विवेक सक्सेना
केंद्र की राजग सरकार इस बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करने पर विचार कर रही है। इसकी घोषणा जल्दी ही किए जाने की संभावना है। उनके अलावा चरण सिंह या कर्पूरी ठाकुर को भी इस सम्मान से नवाजा जा सकता है।
भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, नरेंद्र मोदी सरकार , अटल बिहारी वाजपेयी को इस साल देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इसका एलान उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को किया जा सकता है। मालूम हो कि पिछले साल भाजपा ने तत्कालीन यूपीए सरकार से वाजपेयी को भारत रत्न दिए जाने की मांग की थी। अब पार्टी की अपनी सरकार है।
लालकृष्ण आडवाणी के करीबी सूत्रों के अनुसार, वे खुद भी उन्हे यह सम्मान दिए जाने की पैरवी कर चुके हैं । भाजपा के लिए भी यह एक अहम मौका होगा क्योेंकि इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि होंगे। ऐसा माना जा रहा है कि वाजपेयी को यह सम्मान देने का साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चर्चा पर भी विराम लगा देंगे कि उनके व पूर्व प्रधानमंत्री के संबंध मधुर नहीं थे व गोधरा कांड के बाद वे उनसे इस्तीफा लेना चाहते थे।
सूत्रों के अनुसार, इसके साथ ही समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर, एनटी रामाराव या चरण सिंह में से किसी एक नेता को भी यह दिया जा सकता है। मालूम हो कि जद (एकी) नेता केसी त्यागी काफी लंबे अरसे से अटल बिहारी वाजपेयी के साथ-साथ इन नेताओ को भी इनके योगदान के लिए भारत रत्न दिए जाने की मांग करते आए हैं। उनकी शिकायत है कि जिन नेताओं को इससे सम्मानित किया गया है उनमें से ज्यादातर कांग्रेसी ही हैं। ऐसे में द्रमुक भी सीएन अन्नादुरै को सूची में शामिल किए जाने की मांग कर सकता है।
देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान विवादों से बच नहीं पाया है। पिछले साल जब क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को यह दिया गया था तब जाने-माने हाकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद को भी इससे वंचित रखने के लिए सरकार की आलोचना हुई थी। आोलंपिक धावक मिल्खा सिंह समेत तमाम हस्तियों ने उन्हे यह सम्मान दिए जाने की मांग की थी। 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित यह सम्मान हर साल अधिकतम तीन लोगों को दिया जा सकता है।
पहले इसे जीवित लोगों को ही कला, साहित्य, विज्ञान व सार्वजनिक जीवन में उल्लाखनीय कार्य करने के लिए दिए जाने का प्राावधान था। बाद में इसे मृत्योपरांत दिए जाने व खिलाड़ियों को भी इसमें शामिल करने की व्यवस्था कर दी गई। पहली बार 1954 में यह तीन लोगों सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन, सीवी रमन व सी राजगोपालाचारी को दिया गया था। अब तक यह 43 हस्तियों को मिल चुका है जिनमें से 40 भारतीय, व तीन विदेशी हैं।
किसी को इससे सम्मानित किए जाने के लिए प्रधानमंत्री उसका नाम खुद राष्ट्रपति को भेजते हैं। यहां यह याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि दो प्रधानमंत्रियों- जवाहर लाल नेहरू व इंदिरा गांधी ने खुद पद पर रहते हुए राष्ट्रपति से अपने ही नामों की सिफारिश कर दी थी। नेहरू ने 1955 में व इंदिरागांधी ने 1971 को खुद को भारत रत्न से सम्मानित किया। मोरारजी देसाई किसी भी तरह का सरकारी सम्मान दिए जाने के सख्त खिलाफ थे। इसलिए उन्होंने जनता पार्टी के सत्ता में आने पर 1977 में इसके साथ ही पद्म विभूषण, पद्मभूषण व पद्मश्री पर भी रोक लगा दी थी। जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आईं तो उन्होने 26 जनवरी 1980 से इन्हें फिर शुरू कर दिया। 1991 में राजीव गांधी को भी सम्मानित किया गया।
हालांकि अगले ही साल केरल व जबलपुर हाईकोर्ट में दो जनहित याचिकाएं दायर करके इसकी संवैधनिक वैधता को ही चुनौती दी गई। इससे इस पर रोक लगी व 1995 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही यह बहाल हुआ। शायद इसकी एक वजह 1992 में सरकार द्वारा सुभाषचंद्र बोस को इससे सम्मानित किए जाने का एलान से पैदा हुआ विवाद था। उनके परिवार के लोगों ने जबरदस्त विरोेध किया क्योंकि सरकार नें अपने बयान में यह कहा था कि उन्हे मरणोपरांत सम्मानित किया जा रहा है। बोस परिवार के लोगों का कहना था कि सरकार किस आधार पर उन्हें मरा हुआ मान रही थी। अंतत: सरकार ने एक और बयान जारी करके उसे वापस लेने का एलान कर दिया।
यह देश का भले ही सर्वोच्च नागरिक सम्मान हो पर सम्मान की वरिष्ठता के क्रम में यह सातवें नंबर पर आता है। पहले नंबर पर राष्ट्रपति, दूसरे पर उपराष्ट्रपति, तीसरे पर प्रधानमंत्री, चौथे पर राज्यपाल, पूर्व राष्ट्रपति, उप प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश, लोकसभा के अध्यक्ष व राज्यसभा के सभापति आते हैं। पांचवें नंबर पर केबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, व छठे नंबर पर उप मुख्यमंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा व राज्यसभा में विपक्ष के नेता होते हैं। भारत रत्न से सम्मानित लोग सातवें नंबर पर रखे गए हैं। वैसे इसकी अहमियत का अंदाजा तो इससे ही लगाया जा सकता है कि जब 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को इसके लिए चुना गया तो गृह मंत्रालय का एक अधिक ारी मुंबई स्थित उनके घर जाकर उन्हें यह थमा आया और इससे भी हास्यास्पद बात यह रही कि जिन मोरारजी ने इस पर रोक लगाई थी, उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार भी कर लिया।