गुजरात में 14 साल पहले हुए दंगे के दौरान एक चेहरा हर अखबार के पहले पन्ने पर था। 2002 दंगे की विभीषिका को बयां करता वो चेहरा, जिसने भी देखा आंखें नम हो गईं। कुतुबुद्दीन अंसारी नाम का वह शख्स दंगों की पीड़ा का फेस बन गया। गुजरात दंगे को बीते आज डेढ़ दशक होने को आया और समय के साथ अंसारी को भी भुला दिया गया, लेकिन असम और पश्चिम बंगाल चुनाव के चलते एक बार वही दर्दभरा चेहरा चर्चा में आ गया है। कारण है खौफ और दर्द से भरे उस चेहरे का राजनीतिक इस्तेमाल। यह आरोप किसी और ने नहीं बल्कि खुद अंसारी ने ही लगाया है। उन्होंने मुंबई मिरर से बात करते हुए कहा, ”जब-जब यह होता है, मेरे लिए जिंदगी और कठिन हो जाती है। कल लोगों को पता चलेगा तो वे मेरे मंशा पर सवाल उठाएंगे। लेकिन सच यह है कि मुझे इस बारे में पता तक नहीं है।”
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अंसारी ने कहा, ‘मैं 43 साल का हूं और पिछले 14 सालों में राजनीतिक दलों, बॉलीवुड और यहां तक कि आतंकी संगठनों ने मेरा प्रयोग और दुरुपयोग किया। इससे तो अच्छा होता कि मैं 2002 में ही मर गया होता, क्योंकि मैं अपने बच्चों के उस सवाल का जवाब नहीं दे पाता कि पापा हम जब भी आपकी तस्वीर देखते हैं, उसमें आप रोते और दया की भीख मांगते दिखते हैं।’
गुजरात दंगे का चेहरा बने अंसारी के राजनीतिक इस्तेमाल का आरोप कांग्रेस पार्टी पर लगा है, जिसने असम में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन शनिवार को कई अखबारों में विज्ञापन दिया, जिसमें अंसारी की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया। विज्ञापन में उनके फोटो के साथ मोदी के गुजरात मॉडल पर सवाल उठाया गया। इस विज्ञापन में सवाल पूछा गया है, ‘क्या आप भी असम को गुजरात जैसा देखना चाहते हैं? फैसला आपको करना है।’
यह विज्ञापन प्रधानमंत्री मोदी के 8 अप्रैल को दिए गए उस भाषण के बाद सामने आया तरुण गोगोई सरकार को असम में घुसपैठ के लिए जिम्मेदार ठहराया था। पीएम मोदी ने अपनी रैली के दौरान बांग्लादेशियों के मुद्दे को लेकर कई सवाल खड़े किए थे।