आंध्र प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में चंद्रबाबू नायडू ने शपथ ले ली है। उनकी तरफ से ऐलान किया गया है कि अमरावती को ही आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया जाएगा। अब देश के किसी भी दूसरे राज्य के लिए यह एक सामन्य खबर होगी, लेकिन आंध्र प्रदेश की नजर से देखें, तो इसके अलग मायने हैं, इसकी एक अलग कहानी है। इस कहानी में एक सपना है, उस सपने पर लगी भ्रष्टाचार की छीटें हैं और 10 साल का लंबा इंतजार है।
आंध्र प्रदेश का बंटवारा
असल में इस कहानी की शुरुआत साल फरवरी 2014 में शुरू हुई थी जब यूपीए सरकार ने आंध्र प्रदेश को दो हिस्सों में बांट दिया था। एक हिस्सा बना आंध्र प्रदेश तो दूसरा तेलंगाना। उस समय कहा गया कि 2014 से 10 सालों तक यानी कि 2024 तक हैदराबाद को दोनों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की राजधानी माना जाएगा। लेकिन इस अवधि में आंध्र प्रदेश को अपने लिए एक नई राजधानी की खोज करनी होगी।
नायडू का ड्रीम प्रोजेक्ट
उसी खोज को लेकर चंद्रबाबू नायडू का ड्रीम प्रोजेक्ट शुरू हुआ था। असस में 2014 में जब आंध्र प्रदेश और तेलंगाना अलग राज्य बन गए, तब आंध्र में विधानसभा चुनाव हुए। उस चुनाव में टीडीपी ने बहुमत हासिल करते हुए 102 सीटें जीत लीं। विपक्षी पार्टी के रूप में YSR कांग्रेस सामने आई जिसे 67 सीटें मिलीं। सरकार बनाने के बाद सीएम नायडू ने एक कमेटी का गठन किया, तब के नगर विकास मंत्री पी नारायणा को उसका प्रमुख बनाया गया। अब काफी रिसर्च के बाद फैसला हुआ कि अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाया जाएगा।
नायडू की योजना जिस पर बवाल
अब फैसला हुआ तो पैसे भी आवंटित कर दिए गए, जमीन अधिग्रहण का काम भी शुरू हुआ। उस समय 29 गांव की 54 हजार एकड़ जमीन को चिन्हित किया गया और फिर उस में से भी 38 हजार 851 एकड़ जमीन को अधिग्रिहित करने का फैसला हुआ। बड़ी बात यह रही कि उस समय केंद्र सरकार का भी उस योजना को समर्थन मिला और 2015 में पीएम मोदी ने ही अमरावती में राजधानी बनाने वाले प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया। उसके बाद नायडू ने सीएम रहते लैंड पूलिंग नाम की स्कीम शुरू कर दी।
अमरावती को लेकर क्या चुनौतियां?
उस स्कीम के तहत किसानों की जमीन ली गई, लेकिन तब विपक्ष के नेता जगनमोहन रेड्डी ने आरोप लगा दिया कि जमीन अधिग्रहण के दौरान जातिवाद किया गया। अब एक बार के लिए जगनमोहन के आरोपों को नजरअंदाज किया जा सकता था, कहा जा सकता था कि राजनीति से प्रेरित होकर ऐसा किया गया, लेकिन अमरावती को राजधानी बनाने को लेकर कई विशेषज्ञों ने भी इसका विरोध किया। उनका तर्क था कि अमरावती में काफी हरियाली थी, पेड़ थे, अगर उसे बर्बाद कर कंकरीट का जंगल बना दिया गया तो यह बड़ा अन्याय होगा।
नायडू ने गंवाई सत्ता, सपना भी टूटा
कहा जा सकता है कि यह वो समय था जब अमरावती को राजधानी बनाने का सपना चौपट हो चुका था। कहने को कहीं से भी रोक नहीं लगी थी, लेकिन इतनी बाधाओं की वजह से काम भी शुरू नहीं हो पा रहा था। इस बीच में नायडू के लिए तब राहत की खबर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से आई थी जिसने पर्यावरण विशेषज्ञों की तमाम आपत्तियों को खारिज कर दिया था। इसके बाद लगा कि अमरावती का रास्ता साफ हो जाएगा तब विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर हो गया।
अमरावती वाला पैसा बैकों को वापस गया
जगनमोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस ने प्रचंड जीत हासिल की, विधानसभा चुनाव में 150 से ज्यादा सीटें जीत लीं। नायडू की टीडीपी को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा और अमरावती का सपना, सपना ही रह गया। सीएम बनने के बाद जगनमोहन रेड्डी, नायडू के सपने को कभी पूरा नहीं होने दिया। पिछली सरकार ने नई राजधानी के लिए जिन भी विदेशी बैंकों से कर्ज मांगा था, उन सभी बैंको को जगनमोहन ने लोन लेने से ही मना कर दिया। कहा गया कि अब इस पैसे की कोई जरूरत नहीं है।
नायडू की वापसी, फिर ऑन अमरावती
उसके बाद जगनमोहन रेड्डी ने अपनी खुद की योजना शुरू कर दी। एक नहीं तीन राजधानी बनाने का प्लान तैयार किया गया। उस प्लान के तहत अमरावती को विधायी राजधानी, विशाखापट्टनम को कार्यकारी राजधानी और कुरनूल को न्यायिक राजधानी बनाने पर सहमति बन गई। लेकिन हाई कोर्ट ने 2022 में सरकार के इस फैसले को मंजूरी नहीं दी और अपनी मर्जी से तीन राजधानी बनाने वाले प्लान को खारिज कर दिया। इसके बाद उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई जहां से अभी तक कोई फैसला नहीं आया है।
अब यह बात कम ही लोग जानते हैं कि अभी भी आंध्र प्रदेश की आधिकारिक राजधानी तो अमरावती को ही माना जाता है। अब जब चंद्रबाबू नायडू फिर सीएम बन चुके हैं, उनकी मंशा साफ है कि अमरावती को ही राजधानी बनाया जाएगा और उसका विकास भी वैसा ही होगा। उस विकास के तहत चौड़ी सड़कें, एक अतंरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और मेट्रो रेल लाने की तैयारी है।