Ayodhya disputed site: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ को ‘‘रामलला विराजमान’’ के वकील वैद्यनाथन ने कहा कि नमाज पढ़ने से मुस्लिमों को उस जगह का मालिकाना हक नहीं मिल जाता, मुसलमान सड़क पर भी नमाज पढ़ते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है सड़क को मस्जिद मान लिया जाए और उसके बाद वे उस पर मालिकाना हक जताएं। उन्होंने कोर्ट से कहा “यहां कभी मस्जिद थी ही नहीं। मस्जिद में कोई चित्र नहीं होता ये इस्लामिक कायदों के खिलाफ है। जबकि हिंदू खंबों पर खुदे चित्रों की पूजा करते हैं। उन्होंने ढांचे के भीतर की प्रतिमाओं के फोटोग्राफों वाला एक एलबम भी सौंपा और कहा कि मस्जिदों में ऐसी प्रतिमाएं नहीं होतीं।
वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने दलील दी कि विवादित स्थल पर कभी मस्जिद थी ही नहीं। इस स्थल का इस्तेमाल मस्जिद के रूप में किया गया होगा लेकिन शरिया कानून के मुताबिक यह मस्जिद नहीं थी। वैद्यनाथन ने कहा कि एससआई की रिपोर्ट के अनुसार वहां ‘‘ईसापूर्व दूसरी शताब्दी का स्तंभ आधारित एक भव्य ढांचा मौजूद था’’ तथा एएसआई के सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि उस स्थल पर ‘‘स्तंभों वाला’’ एक ‘‘मंडप’’ था। वरिष्ठ वकील ने विवादित स्थल पर एएसआई की खुदाई में मिली सामग्री सहित विभिन्न तस्वीरों एवं रिपोर्ट का विस्तार से हवाला दिया। यद्यपि इस प्रकार की कोई सामग्री नहीं मिली जिससे यह पता चलता हो कि यह केवल भगवान राम का मंदिर था।
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वैद्यनाथन ने कहा, ‘‘हम पुरातात्विक साक्ष्यों से इस बात का समर्थन हासिल कर रहे हैं कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से एक मंदिर था तथा विभिन्न कालखंड, जिनमें ‘शुंग’, ‘कुषाण’, ‘गुप्त’ शामिल हैं, में इसका विस्तार किया गया।’ पीठ ने कहा, ‘‘हमारे समक्ष ढांचे का प्रश्न नहीं है बल्कि यह (सवाल) है कि मस्जिद से पहले क्या यह धार्मिक प्रकृति का था?’’ उसने यह भी कहा कि सभ्यता के क्रम में भवनों का ‘‘निर्माण एवं पुर्निनर्माण’’ हुआ तथा इस बात को स्थापित करने के लिए साक्ष्य चाहिए कि जहां मस्जिद बनी, वहां मंदिर था। बता दें शीर्ष अदालत इस समय अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि के मालिकाना हक के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।
(भाषा इनपुट के साथ)