अपने रुख को साफ करते हुए भाजपा ने गुरुवार को घोषणा की कि वह बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का समर्थन करेगी और कल अगर विधानसभा में विश्वास मत लाया जाता है तो वह उनके पक्ष में मतदान करेगी। पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि भाजपा ने अपने विधायकों को विप जारी कर विश्वास मत के दौरान मांझी के समर्थन में मतदान करने को कहा है।

उधर, गुरुवार को दिन भर चले घटनाक्रम के बीच मांझी के विश्वासमत प्रस्ताव पेश करने से पहले विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने भाजपा के स्थान पर जद (एकी) को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा दे दिया। भाजपा ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे ‘मनमाना’ करार दिया। वहीं जद (एकी) को बिहार विधान परिषद में भी मुख्य विपक्षी पार्टी की मान्यता दे दी गई और नीतीश कुमार को विपक्ष के नेता का दर्जा दे दिया गया। दूसरी ओर मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को झटका देते हुए पटना हाई कोर्ट ने जद (एकी) के चार बागी विधायकों को शक्ति परीक्षण में मतदान करने की अनुमति नहीं दी।

उधर, राज्य भाजपा के नेता मंगल पांडेय और भाजपा विधायक दल के नेता नंद किशोर यादव के साथ सुशील मोदी ने बताया कि पार्टी न तो मांझी सरकार में शामिल होगी न ही अपनी तरफ से सरकार बनाने की पहल करेगी। सुशील मोदी के आवास पर दो दिनों तक चली भाजपा विधायक दल की बैठक के बाद यह घोषणा की गई। नैतिकता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मांझी को भाजपा का समर्थन करने का उद्देश्य नीतीश कुमार द्वारा महादलित समुदाय का अपमान करने से रोकना है जो दलितों के बीच सबसे गरीब समुदाय है। कल गुप्त मतदान का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा, ‘बिहार के गरीब लोगों के लिए केवल गुप्त मतदान से ही न्याय हो सकता है। विधानसभा में भाजपा के 87 विधायक हैं।

सुशील मोदी ने कहा कि पार्टी बार-बार सरकार बदलने के खिलाफ है। उन्होंने कहा, ‘हम हर छह महीने में सरकार बदलने के खिलाफ हैं।’ यह पूछने पर कि क्या इसके सहयोग से मांझी विश्वास मत हासिल कर पाएंगे तो उन्होंने कहा, ‘भाजपा उनके साथ है… मांझी को विश्वास मत हासिल करना है… हम उनके पक्ष में अपनी भूमिका निभाएंगे।’

नीतीश कुमार पर प्रहार करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि ‘मांझी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होंने घूम-घूम कर प्रचार किया कि एक महादलित का सम्मान किया है। लेकिन महज नौ महीने बाद वह उन्हें (मांझी) हटाने के लिए अतिरिक्त समय तक काम कर रहे हैं। यह महादलितों का अपमान है, जो समाज का सबसे गरीब तबका है।’ उन्होंने आरोप लगाया कि विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी जद (एकी) के पक्ष में ‘पक्षपातपूर्ण’ तरीके से काम कर रहे हैं।

विधानसभा अध्यक्ष ने गुरुवार को भाजपा नेता नंद किशोर यादव के स्थान पर जद (एकी) के नेता विजय चौधरी को विपक्ष का नेता का दर्जा दे दिया। उदय नारायण चौधरी ने बताया, ‘विधानसभा सचिवालय को संख्या बल के मुताबिक काम करना होगा और चूंकि जद (एकी) ने मुख्य विपक्षी के दर्जे की मांग की थी इसलिए उसके संख्या बल पर विचार करते हुए उसे यह दर्जा देने से इनकार नहीं किया जा सकता।’

विधानपरिषद के अध्यक्ष अवधेश नारायण सिंह ने बताया, ‘संख्या बल के आधार पर जद (एकी) को विधानपरिषद में मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर घोषित करने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचता।’

इस बीच, विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए नाराज भाजपा सदस्य विधानसभा के प्रवेश द्वार के समक्ष धरने पर बैठ गए। नंद किशोर यादव ने कहा, ‘देश में यह पहली बार है जब एक पार्टी-जद (एकी) सत्ता और विपक्ष दोनों खेमे में बैठेगी।’ उन्होंने दावे के साथ कहा कि भाजपा इस मुद्दे पर मांझी को समर्थन देने से इनकार कर चुकी थी लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह मांझी सरकार में शामिल होने वाली थी।

