दिल्ली को उनका नया मुख्यमंत्री मिलने जा रहा है, आतिशी जल्द ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगी। अरविंद केजरीवाल भी इस्तीफा देने को तैयार बैठे हैं, थोड़ी देर में उनकी राज्यपाल से मुलाकात होने वाली है। अब एक तरफ तो एक महिला को आगे कर आम आदमी पार्टी दिखाना चाहती है कि उसने आधी आबादी को सशक्त करने का काम किया है, लेकिन वही दूसरी तरफ अपनी उसी नेता को ‘भरत’ बताकर, ‘अस्थाई’ कहकर साफ संदेश देने की कोशिश हुई है कि ‘आप एक एक्सीडेंट मुख्यमंत्री हैं’
क्या सीएम पद का मजाक उड़ा रहे AAP नेता?
अभी तक तो आतिशी ने सीएम पद की शपथ भी नहीं ली है, लेकिन ‘पुरुषवादी’ नेताओं के बयान साफ बता रहे हैं कि वो इससे ज्यादा खुश नहीं, वे दिल खोलकर तो इसका स्वागत नहीं कर सकते। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या अगर मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय या फिर सौरभ भारद्वाज को यह पद दिया जाता, फिर भी क्या इसी तरह से भरत और अस्थाई जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता? अब यह बहस का विषय है, लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं के दिए बयान पब्लिक डोमेन में हैं, वो अब चाहकर भी उनसे पीछे नहीं हट सकते हैं।
आखिर आतिशी को क्यों बनाया जा रहा मुख्यमंत्री
भरत और खड़ाऊं जैसे शब्दों के मायने समझिए
सबसे पहले सौरभ भारद्वाज का बयान जान लेते हैं जो वैसे तो आतिशी को अपना करीबी दोस्त मानते हैं, लेकिन उन्हें सीएम बनने वाले ऐलान के बाद उन्हें ‘भरत’ की कहानी बताना नहीं भूल रहे। सौरभ भारद्वाज ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सीएम कुर्सी पर कौन बैठेगा, यह मायने नहीं रखता। जनता ने तो केजरीवाल को चुनाा था। कुर्सी तो केजरीवाल की ही रहने वाली है। सिर्फ चुनाव तक उस कुर्सी पर भरत की तरह राम की खड़ाऊं रखकर एक दूसरे व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जाएगी, उसे बैठाया जाएगा।
क्या खुद साबित कर रही AAP- डमी है ‘आतिशी सरकार’
अब यह बयान क्या दिखाता है,एक महिला नेता अगर सीएम बन भी गईं, उनके हाथ में सत्ता की चाभी नहीं रहने वाली हैं, उन्हें चाहकर भी यह सोचने का अधिकार नहीं है कि यह उनकी सरकार है, यह सीएम कुर्सी उनकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सौरभ भारद्वाज ने खुद ही एक ‘डमी’ सरकार चलाने का ऐलान कर दिया है? वैसे अगर सौरभ भारद्वाज ने रामयण की कथा को याद किया है, उनके दूसरे नेता सोमनाथ भारती ने भी सुर से सुर मिलाने का काम किया है।
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विषम स्थिति नहीं होती तो आतिशी सीएम नहीं बनती?
उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर यहां तक बोल दिया है कि आतिशी तो अस्थाई रूप के लिए मुख्यमंत्री बनाई गई हैं, आतिशी भरत की तरह अब सरकार चलाने वाली हैं। मंत्री गोपाल राय का दर्द भी साफ समझा जा सकता है, जो खुद सीएम रेस में आगे चल रहे थे, अब उनका पत्ता कट चुका है। उन्होंने एक जारी बयान में कहा है कि आतिशी को काफी विषम स्थिति में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई है। अब यहां पर एक ही शब्द मायने रखता है- विषम स्थिति। मतलब कहा जा रहा है कि अगर स्थिति मुफीद होती तो आतिशी कभी मुख्यमंत्री नहीं बन सकती थीं। क्या पढ़ी लिखी, संघर्ष करने वालीं एक नेता का यह अपमान नहीं?
एक्सीडेंटल सीएम से डर रही AAP!
अब यह सब तो सिर्फ बयानबाजी रही, लेकिन आम आदमी पार्टी की एक छिपी रणनीति समझना भी जरूरी हो जाता है। कहने को यह पार्टी सिर्फ 12 साल पुरानी है, लेकिन इसने सारे दांव-पेच सीख लिए हैं, उसे समीकरण समझ आते हैं। लगता है यहां भी आम आदमी पार्टी काफी दूर का सोच रही है। असल में राजनीति का इतिहास उठाकर देखा जाए तो जब भी कोई एक्सीडेंटल सीएम बनता है तो पहले तो खुशी होती है, लेकिन बाद में वही नेता पार्टी को काफी चोट भी देकर जाता है।
मांझी की बगावत, AAP को दिख रहा खतरा
इस लिस्ट में सबसे पहला नाम जीतनराम मांझी का आता है जिन्हें नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया था। असल में 2014 के आम चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश ने खुद सीएम पद छोड़ दिया था। तब उन्होंने अपने भरोसेमंद मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन जब उन्होंने उस कुर्सी को वापस मांगा, काफी बवाल हुआ और फिर मांझी ने अपनी खुद की पार्टी बना ली। यानी कि एक एक्सीडेंटल सीएम ने बगावत देकर नीतीश के महादलित वोटबैंक में चोट पहुंचाने की कोशिश की।
चंपई सोरेन भी तो बदल चुके पाला
अगर हाल का उदाहरण लें तो चंपई सोरेन ने भी कुछ ऐसा ही किया था। जब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया गया, चंपई को सीएम की कुर्सी मिल गई। लेकिन वहीं सेम हाल, हेमंत बाहर आए और चंपई से वो कुर्सी छिन गई। इस समय चुनावी मौसम में चंपई सोरेन बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। अब कहना चाहिए कि आम आदमी पार्टी को यह एक बड़ा डर है। नेता कितना भी ईमानदार क्यों ना हो, लेकिन सीएम बनने के बाद लालच आ सकता है, उस स्थिति में वो बगावत भी कर सकता है। ऐसे में वो स्थिति पैदा ही ना हो, इसलिए पहले ही ऐलान कर दिया गया कि आतिशी भरत की भूमिका निभाने वाली हैं, वे अस्थाई सीएम रहने वाली हैं। यह बताने के लिए काफी है कि आम आदमी पार्टी का एक ही चेहरा है- अरविंद केजरीवाल। सीएम किसी को भी बनाया जाए, चेहरा सिर्फ केजरीवाल का चलने वाला है।