भारत जैसे देशों में बिग फैट वैडिंग यानी कि बड़ी-बड़ी शादियों का एक ट्रेंड रहा है। ऐसा नहीं है कि ये कोई अभी का चलन हो कि अचानक से लोगों ने शादियों पर ज्यादा पैसा खर्च दिया हो, ये एक ऐसा इंस्टीट्यूट है जहां सादगी, सरलता जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं रही है। जितना ज्यादा खर्च किया जाएगा, उतना अच्छा माना जाएगा। ये विचारधारा ही भारत की शादियों को अलग बनाती है, उसकी अहमियत को कई गुना ज्यादा कर देती है।

समाज में इज्जत फैक्टर का विश्लेषण

लेकिन क्या हर परिवार शादी के लिए इतना खर्चा कर सकता है? क्या हर कोई अमीर परिवार की तरह अपने बेटे-बेटी की शादी में पानी की तरह पैसे को बहा सकता है? इसका साधारण जवाब तो ना ही है, लेकिन भारत के संदर्भ ये कहना गलत हो जाता है। अमीर तो शादी पर पैसा खर्च कर ही रहा है, गरीब भी अपनी क्षमता से बहुत ऊपर जाकर शादियों पर पैसा उड़ा रहा है। जेब उसकी इस बात की इजाजत दे या ना दे, लेकिन समाज में इज्जत बनी रहे, ऐसे में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती। अब सवाल उठता है कि ये दबाव बन कहां से रहा है, कहां से ये सीखा जा रहा है कि शादी पर ज्यादा खर्च करने के बाद ही समाज उस शादी को स्वीकार करेगा?

अब इसी मुद्दे का विश्लेषण करते हैं, लेकिन सबसे पहले बात अंबानी परिवार में हुई शादी की। उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे अनंत की राधिका मर्चेंट के साथ शादी जुलाई में संपन्न होने जा रही है। बताया जाता है कि अंबानी परिवार ने ‘वेड इन इंडिया’ अभियान को बढ़ावा देने के लिए भारत में ही शादी के तमाम आयोजन करने का फैसला किया। जामनगर की धरती पर ही सारे कार्यक्रम किए गए। अब उस शादी में मेहमानों की सूची पूरी तरह VIP, खर्चा करने का अंदाज VIP और जैसी कवरेज मिली, वो भी VIP।

अंबानी के प्री वेडिंग में पानी की तरह बहा पैसा

एक रिपोर्ट बताती है कि तीन दिन तक जामनगर में जो प्री वेडिंग की मजहफिल सजी थी, उसमें अंबानी परिवार ने 1269 करोड़ का खर्चा किया। इसके ऊपर रिहाना जैसे स्टार परफॉर्मर्स के लिए भी 70 करोड़ के करीब खर्च किया गया। जिस खाने के मैन्यू की हर तरफ चर्चा हुई, उस पर भी 210 करोड़ स्पेंड किए गए। मजे की बात ये है कि इतना खर्चा करने के बाद भी मुकेश अंबानी ने अपनी कुल संपत्ति का सिर्फ 0.1 प्रतिशत ही खर्च किया है, लेकिन ये बात ही आम लोगों तक शायद नहीं पहुंची है, उन्हें बस वो शानो शौकत दिखी है जहां मार्क जुकरबर्ग से लेकर बॉलीवुड के तीनों खानों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

बैंक से कर्ज लेने पर मजबूर

अब होता ये है कि दूसरे ने शादी की, खूब खर्चा किया, हर कोई उसे ही फॉलो करने की कोशिश करता है। लेकिन भारत जैसे देश में जहां लोगों की इनकम में इतनी असमानता है, हर कोई कैसे इस तरह की शादी का आयोजन कर सकता है? अब लोअर मिडल क्लास या फिर गरीब परिवार अंबानी जैसी शादी नहीं कर सकता, लेकिन वो अपनी क्षमता से काफी ऊपर जाकर इंतजाम करता है, इतना इंतजाम उसके खुद के दिवालिया होने की नौबत आ जाए। प्रगति ग्रामोद्योग एवं समाज कल्याण संस्थान की एक रिपोर्ट बताती है कि 60 प्रतिशत भारतीय शादी करवाने के लिए बैंक से कर्ज उठाते हैं, वो लोन भी ऐसे इंटरेस्ट रेट पर होता है कि पूरी जिंदगी ब्याज चुकाने में निकल जाती है।

युवा मांग रहे ज्यादा कर्ज

हैरानी की बात ये है कि ग्रामीण भारत में शादियों के खर्चे इतने ज्यादा हो जाते हैं कि पूरे परिवार को साहूकार के यहां मजदूरी तक का काम करना पड़ता है। ये कोई सिर्फ एक घटना नहीं है, जिस प्रकार का शादियों का ट्रेंड चल रहा है, ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी करना भी शादी कार्यक्रम के साथ जुड़ चुका । अब अगर गांवों में साहूकार मनमाने तरीके से मोटे ब्याज पर कर देने का काम कर रहा है, शहरी इलाकों में बैंक से लोन लेने का चलन काफी आम है। IndiaLends ने साल 2019 में एक सर्वे किया था जिसमें पाया गया कि 20 फीसदी लोगों ने बैंक से लोन तो मांगा, लेकिन वो शादी के लिए था। बड़ी बात ये रही कि लोन मांगने वाले लोगों की उम्र 20 से 30 साल के बीच में थी, यानी कि वो सभी नौजवान थे।

