Amrita Pritam Google Doodle (अमृता प्रीतम): विश्व के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने डूडल बनाकर मशहूर भारतीय पंजाबी कवि अमृता प्रीतम को उनकी 100वीं जन्मतिथि पर याद किया है। कई अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित प्रीतम का जन्म 1919 में पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के गुजरांवाला में हुआ। साल 1980-81 में उन्हें ‘कागज और कैनवास’ कविता संकलन के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। अमृता ने कुल मिलाकर सौ से ज्यादा किताबें लिखीं। इसमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। बता दें कि पहली महिला पंजाबी कवि के रूप में जानी जाने वाली अमृता प्रीतम की कई किताबें इतनी मशहूर हुईं कि उनका अनुवाद दूसरी भाषाओं में भी किया गया।
उनका बचपन लाहौर में बीता और छोटी उम्र में ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया। उन्हें पंजाबी कविता ‘अज्ज आखां वारिस शाह नूं’ से काफी शोहरत हासिल हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं के दुखांत का जिक्र है। इस कविता को भारत और पाकिस्तान में खूब सराहा गया। कहा जाता है कि कविता इतनी मार्मिक थी कि लाखों-करोड़ों लोग इसे अपने जेब में रखा करते और दिन भर में कई बार पढ़ा करते।
कविता की लाइनें इस प्रकार हैं-
आज मैं वारिस शाह से कहती हूं, अपनी क़ब्र से बोल,
और इश्क़ की किताब का कोई नया पन्ना खोल,
पंजाब की एक ही बेटी (हीर) के रोने पर तूने पूरी गाथा लिख डाली थी,
देख, आज पंजाब की लाखों रोती बेटियां तुझे बुला रहीं हैं,
उठ! दर्दमंदों को आवाज़ देने वाले! और अपना पंजाब देख,
खेतों में लाशें बिछी हुईं हैं और चेनाब लहू से भरी बहती है
Highlights
जानी मानी लेखिका का जन्म 31 अगस्त 1919 को पंजाब प्रांत के गुजरांवाला में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। वह बंटवारे के बाद भारत आ गई थीं। डूडल में अमृता प्रीतम पंजाबी सलवार सूट पहने हाथ में डायरी लिए उससे कलम पर कुछ लिखती नजर आ रही हैं और उनके पास में गुलाब का एक गुच्छा पड़ा है। प्रीतम की 1936 में करीब 17 वर्ष की उम्र में किताब छप गई थी। ‘ब्लैक रोज’, ‘रसीदी टिकट’ सहित उनकी कई किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया। उनकी मशहूर किताब ‘पिंजर’ पर 2003 में फिल्म भी बनाई गई और इसे कई पुरस्कार भी मिले। प्रीतम को साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म विभूषण सहित साहित्य जगत में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
दिल्ली की अमृता लाहौर के साहिर लुधियानवी को खूब पसंद करती थीं। दोनों की पहली मुलाकात दिल्ली के एक कार्यक्रम में हुई। हालांकि अमृता पहले से शादीशुदा थी। बचपन में ही उनकी शादी प्रीतम सिंह से तय हो गई थी। अमृता अपनी शादीशुदा जिंदगी से कतई खुश नहीं थी और साहिर लुधियानवी के आने के बाद मानों उनके जीवन में खुशहाली की बहार आ गई। अपनी दूसरी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में अमृता ने साहिर और अपने रिश्ते को लेकर खुलकर लिखा है। उन्होंने कभी भी अपने रिश्ते को छिपाने की कोशिश नहीं की। इस आत्मकथा में अमृता ने साहिर लुधियानवी से जुड़े कई किस्से भी लिखे हैं।
बीबीसी में छपी एक खबर के मुताबिक किस्सा साल 1958 का है। वियतनाम के राष्ट्रपति हो ची मिन्ह भारत दौरे पर थे। तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से उनकी अच्छी दोस्ती थी। हो ची मिन्ह के सम्मान में कार्यक्रम हुआ तो लेखिका अमृता प्रीतम को भी बुलाया गया जो साहित्य के लिए नाम कमा चुकी थी। हो ची मिन्ह की छवि उस नेता की थी जिन्होंने अमरीका तक को धूल चटाई थी। साल 1958 की उस शाम दोनों की मुलाकात हुई। हो ची मिन्ह ने अमृता का माथा चूमते हुए कहा, 'हम दोनों सिपाही हैं। तुम कलम से लड़ती हो, मैं तलवार से लड़ता हूं।'