श्रीलंका में आर्थिक संकट से पैदा राजनीतिक संकट और गहरा गया है। दो करोड़ बीस लाख की आबादी वाले इस द्वीपीय देश में प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन से लेकर प्रधानमंत्री आवास तक पर कब्जा किए हुए हैं। राष्ट्रपति देश छोड़ चुके हैं और सरकार के मंत्री सामूहिक इस्तीफे दे रहे हैं। साल 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से इस वक्त सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहे इस देश में लोगों का गुस्सा हफ्तों तक उबलने के बाद आखिरकार फट पड़ा, जिसने सरकार की नींव हिला दी है।

इसके अलावा अतीत में यहां प्रभाव जमा चुके चीन ने मौजूदा हालात में चीन को अपने गिरफ्त में लेने के लिए कर्ज का जाल और मजबूत कर दिया है। ऐसे में भारत सरकार ने अपने इस पड़ोसी मुल्क को आर्थिक संकट के चक्रव्यूह से उबारने के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। खाद, भोजन और कच्चे तेल की आपूर्ति के साथ ही वित्तीय मदद भी भेजी है। कूटनीतिक तौर पर भारत की नजर चीन पर है। भारत यहां आधारभूत ढांचे को मजबूत करने की कवायद में जुटा है, जिसका उद्देश्य है चीन के इरादे नाकाम करना।

अंतरिम सरकार पर टिकी निगाहें

श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के सत्ता से हटने के बाद अब अंतरिम सरकार बनने जा रही है। मौजूदा संकट से उबरने के लिए भारत श्रीलंका को अब तक चार अरब डालर की मदद दे चुका है। इसके तहत ऊर्जा, ढांचागत निर्माण, संचार समेत कई क्षेत्रों में भारत अपने पड़ोसी की भरपूर मदद करेगा। आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका की खुलकर मदद करके भारत की कोशिश चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना है।

श्रीलंका के हालात पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर सार्वजनिक बयान दिया कि भारत श्रीलंका के लिए सहयोगी रहा है और मदद करने का प्रयास कर रहा है। इस बयान से पहले एक जुलाई को भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार विक्रम मिस्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में श्रीलंका के साथ भारत के आर्थिक संपर्क को बढ़ाने पर मंथन हुआ था। इस बैठक में भारत के प्राथमिकता वाली परियोजनाओं को चिन्हित किया गया। इस बैठक में भारतीय रुपए को श्रीलंका में लेन-देन के लिए इस्तेमाल के लिए चर्चा की गई।

निवेश के अहम क्षेत्र

अधिकारियों के मुताबिक, भारत ने कई ऐसे अहम क्षेत्रों को चिन्हित किया, जो ज्यादा लंबी अवधि के लिए है और व्यापार तथा निवेश के रिश्ते को मजबूत करने के लिए है। इसमें श्रीलंका के पूर्वोत्तर इलाके में स्थित त्रिंकोमाली बंदरगाह का विकास, बिजली परियोजनाएं, भारत और श्रीलंका के बीच विमानों की उड़ान बढ़ाना, जलयान सेवा को बहाल करना शामिल है।

श्रीलंका इन दिनों सबसे भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया है जिससे वह तेल और अन्य जरूरी सामानों का आयात नहीं कर पा रहा है। भारत ने पहले ही श्रीलंका को तीन अरब डालर का कर्ज दे रखा है। इसके अलावा एक अरब डालर से ज्यादा मूल्य की दवाएं, खाद्यान्न और पेट्रोलियम उत्पाद भी भेजा है।

श्रीलंकाई कर्ज जाल

भारत ने पड़ोसी श्रीलंका को ऐसे समय पर मदद का हाथ बंटाया है, जब चीन का इस द्वीपीय देश में प्रभाव काफी बढ़ गया। चीन श्रीलंका को कर्ज देने वाले देशों में तीसरे नंबर पर है। चीन ने श्रीलंका के आधारभूत ढांचे में जमकर पैसा लगाया है। इसमें रणनीतिक रूप से अहम हंबनटोटा बंदरगाह शामिल है। यही नहीं श्रीलंका ने चीन के बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत अपने आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए बड़े पैमाने पर कर्ज लिया है। श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं।

अब मौजूदा हालात में भारत वहां आर्थिक मदद के जरिए चीन के इस संजाल को तोड़ने की कूटनीतिक कवायद में जुटा है। प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी में पिछले दिनों आयोजित जी-7 शिखर वार्ता के दौरान अफगानिस्तान के साथ-साथ श्रीलका में खाद्य संकट का मुद्दा उठाया, लेकिन इसको लेकर किसी खास नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका। इस संपूर्ण पृष्ठभूमि में भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कोलंबो का दौरा किया। उसके बाद से भारत लगातार श्रीलंका में मानवीय और आर्थिक मदद भेज रहा है।

श्रीलंका : एक नजर

श्रीलंका, भारत के दक्षिण में स्थित एक द्वीप है। यहां मुख्य रूप से सिंहली, तमिल और मुसलमान आबादी है। देश की कुल 2.2 करोड़ आबादी में इन तीनों का कुल हिस्सा करीब 99 फीसद है। श्रीलंका की सत्ता पर पिछले कुछ सालों से एक ही परिवार का दबदबा रहा। 2009 में तमिल अलगाववादियों का पूरी तरह सफाया करने के बाद राजपक्षे बंधु देश के बहुसंख्यक सिंहलियों के बीच एक हीरो बन गए थे।

देश में मौजूदा आर्थिक संकट ने कोहराम मचा रखा है। बढ़ती महंगाई के चलते देश में खाद्य पदार्थ, दवा, ईंधन की घोर किल्लत है। देश में देर तक बिजली कटौती हो रही है। गुस्साए लोग सड़कों पर महीनों से आंदोलन रत हैं और मौजूदा हालात के लिए राजपक्षे परिवार को जिम्मेदार मान रहे हैं।

क्या कहते हैं जानकार

श्रीलंका के मौजूदा संकट के लिए राजपक्षे बंधु जिम्मेदार हैं। मुझे लगता है कि श्रीलंका के नेतृत्व को खासतौर पर गोटबाया राजपक्षे को काफी पहले हट जाना चाहिए था। श्रीलंका में हाल में जो अभूतपूर्व घटनाक्रम देखे गए, वे आर्थिक संकट से ठीक से नहीं निपटने को लेकर राजपक्षे परिवार के खिलाफ लोगों के आक्रोश के चलते अपरिहार्य थे।

  • अशोक सज्जनहार, पूर्व राजनयिक

श्रीलंका में सर्वदलीय सरकार गठित करने का मार्ग प्रशस्त करने भर से आर्थिक संकट में नाटकीय ढंग से सुधार आने की संभावना नहीं है। आर्थिक संकट से निपटने की चुनौती तो है कि जनाक्रोश थामने का भी मुद्दा अहम है। भारत सरकार सधे कदम उठा रही है।

  • अशोक के कंठ, श्रीलंका में भारत के पूर्व उच्चायुक्त