छ्त्तीसगढ़ के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता ने मंगलवार (एक अगस्त) को जम्मू-कश्मीर राज्य मानवाधिकार आयोग में अर्जी देकर सेना की जीप के आगे मानवढाल बनाकर बांधे गए कश्मीरी नौजवान फारूक अहमद डार को 10 लाख रुपये हर्जाना देने के फैसले पर “पुनर्विचार” करने के लिए कहा है। इसी साल अप्रैल में बडगाम में लोक सभा उप-चुनाव के दौरान भारतीय सेना ने डार को जीप के आगे बांध कर घुमाया था। घटना का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया था। जम्मू-कश्मीर के मानवाधिकार आयोग ने राज्य की पीडीपी और बीजेपी गठबंधन सरकार को फारूक़ डार को हर्जाने के तौर पर 10 लाख रुपये देेने का आदेश दिया।

एसएचआरसी के चेयरपर्सन जस्टिस (रिटायर्ड) बिलाल नाजकी ने अपने आदेश में कहा था कि अवाम के जानो-माल की सुरक्षा राज्य सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है। नाजकी ने आदेश में  कहा, “मुझे इसे लेकर कोई संदेह नहीं कि फारूक अहमद डार का अपमन हुआ है, उनका उत्पीड़न हुआ है। उन्हें गैर-कानूनी तरीके से बंधक बनाया गया। आयोग को लगता है कि राज्य सरकार को 10 लाख रुपये का हर्जाना देना उचित फैसला होगा।”

बीजेपी किसान मोर्चा के राज्य सचिव गौरी शंकर श्रीवास ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर श्रीनगर के मानवाधिकार आयोग के सचिव को अपनी अर्जी दी है। श्रीवास ने कहा, “इसे लेकर पूरे देश के नौजवानों में गुस्सा है। राज्य मानवाधिकार आयोग कैसे सरकार को इस आदमी (जिसे मानवढाल बनाया गया) को हर्जाना देने का आदेश दे सकती है? ऐसे कदम से सेना का मनोबल गिरेगा। हमने अपना विरोध दर्ज कराते हुए आयोग से फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की है।”

सेना ने अपनी जांच में फारूक डार को जीप के आगे बांधने के लिए जिम्मेदार मेजर लितुल नितिन गोगोई को निर्दोष पाया था। मेजर गोगोई ने अपने बचाव में कहा था कि अपनी और अपने साथियों की सुरक्षा के लिए उन्हें ये फैसला लेना पड़ा था। श्रीवास और उनके साथियों के अनुसार वो मेजर गोगोई से भी मिलने की कोशिश करेंगे।