राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से शुक्रवार (24 मार्च) को कहा गया कि इस्‍लामिक आतंकवाद का विरोध करने वाला उदार मुस्लिम चेहरा भारत से उभर सकता है। आरएसएस की दिल्‍ली यूनिट के प्रमुख आलोक कुमार ने यह बयान दिया। उन्‍होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि संभावना है किआतंक के खिलाफ इस्‍लाम के सार्वभौमिक भाइचारे के उदार चेहरे भारतीय मुसलमान बन सकते हैं। उन्‍होंने साथ ही कहा कि आरएसएस राष्‍ट्रवादी मुसलमानों के साथ हैं। कुमार ने इन बातों को भी खारिज किया कि भारत में भाजपा और संघ के विस्‍तार से अल्‍पसंख्‍यकों को परेशानी होगी।

आलोक कुमार ने कहा कि भारत में हिंदू और मुसलमानों के साथ रहने के कारण ही अल्‍पसंख्‍यक समुदाय रूढि़वाद की ओर नहीं गया। भारत के मुस्लिमों में आतंकी हमलों, वहाबियों के बढ़ते प्रभाव और सूफी समुदाय को निशाना बनाने को लेकर बैचेनी है। उन्‍होंने पाकिस्‍तान के सिंध राज्‍य में लाल शाहबाज कलंदर दरगाह पर हुए आतंकी हमले का भी जिक्र किया। इस्‍लामिक स्‍टेट की ओर से किए गए इस हमले में 75 लोग मारे गए थे। उन्‍होंने कहा, ”हमले के बाद हम संवेदना जताने के लिए कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मजार पर गए थे। वहां पर लोगों से हमारी बातचीत के दौरान हमें पता चला कि हमलों को लेकर मुसलमानों में काफी नाराजगी है।”

अयोध्‍या में राम मंदिर के मुद्दे के बारे में उन्‍होंने कहा कि आरएसएस धर्म संसद की ओर से लिए गए निर्णय को मानेगा। राम मंदिर का मुद्दा आरएसएस का आंदोलन नहीं है। यह संतों ने शुरू किया है। बता दें कि धर्म संसद को विश्‍व हिंदू परिषउ के पूर्व प्रमुख अशोक सिंघल ने शुरू किया था। इसका मकसद हिंदुओं के मुद्दों को उठाना है। आरएसएस ने मुसलमानों को अपने साथ लाने के लिए हाल के सालों में काफी कदम उठाए हैं। इसके तहत मुस्लिम राष्‍ट्रीय मंच का गठन भी किया गया है।