रील्स का जमाना और सोशल प्रेशर

अब एक ट्रेंड ये समझ आता है कि युवाओं के माता-पिता अगर समाज में अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए शादियों में ज्यादा खर्च करने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं कम उम्र वाले लोग सोशल मीडिया की दुनिया में खुद को लाइमलाइट में लाने के लिए बिग फैट वैडिंग में ज्यादा विश्वास दिखा रहे हैं। जब तक हजारों रील्स ना बन जाएं, जब तक लाखों लाइक ना आ जाए, शादी को संपन्न नहीं माना जा रहा है। KPMG की रिपोर्ट बताती है कि एक सामान्य भारतीय नागरिक शादी के समय अपनी कुल संपत्ति का वन फिफ्थ हिस्सा खर्च कर देता है।

बदलती प्राथमिकताएं और कर्ज

इसके ऊपर डेस्टिनेशन वेडिंग का ऐसा क्रेज देखने को मिल रहा है कि हर 100 में से 10 लोग कहीं और शादी करने को लेकर जरूर इनक्वारी कर रहे हैं। तमाम रिपोर्ट्स बताती हैं कि जयपुर, उदयपुर, मसूरी, लोनावाला, गोवा कुछ ऐसी जगह बन चुकी हैं जहां पर लोग शादी करवाना चाहते हैं। अब इन शादियों में और ज्यादा मोटा खर्चा इसलिए देखने को मिल रहा है क्योंकि प्री वेडिंग शूट्स, ड्रोन फोटोग्रॉफी और सोशल मीडिया शेड्यूलर जैसी चीजें भी साथ में जोड़ दी गई हैं, इससे खर्चा कम होने के बजाय कई गुना और बढ़ चुका है। अनंब अंबानी के प्री वेडिंग फंक्शन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जहां पर शादी से पहले ही करोड़ों रुपये उड़ा दिए गए हैं।

कोरोना के बाद फिर वापसी

एक स्टडी बताती है कि कोरोना काल में जब दूसरी लहर आई थी, शादियों के लिए कर्ज मांगने वालों की संख्या में 33 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली थी। बड़ी बात ये रही कि यहां भी 10 फीसदी लोन मांगने वाली महिलाएं रहीं। दिलचस्प बात ये भी है कि कोरोना के समय लोग जरूर बढ़ चढ़कर वर्चुअल मैरिज की बात कर रहे थे, लेकिन स्थिति के सामान्य होते ही वेडिंग इंडस्ट्री फिर अपने पुराने अंदाज में लौट आई। एक आंकड़ा बताता है कि भारतीय शादी की जो इंडस्ट्री है, वो 6.2 लाख करोड़ की होने जा रही है। वहां भी सात से आठ प्रतिशत की तगड़ी ग्रोथ देखने को मिल रही है।

एक शादी पर कितना खर्च, कहां कितना पैसा?

अगर बन्स की रिपोर्ट पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि एक सामान्य इंडियन वेडिंग में कहां औसतन कितना खर्चा आता है। शादी के वेन्यू पर 1 से 3 लाख रुपये, सजावट पर तीन लाख रुपये, नाश्ते-खाने पर प्रति प्लेट 500 से 1000 रुपये, जोड़े के मेक अप पर 50 हजार से 1 लाख, फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी पर रोज के 50 हजार रुपये तक खर्च हो जाते हैं। अब ये तो एक औसतन आंकड़ा है, लेकिन लोगों की सैलरी के मुताबिक ये खर्चा कभी थोड़ा कम तो कभी थोड़ा इससे ज्यादा होता रहता है। Confederation of All India Traders (CAIT) का एक आंकड़ा बताता है कि देश में होने वाली कुल 38 लाख शादियों से करीब 4.74 लाख करोड़ का व्यापार होने वाला है।

जितनी जेब उतना कर्जा

अब ये एक सच्चाई है कि शादी में होने वाला मोटा खर्चा अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाता है, कई ऐसे सेक्टर रहते हैं जिनका सीधा कनेक्शन देश की ग्रोथ के साथ जुड़ा रहता है। ऐसे में शादियों में खर्चा होना कोई गलत ट्रेंड नहीं है, लेकिन जब ये खर्चा जरूरत से ज्यादा होने लगे, बिना अपनी जेब को समझे किए जाने लगे तो समझ जाना चाहिए कि खतरे की घंटी बज चुकी है और कर्ज में डूबने की तैयारी शुरू हो जाती है।