हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से किए गए कैबिनेट विस्तार से पहले स्पेशल टीम से सांसदों और मंत्रियों की रिसर्च कराई थी। इसके तहत टॉप के मंत्रालयों को इस प्रक्रिया से दूर रखा गया था। वहीं अनुशासन, जाति व विचारधारा को भी मानक बनाया गया। सांसदों को परखने के लिए पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मिलकर फॉर्मूला बनाया था। इसके तहत मतदाताओं के रूख, संसद में प्रदर्शन और मंत्रालय में काम के आधार पर नंबर दिए गए। लोकसभा में भाजपा के 282 सांसदों में से 165 पहली बार चुने गए हैं। इनके बारे में माना जाता है कि ये मोदी लहर में जीतकर आए। पार्टी सूत्रों के अनुसार इस फॉर्मूले के जरिए इन सांसदों की जमीनी पकड़ की हकीकत भी जानी गई।
शाह के नेतृत्व में हुए आंकलन के बाद मोदी ने कैबिनेट में बदलाव किया। सूत्रों का कहना है कि केवल 10 सांसदों को ही 100 में से 100 अंक मिले। आंकलन में राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी को शामिल नहीं किया गया। अरुण जेटली से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय लिया गया लेकिन माना जा रहा था कि इस मंत्रालय को संभालने को लेकर जेटली भी हिचहिचा रहे थे। अब यह मंत्रालय वैंकेया नायडू को दिया गया है।
स्मृति ईरानी का कद घटाकर यह संदेश दिया गया है कि पार्टी अनुशासन सबसे बड़ा है। स्मृति ने कई आरएसएस नेताओं और मोदी की ओर से सुझाए नामों को भी कई मौकों पर नजरअंदाज कर दिया था। सूत्रों ने बताया कि इन सब बातों को नजर में रखा गया। साथ ही स्मृति के बयान भी उनके खिलाफ गए। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ”हमें मंत्रालय में विद्वान नहीं चाहिए लेकिन ऐसा व्यक्ति चाहते हैं जिसे पता हो कि विद्वानों से कैसे घुलमिल सकते हैं।”
राजस्थान से सांसद अर्जुन राम मेघवाल को मंत्री बनाए जाने से संघ परिवार में भी खुशी है। जयंत सिंहा को वित्त मंत्रालय से बाहर किए जाने को उनके विद्रोही पिता के लिए संदेश बताया जा रहा है। सिंहा को अब उड्डयन मंत्रालय में भेजा गया है। सभी 19 मंत्रियों में से रमेश जिगजिनगी को छोड़कर बाकी सभी उत्तर या विंध्य क्षेत्र से आते हैं। दक्षिण भारत से सबसे कम मंत्री बनाए गए हैं। एमजे अकबर को मंत्री बनाने के पीछे भारतीय इस्लाम की दुनिया को जानकारी देने का उद्देश्य है। मोदी ने गांव, गरीब और किसान का संदेश देने के लिए दो आदिवासी, पांच दलित, दो अल्पसंख्यक और दो महिलाओं को शामिल किया।
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सूत्रों का कहना है कि 2014 में जब मोदी पीएम बने थे उस समय कैबिनेट पर शाह, जेटली और आरएसएस का प्रभाव था। मोदी अपने ज्यादातर सांसदों को नहीं जानते थे। दो साल बाद अप्रैजल के जरिए उनके सामने असल तस्वीर आ गर्इ। इसलिए पांच जुलाई को किया गया मंत्रिमंडलीय बदलाव गुजराती पीएम ने एक अन्य गुजराती के साथ मिलकर किया।
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