वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने सोमवार को कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के ‘प्रो-हिंदू माइंडसेट’ ने 1992 में अयोध्या की बाबरी मस्जिद के विध्वंस को बढ़ावा दिया। नई दिल्ली में एक किताब की लॉन्चिंग के मौके पर बोलते हुए अय्यर ने कहा, ”राव को इस बात का पूरा यकीन था कि साधु-संतों से बात करके वह अयोध्या का मसला सुलझा लेंगे।” अय्यर ने कहा कि बाबरी विध्वंस के बाद भी, राव ने कांग्रेस संसदीय पार्टी बैठक में कहा कि ”प्राचीन काल में राजाओं को भी ऋषियों और साधुओं से सलाह लेनी पड़ती थी, इसलिए मैंने भी ली।” अय्यर के अनुसार, ”क्या यह 20वीं सदी के प्रधानमंत्री की मानसिकता थी या 12वीं सदी की? दरअसल, इस तरह की मानसिकता ने बाबरी विध्वंस को बढ़ावा देने का काम किया। अय्यर ने कहा कि राव उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगा सकते थे।
इस मौके पर मौजूद पूर्व कांग्रेसी नटवर सिंह, जिन्होंने राव के नजदीक रहकर काम किया, ने 6 दिसंबर, 1992 को हुए बाबरी विध्वंस को तत्कालीन प्रधानमंत्री राव की ‘सबसे बड़ी असफलता’ बताया। नटवर और अय्यर, दोनों के अनुसार बाबरी को छोड़ दें तो राव सरकार ने आर्थिक सुधारों से जुड़े कई सटीक और कड़े फैसले लिए।
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इस मौके पर नटवर सिंह ने कहा कि राजीव गांधी की हत्या के बाद, प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी की पहली पसंद शंकर दयाल शर्मा थे। नटवर ने कहा, ”पी.एन. हस्कर की सलाह पर, सोनिया ने मुझे और अरुणा आसिफ अली को शंकर दयाल शर्मा से मिलने भेजा, लेकिन उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया।