चंपई सोरेन कुछ दिनों में बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं। कुछ महीनों पहले तक झारखंड के मुख्यमंत्री बने चंपई सोरेन का सियासी करियर नई ऊंचाइयों पर पहुंचता दिख रहा था। लेकिन फिर हेमंत सोरेन जेल से बाहर आए और चंपई की विदाई हो गई। अब उस विदाई का सियासी इफेक्ट यह रहा है कि चंपई सोरेन बगावती तेवर पर उतर आए हैं। पहले अपनी पार्टी छोड़ी और अब बीजेपी में जाने का फैसला किया। बड़ी बात यह है कि इसे सिर्फ चंपई सोरेन का फैसला नहीं माना जा सकता, बीजेपी को भी अपना फायदा नजर आ रहा है।
चंपई सोरेन क्यों आए बीजेपी को इतना रास?
असल में झारखंड की राजनीति में आदिवासी वोट निर्णायक है, वहां भी कुछ क्षेत्रों में तो हार जीत उसी वोट पर टिकी है। अगर चंपई सोरेन की बात करें तो झारखंड के कोल्हन क्षेत्र में उनकी पकड़ जबरदस्त है। विधानसभा की 14 सीटें उसी इलाके से निकलती हैं, बीजेपी का तो यहां सूपड़ा साफ होता गया है। वही दूसरी तरफ जेएमम को जो जीत मिलती है, उसमें चंपई का हाथ सबसे अहम माना जाता है। यहां पर उनकी लोकप्रियता ही एक एक्स फैक्टर बन जाती है। इसी वजह से बीजेपी को भी अब चंपई के आने से अपने समीकरण सुधरते नजर आ रहे हैं।
चंपई सोरेन के आने से बीजेपी को क्या फायदा?
एक समझने वाली बात यह भी है कि झारखंड में बीजेपी के आदिवासी चेहरे भी पार्टी को वो मदद नहीं दिला पाए जितनी चंपई सोरेन ने अपने दम पर जेएमएम को सत्ता में लाने के लिए भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के दो सबसे बड़े आदिवासी चेहरा समीर उरांव और अर्जुन मुंडा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसके ऊपर बाबू लाल मरांडी की पार्टी में वापसी जरूर हुई है, लेकिन अभी तक उनकी कोई रणनीति पार्टी को जमीन पर वैसा फायदा पहुंचाती नहीं दिख रही। ऐसे में चंपई ही पार्टी के लिए चुनावी मौसम में बड़ी संजीवनी साबित हो सकते हैं।
चंपई सोरेन के पाला बदलने से क्या बीजेपी को फायदा?
हर पार्टी के ‘नंबर 2’, बीजेपी के लिए ‘नंबर 1’
अब चंपई का बीजेपी में जाना एक बड़ी बात है, लेकिन उससे भी जरूरी बात वो पैटर्न है जो अब देश की सबसे बड़ी पार्टी को कई मामलों में दूसरे दलों से अलग बना रहा है। बीजेपी इस समय दूसरे दलों के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है, लेकिन उसकी नजर ‘हर किसी’ पर नहीं है, वो ऐसे चेहरों पर दांव लगा रही है जिनके जाने से दूसरी पार्टी को जबरदस्त नुकसान पहुंचे। दूसरे शब्दों में कहें तो जो नेता किसी पार्टी में ‘नंबर 2’ की हैसियत रखते हैं, बीजेपी सबसे पहले उन पर ही अपना दांव लगाती है। उसे इस बात का अहसास रहता है कि अगर वो चेहरे साथ आ गए तो पार्टीकी राह कई मायनों में आसान बन जाएगी और किसी दूसरे दल को तोड़ना भी सरल रहेगा।
पार्टियां टूटी, बगावत का खेल, फायदा बीजेपी को
