Amritsar Train Accident: ”इसका नाम आकाश है, इसने काली शर्ट पहनी थी, किसी ने देखा इसे?” ये सवाल अमृतसर के गुरुनानक देव अस्पताल के गलियारों में आधी रात को बेतहाशा भागते हुए एक अधेड़ उम्र का शख्स लोगों से पूछ रहा था। उसने मौके पर खड़े प्रशासन और पुलिस के लोगों को नकार दिया। उसके हाथ में एक मोबाइल था, जिसमें तस्वीर दिखाकर वह लोगों से उसके बारे में पूछताछ कर रहा था। मौके पर खड़े कुछ सिपाहियों ने उसे सलाह दी कि वह उस कमरे में तलाश करे, जिसकी फर्श पर ढेर सारे शव रखे गए थे। वह शख्स उन पर बिफर पड़ा,”मैं पहले ही तीन अस्पतालों में घूमकर देख आया हूं। पहले मैंने वार्ड में चेक किया। मैं लाशों में उसे क्यों तलाश करूं? वह मरा नहीं है।”
आधी रात के वक्त, कुछ घंटों के भीतर दशहरा का मेला देखने गए लोगों के खून से सने हुए शरीर भारी तादाद में अस्पताल आने लगे। ये हादसा जोड़ा फाटक पर रावण दहन देख रहे लोगों के ऊपर से दो ट्रेनें गुजर जाने के बाद हुआ था। इसके बाद लोगों ने अपने प्रियजनों की तलाश शुरू कर दी। कुछ उन्हें लेकर अस्पताल की तरफ भागे। पुलिस ने ‘कागजी कार्रवाई’ पूरी करनी शुरू की जबकि लाशों की तादाद बढ़ती चली जा रही थी।
अपने 19 साल के बेटे नीरज की लाश का इंतजार कर रहे 54 साल के मुकेश कुमार उसकी बात करते हुए फफक पड़े। मुकेश ने कहा,” मैंने उसे कहा था कि मत जाओ। मैंने उसे मना किया था कि रेलवे ट्रैक के नजदीक न जाओ। ये खतरनाक है।” नीरज का मृत शरीर ड्रेसिंग रूम में रखा था जिसे अब शवों की बढ़ती तादाद के कारण मोर्चरी बना दिया गया है। मुकेश ने कहा,”अमृतसर ने दूसरा जलियांवाला बाग जैसा हादसा देखा है। ये घाव अब कभी नहीं भरेगा।”
एक स्वयंसेवी संगठन ‘योर ब्लड कैन सेव लाइफ’ के शुभम शर्मा ने कहा,” यहां बर्फ नहीं है। यहां दस्ताने भी नहीं हैं। कोई मास्क नहीं है। हमने अधिकारियों से कुछ इंतजाम करने के लिए कहा था। अगर पूरी तरह शव गृह तैयार नहीं है तो क्या वह हमें कुछ बर्फ, दस्ताने और मास्क नहीं दे सकते हैं। डॉक्टर यहां लाशों को छूने के लिए तैयार नहीं हैं। वे शवों से निकल रही भयानक बदबू से परेशान हैं। वे लोग हमसे कह रहे हैं कि हम उनके शरीरों से आईडी प्रूफ और कुछ दस्तावेज ढूंढकर निकालें।” उसकी बात सुनने के बाद स्वयंसेवकों का एक ग्रुप स्ट्रेचर पर बर्फ की सिल्लियां लेकर आ जाता है। एक स्वयंसेवक ने बताया ”लेकिन लाने के बाद उसे तोड़ा कैसे जाए? क्योंकि बर्फ की सिल्ली को तोड़ने वाला सूजा किसी के पास नहीं है।”
कम से कम 19 लाशें खबर लिखे जाने तक गुरुनानक देव अस्पताल के अस्थायी शवगृह में फर्श पर पड़ी हुईं हैं। एक स्वयंसेवक रूपक ने कहा,”इनमें से 8 को अन्य लोगों ने पहचान लिया है लेकिन बाकी लोगों के शरीर के अंग लापता हो चुके हैं। एक का तो सिर भी नहीं है। उनमें से महिला और उसकी एक साल की बच्ची भी है। ये ट्रेन हमारे शहर के लिए रावण की तरह आई थी।”