भ्रष्टाचार और लालफीताशाही पर नकेल कसने के लिए सूचना के अधिकार के रूप में जनता को मिले एकमात्र हथियार को कमजोर करने की तैयारी है। केंद्र सरकार आगामी शीतकालीन सत्र में इस कानून में संशोधन करने की जुगत में हैं, लेकिन हम लोग ऐसा नहीं होने देंगे। सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ बुधवार को कई संगठनों व राजनीतिक दलों सहित कई राज्यों से आए आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने दिल्ली की सड़कों पर उतरकर ये बातें कहीं। जंतर मंतर से रफी मार्ग तक निकाली गई रैली में जुटे लोगों ने सरकार को चेतावनी भी दी। तख्तियों पर लिखे नारों और बैनरों के साथ सैकड़ों की संख्या में पहुंची महिलाओं और बुजुर्गों ने भी रैली में हिस्सा लिया। इसके बाद कांस्टीट्यूशन क्लब में जनसुनवाई भी की गई, जिसमें सांसद डी राजा, मनोज झा व राजीव गौैड़ा के अलावा प्रशांत भूषण, पूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर अचार्युलू, निखिल डे, व व्हिस्लब्लोअर और उनके परिजनों ने भी हिस्सा लिया। सांसदों ने दावा किया कि वे इसके खिलाफ संसद में आवाज उठाएंगे।

आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने सरकार से सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून में कोई संशोधन न करने की अपील करते हुए कहा कि प्रस्तावित संशोधन से यह कानून कमजोर हो जाएगा। यह आम आदमी का हथियार है जिससे वह सरकारी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के खिलाफ लड़ता है। कांग्रेस के राजीव गौड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार हर संस्थान की पारदर्शिता खत्म कर रही है। ऐसे कानून को नष्ट कर रही है, जिससे सरकार को घेरा जा सके। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आरटीआइ अधिनियम में किसी भी संशोधन का विरोध करेगी। माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि आरटीआइ अधिनियम लंबे संघर्ष के बाद लाया गया था और इसे कमजोर किया जा रहा है। डी राजा ने कहा कि सीपीआइ की स्थिति बहुत स्पष्ट है कि वे किसी भी कीमत पर आरटीआइ अधिनियम की रक्षा करेंगे। आरजेडी के मनोज कुमार झा ने कहा कि सरकार आरटीआइ अधिनियम को खत्म करने की कोशिश कर रही है क्योंकि उनके पास लोगों के सवालों के जवाब नहीं हैं।

नागरिक संगठन कर रहे विरोध: तमाम नागरिक संगठन और आरटीआइ कानून लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले लोग इस विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं क्योंकि केंद्र सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया कि वह आरटीआइ कानून में क्यों और क्या संशोधन करने जा रही है। संशोधन विधेयक के प्रावधानों को न तो सार्वजनिक किया गया है और न ही आम जनता की राय ली गई है। निखिल डे ने कहा कि यह लंबे संघर्ष के बाद मिले सूचना के अधिकार पर हमला है। और इसमें षडयंत्र की बू आ रही है। संगठन की सदस्य अंजली भारद्वाज ने कहा कि भ्रष्टाचार और अनियमितता उजागर करने के कारण आरटीआइ कार्यकर्ताओं और व्हिसलब्लोअर्स पर लगातार हमले हो रहे हैं। न तो ‘व्हिसलब्लोअर सुरक्षा अधिनियम’ को लागू किया गया और न ही लोकपाल की नियुक्ति की गई।

केंद्रीय सूचना आयोग में आठ पद खाली: केंद्र सरकार केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न करने को लेकर भी आलोचना के घेरे में है। केंद्रीय सूचना आयोग में कुल 11 पद हैं, लेकिन इनमें से आठ पद खाली हैं। नागरिक संगठनों की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल लगभग 60 से ज्यादा लोग सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जानकारी समय पर नहीं मिलती। तमाम सूचना आयुक्तों के पद खाली पड़े हैं।