अब तो ऐसे नेताओं की एक लंबी सूची तैयार हो चुकी है, लेकिन अगर ज्यादा पीछे ना भी चला जाए कुछ ऐसे बड़े नेता सामने आए हैं जिनके पाला बदलने से बीजेपी को फायदा भी हुआ और दूसरी पार्टी को उतना बड़ा नुकसान भी। इस लिस्ट में ज्योतिरादित्य सिंधिया, एकनाथ शिंदे, शुभेंदू अधिकारी, हिमंता बिस्वा, माणिक साहा जैसे कई नेताओं का नाम सामने आता है। यह सारे वो नेता हैं जो अपनी पिछली पार्टी में नंबर 2 की हैसियत रखते थे, उनके अपने मजबूत गढ़ बन चुके थे। लेकिन बीजेपी का उन्हें जैसे ही साथ मिला, उन नेताओं की किस्मत तो बदल ही, पार्टी को भी जबरदस्त फायदा हुआ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेल
ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात करें तो उन्होंने तो शुरुआत से ही कांग्रेस के साथ एक वफादार पारी खेली है। राहुल गांधी के सबसे सगे, जिगरी भी वे दिखाई देते थे। लोकसभा में दोनों की सियासी केमिस्ट्री कई मौकों पर चर्चा का विषय बनी। लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में जैसे ही कमलनाथ की भूमिका बढ़ी, जैसे ही उन्हें सीएम कुर्सी सौंपी गई, सिंधिया असहज हो गए और फिर कुछ ही महीनों में अपनी ही पार्टी, अपनी ही राज्य सरकार को दगा देते हुए उन्होंने बीजेपी में जाने का फैसला किया।
तीसरे कार्यकाल में बदले-बदले से PM मोदी
बड़ी बात यह थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सिर्फ पाला नहीं बदला था, उन्होंने एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार को गिराने का काम किया। उनके साथ तब 22 कांग्रेस के सांसद भी बीजेपी में शामिल हुए थे, उसी वजह से कमलनाथ सरकार गिरी और राज्य में फिर शिवराज की वापसी हुई।
हिमंता बिस्वा का पूर्वोत्तर में उदय
इसी तरह असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की बात करना भी जरूरी है। वे भी एक पुराने कांग्रेसी रहे हैं, पूर्वोत्तर के तो सबसे बड़े चेहरे के रूप में उन्हें देखा जा सकता है। यह सही बात है कि मुख्यमंत्री तो वे कुछ साल पहले बने हैं, लेकि यह नहीं भूलना चाहिए कि संगठन बनाना, समीकरण साधना, इसमें उनकी मास्ट्री रही है। कांग्रेस को भी समय-समय पर इसका फायदा मिला था, लेकिन जब तवज्जो कम हो गई, पाला बदला और आज बीजेपी का कमल ही पूर्वोत्तर में छाया हुआ है।
समझने वाली बात यह है कि पूर्वोत्तर में तो बीजेपी ने शून्य से अपना सफर शुरू किया, लेकिन हिमंता के साथ आने से असम में तो सरकार बनी ही, कई दूसरे राज्यों में भी पार्टी ने कांग्रेस-लेफ्ट को बाहर का रास्ता दिखाया। आंकड़ा बताता है कि 2014 के बाद से 8 पूर्वोत्तर के राज्यों में से 7 में बीजेपी की सरकार बनी। हैरानी की बात यह है कि पहले कभी भी पार्टी को यहां जीत तक नहीं मिली थी। ऐसे में हिमंता बिस्वा सरमा को साथ रखने का सियासी जुआ आज भी बीजेपी को तगड़ा फायदा दे रहा है।
कांग्रेसी माणिक साहा, बीजेपी में बने सीएम
पूर्वोत्तर का ही एक और चेहरा बीजेपी के लिए काफी मुफीद साबित हुआ है। वर्तमान में मणिपुर के मुख्यमंत्री माणिक साहा हैं, 2016 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। बड़ी बात यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें अपना सीएम बनाने का फैसला किया। इतना बड़ा प्रमोशन कांग्रेस में रहते हुए साहा को कभी नहीं मिला था। लेकिन बीजेपी को क्योंकि पूर्वोत्तर एक नई लीडरशिप खड़ी करनी है, ऐसे में उसकी तरफ से लगातार ऐसे एक्सपेरिमेंट हो रहे हैं।
