभीर और इसके बाद विजेंद्र गुप्ता का नाम लेकर बहस करने के लिए आप को न्यौता दिया। इससे मतदाताओं में यह भ्रम भी पैदा हुआ कि इनमें से कोई चेहरा भी इस दौड़ में शामिल हो सकता है।
दिल्ली के चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा बीते चुनाव में हर बार कड़ी चुनौती रहा है। बीते चुनाव में भाजपा ने किरण बेदी को चेहरा बनाया था। इसके बाद यह पूर्व डॉ हर्षवर्धन थे और विजय कुमार मल्होत्रा को भी चेहरा बनाया था। पार्टी चुनाव लड़ती रही है। वहीं विधानसभा में एक लंबे समय तक पार्टी के वरिष्ठ नेता जगदीश मुखी और वर्तमान में भाजपा नेता विजेंद्र गुप्ता विपक्ष के नेता रहे हैं। इनको भी चेहरा कभी नहीं बनाया गया।