यादव ने तर्क दिया, ‘यहां तक कि राजग में रहते हुए नीतीश कुमार ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था जबकि अन्य सहयोगियों ने पीए संगमा के पक्ष में मतदान किया था। इसलिए मुद्दा आधारित समर्थन का अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि कोई पार्टी सरकार में शामिल हो रही है।’

जद (एकी) विधायक दल के नेता विजय चौधरी ने कल सर्वदलीय बैठक में विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया था कि वह उन्हें विपक्षी सीटों पर बैठने की अनुमति दें क्योंकि उसने मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के कल के विश्वास मत प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया है। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘सदन का कामकाज नियम और कानून के मुताबिक चलता है न कि किसी के मर्जी पर… ‘संख्या बल’ के आधार पर जद (एकी) को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा नहीं देने का कोई कारण नहीं बनता।’

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि नियम के मुताबिक, जद (एकी) को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा दिया जाता है और उसके नेता विजय चौधरी को सदन में विपक्ष का नेता स्वीकार किया जाता है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा की मौजूदा क्षमता 233 है। इसमें फिलहाल विधानसभा अध्यक्ष सहित जद (एकी) के पास 110 विधायक, मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के रूप में एक असंबद्ध सदस्य, भाजपा के 87 सदस्य, राजद के 24, कांग्रेस के पांच, भाकपा के एक, निर्दलीय पांच जबकि दस सीट खाली हैं।

बागी विधायकों को अनुमति नहीं : पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को जद (एकी) के चार बागी विधायकों को कल होने वाले शक्ति परीक्षण में मतदान करने की अनुमति नहीं दी। इन चार विधायकों ने अदालत से प्रार्थना की थी कि उन्हें कल विश्वास मत में वोट डालने की अनुमति दी जाए लेकिन न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी और न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह के खंडपीठ ने उन्हें अनुमति नहीं दी। खंडपीठ ने न्यायमूर्ति ज्योति शरण के एकल पीठ के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें 16 जनवरी को चार विधायकों की सदस्यता खत्म करने का विधानसभा अध्यक्ष का आदेश निरस्त कर दिया गया था और उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई थी।

विधायकों ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, रवींद्र राय, राहुल शर्मा और नीरज सिंह बबलू ने न्यायमूर्ति शरण के आदेश के आधार पर अदालत से गुहार लगाई थी। इस आदेश को संसदीय मामलों के मंत्री श्रवण कुमार द्वारा खंडपीठ के सामने चुनौती दी गई थी। बागी विधायक नीतीश कुमार का विरोध कर रहे हैं और वे मांझी के समर्थन में काम कर रहे हैं।

इन चार के अलावा, विधानसभा ने चार अन्य सदस्यों की भी सदस्यता निरस्त की है। उन्होंने भी पटना हाई कोर्ट ने आदेश को चुनौती दी है। अदालत ने मंत्री विनय बिहारी की जनहित याचिका भी खारिज कर दी जिसमें विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी को विश्वास मत से दूर रखने की मांग की गई थी। उन्होंने अनुरोध किया था कि विश्वास मत की कार्यवाही विधानसभा के उपाध्यक्ष द्वारा संपन्न कराई जाए। मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी और न्यायमूर्ति विकास जैन के खंडपीठ ने जनहित याचिका पर आदेश पास किया। अदालत ने कहा कि यह विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है कि सदन की कार्यवाही कैसे चलाई जाए।

मांझी कैबिनेट में कला एवं संस्कृति मंत्री बिहारी ने आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष ‘पक्षपात’ कर रहे हैं और उन्हें विश्वास मत से दूर रखने का अनुरोध किया था। तीसरी याचिका के तहत, जद (एकी) को विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं देने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश देने की मांग वाली भाजपा प्रदेश महासचिव सुधीर शर्मा की याचिका पर अदालत ने आज कोई राहत नहीं दी। मुख्य न्यायाधीश रेड्डी और न्यायमूर्ति जैन के खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के फैसले सदन में होते हैं, अदालत में नहीं।