शिंदे-अजित ने की दो फाड़, बीजेपी की सरकार
अगर पूर्वोत्तर से आगे चला जाए तो महाराष्ट्र की सियासत में भी दो ऐसे चेहरे उभरकर आते हैं जिन्होंने बीजेपी को फायदा तो दिया ही, अपनी ही पार्टियों में भी दो फाड़ करने का काम किया। एक रहे एकनाथ शिंदे जिन्होंने शिवसेना पर पूरी तरह अपना कब्जा जमाया, दूसरे रहे अजित पवार जिन्होंने अपने चाचा शरद पवार को ही बड़ा झटका देते हुए एनसीपी पर राज स्थापित किया। दोनों ही मामलों में समान स्थिति देखने को मिली थी। एक तरफ महा विकास अघाड़ी की सरकार में शिंदे का दम घुट रहा था, दूसरी तरफ अजित पवार एनसीपी के अंदर अपनी ही ताकत को कम होता देख रहे थे। ऐसे में शिंदे ने 30 से ज्यादा विधायकों को तोड़ सीधे शिवसेना पर अपना दावा ठोका तो दूसरी तरफ अजित ने भी 20 से ज्यादा विधायकों को पाला बदलने पर मजबूर कर दिया।
दोनों ही केस में बीजेपी को सीधा फायदा पहुंचा। शिंदे के आने से फिर महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनी और अजित के आ जाने से एनसीपी जैसी पार्टी एनडीए का हिस्सा बन गई। यहां भी वैसे दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टी में नंबर 2 की भूमिका में ही रहे थे। अब इस नंबर 2 वाले खेल में बीजेपी ने ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को भी नहीं बख्शा है। शुभेंदू अधिकारी, ममता के सबसे भरोसेमंद रहे हैं, हर आंदोलन में उनका साथ देखा गया है, लेकिन 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले अधिकारी ने पाला बदल दिया था। उन्होंने बीजेपी के साथ जाने का फैसला किया और ममता को सबसे बड़ा झटका लगा।
बंगाल में खेला, शुभेंदू की बीजेपी में एंट्री
बड़ी बात यह है कि पश्चिम बंगाल में विधानसभा की 65 ऐसी सीटें रही हैं जहां पर शुभेंदू का मजबूत आधार माना जाता है, पहले यह फायदा टीएमसी को मिलता था, लेकिन अब बीजेपी उनके दम पर ही बंगाल में मुख्य विपक्षी पार्टी बन चुकी है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसका 70 सीटें जीतना इस बात का बड़ा प्रमाण है। अभी भी बंगाल बीजेपी में शुभेंदू अधिकारी को ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय माना जाता है, पूरी संभावना भी है कि अगर अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीत जाए तो उन्हें सीएम पद तक दिया जा सकता है। वैसे इसी लिस्ट में एक जमाने में बसपा के बड़े नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम भी जोड़ा जा सकता है। यह अलग बात है कि अब वे सपा की तरफ से बैटिंग कर रहे हैं।
अब यह इतने सारे उदाहरण ही बताने के लिए काफी है कि जब-जब नंबर 2 की हैसियत वाले नेताओं ने पाला बदला है, उससे उनका ग्राफ तो बढ़ा ही, बीजेपी को भी फायदा हुआ है। चंपई सोरेन के मन में भी यही सब चला होगा, तभी तो नई पार्टी बनाने का विचार करने वाले नेता ने कुछ ही दिनों में अपना ही फैसला पलटने का काम कर दिया।