बिहार में कोसी नदी इन दिनों उफान पर है, जिसका पानी अब कई गांवों के लिए खतरा बन गया है। यही वजह है कि अब गांव के लोग अपने घरों को बचाने के लिए खुद ही उन्हें तोड़ रहे हैं। दरअसल ये लोग घरों को तोड़कर ईंटों को सुरक्षित ले जा रहे हैं, ताकि नदी का उफान कम होने पर फिर से उन्हें लाकर अपना घर तैयार कर सकें। एक तरफ जहां दुनिया कोरोना वायरस माहमारी और लॉकडाउन से जूझ रही है, वहीं ये लोग बाढ़ से अपने घरों को बचाने की जुगत में जुटे हैं।

बता दें कि भागलपुर का यह इलाका गोविंदपुर हैं। बाढ़ के दिनों में यह इलाका एक द्वीप में तब्दील हो जाता है और यहां के लोग नौकाओं से अपने सामान, पशु आदि को सुरक्षित जगह पर पहुंचाते हैं। जब बाढ़ का पानी उतर जाता है तो यह वापस आकर अपना मकान बनाकर फिर से रहने लगते हैं।

बिहार का भागलपुर शहर गंगा नदी के किनारे पर बसा है। इसके उत्तर में कोसी नदी बहती है, जो खगड़िया में जाकर गंगा में मिल जाती है। ये दोनों नदियां भागलपुर की जमीन को काफी उपजाऊ बनाती हैं लेकिन साल के तीन महीने यहां के लोगों को बाढ़ का प्रकोप भी झेलना पड़ता है।

गोविंदपुर के रहने वाले रोहित ने बताया कि ये जो पूरा पानी है पहले यहां जमीन थी और नदी का बहाव अलग था लेकिन सरकार ने नदी को कंट्रोल करने की कोशिश की और अब इसका बहाव हमारे आसपास हो गया है। 2019 के बाद से अब तक गांव के लोग इस परेशानी से जूझने का प्रयास कर रहे हैं। हर साल जब कोसी नदी उफान पर होती है और गोविंदपुर पानी से भर जाता है तो यहां को लोग नदी को दूसरी तरफ शिफ्ट हो जाते हैं लेकिन उनके घर सुरक्षित रहते हैं।

रोहित के अनुसार, पहले खेत खलिहान ही पानी में डूबते थे अब तो पानी हमारे घरों तक आने लगा है। कई मकान को नदी के पानी में ही बह गए हैं। इसलिए इस साल से हम अपने मकान की ईंटें भी अपने साथ ले जा रहे हैं ताकि बाढ़ उतरने के बाद हम फिर से यहां आकर अपने मकान बना सकें।

बिहार में बाढ़ की समस्या पुरानी है। राज्य के इकॉनोमिक सर्वे 2019 के अनुसार, राज्य के 38 में से 28 जिले बाढ़ग्रस्त हैं। राज्य में बाढ़ के प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2017-18 में राज्य की कुल पूंजी में से 9 फीसदी बाढ़ को नियंत्रित करने के उपायों में खर्च हुई। साल 2016-17 में बाढ़ के डिजास्टर मैनेजमेंट पर 1569.11 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। अब कोरोना संकट के बीच बाढ़ से बचाव के काम में और मुश्किल आ सकती है।