देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को आज पूरा देश उनकी जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा है। 14 नवंबर 1889 को उनका जन्म हुआ था। देश में आधारभूत संरचना का विकास करने और एम्स, आईआईटी जैसे संस्थानों में उनकी बड़ी भूमिका रही है। पंडित नेहरू समतामूलक समाज और सामाजिक सहिष्णुता की स्थापना के पक्षधर थे। उनका मानना था कि रूढ़ियों या रूढ़िवादी दिमाग का गुलाम बना कोई भी मुल्क तरक्की नहीं कर सकता। गिरिराज शरण अग्रवाल द्वारी लिखित “मैं नेहरू बोल रहा हूं” किताब में पंडित नेहरू के जीवन से जुड़ी कई घटनाओं और उनके भाषणों के अंश संग्रहित किए गए हैं। किताब के मुताबिक लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में पंडित नेहरू ने कहा था, “इस देश में जो चीज एक को दूसरे से अलग करे, वह एक दीवार है। हमें उसको हटाना है। हमें जो यहां सांप्रदायिकता यानी फिरकापरस्ती है, उसे हटाना है क्योंकि देश को वह दुर्बल करती है, देश के महान परिवार को तोड़ती है, एक-दूसरे को दुश्मन बनाती है और हमें नीचा करती है।”

सांप्रदायिकता पर पंडित नेहरू ने अपने विचार रखते हुए कहा था, मैं मुसलमानों के साथ गैर मुसलमानों जैसा सलूक करके यानी आर्थिक मुद्दों पर उनसे बातें करके उन्हें अपनाना चाहता हूं। ईमानदारी से मेरा ख्याल यह है कि मुसलमान कट्टर है और पुरानी रुकावटों को तोड़कर बाहर निकलने में कठिनाई महसूस करता है; और हिन्दू स्वभाव से लचीला है। मुसलमान को जब नए विचार पर विश्वास हो जाएगा, तो वह उसे मंजूर कर लेगा। मैं बड़े-बड़े लीडरों से नहीं आम आदमी से अपील करूंगा जिनके बीच माली असलियत फैलकर रहेगी। हिन्दुस्तान के लोगों के बारे में मैं हिंदू, मुसलमान और सिख होने के नाते नहीं सोचता; सोच भी नहीं सकता। मैं किसी समुदाय को, उसका समर्थन पाने के लिए रिश्वत नहीं देना चाहता-कभी दूंगा भी नहीं। (स्रोत- जवाहरलाल नेहरू वांड्मय (खंड-7) के पृष्ठ संख्या 263)

किताब के मुताबिक नेहरू ने कहा था, “न तो मैं मंदिरों के पक्ष में हूं, न मस्जिदों के। मैं उन्हें भी पसंद नहीं करता जो उन्हें गिराना चाहते हैं। मैं अपने मुल्क के लिए आजादी चाहता हूं और मैं यह चाहता हूं कि लोग जाति, धर्म और संप्रदाय को भूलकरअपनी आजादी की लड़ाई लड़ें। मुल्क के सामने जो सामान्य समस्या है, वह सांप्रदायिकता नहीं है। आजादी के सामने सांप्रदायिकता बहुत छोटी समस्या है। आजादी का मसला सभी संप्रदायों का मसला है। सांप्रदायिक नेताओं से जब यह पूछा गया कि विधान सभाओं में कुछ ज्यादा सीटें मिल जाने से अवाम के मसले, बेरोजगारी के मसले, गरीबी के मसले कैसे हल हो जाएंगे तो वे मुझे कोई जवाब नहीं दे सके।” (स्रोत- जवाहरलाल नेहरू वांड्मय (खंड-7) के पृष्ठ संख्या 327)