NDPS Act से जु़ड़े एक मामले में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट उस समय हत्थे से उखड़ गया जब बार बार समन करने के बाद भी पुलिस के अफसर उसके सामने नहीं आए। कोर्ट ने अफसरों को कोर्ट में बुलाने के लिए अरेस्ट वारंट भी निकाल दिए। लेकिन उसके बाद भी उनके कानों पर जूं नहीं रेंगी। पुलिस के तौर तरीकों से हाईकोर्ट भौचक था। आखिर में अदालत ने आरोपी को इस बिनाह पर जमानत दे दी कि पुलिस बेपरवाह है।

जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह ने कहा कि पुलिस का रवैया हैरत में डालने वाला है। 18 फऱवरी 2022 को चार्ज फ्रेम हो चुके हैं। एक बार चार्ज फ्रेम हो जाए तो कानून का काम शुरू हो जाता है। पुलिस की ये ड्यूटी बनती है कि वो कोर्ट के समक्ष पेश होकर सारा वाकया बयां करे। सारे तथ्यों को अदालत के सामने पेश किया जाए। NDPS एक्ट के मामले में तो खास एहतियात बरतनी होती है। लेकिन इस मामले में बार-बार बुलाने के बाद भी पुलिस के अफसर पेश ही नहीं हो रहे हैं। जमानती तो छोड़िए वो अरेस्ट वारंट को भी तवज्जो देने का तैयार नहीं। उनका रवैया हारत में डालने वाला है।

सिंगल बेंच ने आरोपी को इस मामले में जमानत देते हुए कहा कि पुलिस का रवैया उसे मजबूर कर रहा है कि वो इस तरह का फैसला ले। कोर्ट का कहना था कि वैसे मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद ही आरोपी को जमानत दी जानी थी पर पुलिस की कार्यशैली से वो काफी आहत है। कोर्ट आरोपी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत की अपील की थी।

मामले के मुताबिक आरोपी को Tramadol की 1060 गोलियों के साथ अरेस्ट किया गया था। उसके खिलाफ NDPS एक्ट की धारा 22, 25 के तहत केस दर्ज किया गया था। आरोपी का कहना था कि वो तकरीबन 1.5 साल से जेल में बंद है। चार्ज फ्रेम हो चुके हैं लेकिन पुलिस कोई भी गवाह कोर्ट में पेश नहीं कर सकी है। लिहाजा उसे जमानत पर रिहा किया जाए। उसका कहना था कि वो आदतन अपराधी नहीं है। उसके खिलाफ कोई दूसरा मामला भी दर्ज नहीं है। कोर्ट ने माना कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत स्पीडी ट्रायल आरोपी का मौलिक अधिकार है।