यहां के केईएम अस्पताल में एक वार्ड बॉय के नृशंस यौन हमले के बाद पिछले 42 साल से कोमा में पड़ी अरुणा शानबाग ने चार दशक से अधिक समय तक पीड़ा झेलने के बाद आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

भारत में इच्छामृत्यु पर छिड़ी बहस का चेहरा बनी 66 वर्षीय अरुणा को पिछले सप्ताह न्यूमोनिया के गंभीर संक्रमण के बाद परेल स्थित केईएम अस्पताल के आईसीयू में जीवनरक्षक प्रणाली पर रखा गया था।

सबसे लंबी अवधि तक कोमा में रहने वाले मरीजों में से एक अरुणा पिछले चार दशक से अस्पताल के वार्ड नंबर चार से लगे एक छोटे से कक्ष में थी।

केईएम अस्पताल में नर्स अरुणा के साथ 27 नवंबर 1973 को एक वार्ड बॉय सोहनलाल भरथा वाल्मीकि ने बलात्कार किया और कुत्ते के गले में बांधने वाली जंजीर से अरुणा का गला घोंटा। गला घोंटे जाने के कारण उसके मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो गई और वह कोमा में चली गई।

सोहनलाल को पकड़ा गया, सजा भी हुई। हमले और लूटपाट के लिए सात साल की दो सजाएं साथ साथ चलीं। लेकिन बलात्कार, यौन उत्पीड़न या कथित अप्राकृतिक यौन हमले के लिए उसे सजा नहीं मिली।

नृशंस हमले के बाद अरुणा केईएम अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर वार्ड नंबर चार से जुड़े एक कमरे की स्थायी मरीज बन गई। इतने बरसों तक नर्सें उसकी देखरेख करती रहीं, उसके भोजन की व्यवस्था करती रहीं और उसकी अन्य जरूरतें पूरी करती रहीं।

अरुणा को जिंदा लाश में तब्दील कर देने वाले हमले के 38 साल बाद उच्चतम न्यायालय ने 24 जनवरी 2011 को पत्रकार पिंकी विरानी द्वारा किए गए इच्छा मृत्यु के आग्रह पर प्रतिक्रिया देते हुए अरुणा के स्वास्थ्य की जांच के लिए एक चिकित्सा पैनल गठित किया।

पिंकी ने अरुणा को इच्छामृत्यु देने के लिए उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई थी। न्यायालय ने सात मार्च 2011 को दया मृत्यु संबंधी याचिका खारिज कर दी। बहरहाल, न्यायालय ने स्थानीय कोमा की स्थिति में मरीजों को जीवनरक्षक प्रणाली से हटा कर ‘‘परोक्ष इच्छामृत्यु’’ (पैसिव यूथनेशिया) की अनुमति दे दी लेकिन जहरीले पदार्थ का इंजेक्शन दे कर जीवन समाप्त करने के तरीके ‘‘प्रत्यक्ष इच्छामृत्यु’’ (एक्टिव यूथनेशिया) को खारिज कर दिया।

अरुणा को दया मृत्यु देने से इंकार करते हुए न्यायालय ने कुछ कड़े दिशानिर्देश तय किए जिनके तहत उच्च न्यायालय की निगरानी व्यवस्था के माध्यम से ‘‘परोक्ष इच्छामृत्यु’’ कानूनी रूप ले सकती है।

पिंकी ने अरुणा की मौत की खबर पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा ‘‘आखिरकार इतने पीड़ादायी वर्षों के बाद अरुणा को न्याय मिला। उसे मुक्ति और शांति मिल गई।’’ उन्होंने कहा ‘‘जाते जाते अरुणा भारत को महत्वपूर्ण ‘‘पैसिव यूथनेशिया’’ कानून दे गईं।’’

केईएम अस्पताल के डीन डॉ अविनाश सुपे ने बताया कि हाल ही में उसे निमोनिया होने का पता चला और उसे जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया। जांच में पता चला कि अरुणा को फेफड़ों में संक्रमण था। उसे नलियों की मदद से भोजन दिया जाता था।

मंगलवार को अरुणा की देखरेख कर रही नर्सों ने देखा कि उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। तब उन्होंने उसे कक्ष से बाहर निकाला और आईसीयू ले गईं जहां उसे एंटीबायोटिक दवाएं दी गईं।

केईएम अस्पताल नगर निगम द्वारा संचालित है और नगर निगम ने 1980 के दशक में अरुणा को अस्पताल से बाहर निकालने का प्रयास किया था जिसका व्यापक विरोध हुआ। अरुणा की देखभाल करने वाली नर्सों ने इस प्रयास के विरोध में हड़ताल कर दी थी।

अरुणा की बड़ी बहन और एकमात्र संबंधी शांता नाइक ने आर्थिक समस्याओं का हवाला देते हुए उसकी देखरेख करने में अक्षमता जाहिर की थी। मुंबई की नर्सों ने अरुणा पर हमले के बाद उसके लिए और अपने लिए कार्य की बेहतर स्थितियों की मांग को लेकर हड़ताल की थी।

पिंकी ने उत्तर प्रदेश के हल्दीपुर की रहने वाली अरुणा की कहानी वर्ष 1998 में अपनी ‘नॉन फिक्शन’ किताब ‘‘अरूणा’ज स्टोरी’’ में बताई। अरुणा पर दत्तकुमार देसाई ने 1994-95 में मराठी नाटक ‘‘कथा अरूणाची’’ लिखा जिसका वर्ष 2002 में विनय आप्टे के निर्देशन में मंचन किया गया।